Shyam Kishore Choubey
Ranchi: इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस यानी ‘इंडिया’के गठन के बाद पांच सितंबर को छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव कुछ संकेत दे रहे हैं. इन सात सीटों में तीन भाजपा की थीं, जबकि चार ‘इंडिया’ की. आठ सितंबर के परिणाम में भाजपा को तीन सीटें हासिल हुईं, जबकि एक-एक सीट ‘इंडिया’ के सदस्य दल सपा, टीएमसी, कांग्रेस और झामुमो को मिली. यानी परिणाम पर गणितीय अंतर न पड़ा, लेकिन रणनीतिक अंतर है. उत्तरप्रदेश के मऊ जिले की घोसी सीट पर उपचुनाव में सपा की बादशाहत कायम रही और एक अंतर भी दिखा. 2022 में यह सीट सपा के दारा सिंह चौहान ने जीती थी. जुलाई में उन्होंने भाजपा में शामिल होकर विधायकी से इस्तीफा कर उपचुनाव की नौबत ला दी थी. उन्हीं दिनों सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भी एनडीए में जा मिले थे. उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री ने तो प्रचार किया ही, राज्य के कई मंत्री घोसी क्षेत्र में डेरा डाले रहे. भाजपा ने इस सीट पर दारा सिंह चौहान को ही उतारा था. वे 42,759 मतों से हार गये. जीते सपा के सुधाकर सिंह. बसपा ने प्रत्याशी नहीं दिया था. मतलब, बसपा के वोटर भाजपा के संग नहीं गये. राजभर का बड़बोलापन दिखा. घोसी में राजभरों की पर्याप्त आबादी है.
चर्चा के लायक दूसरी सीट जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल की धूपगुड़ी है. भाजपा विधायक विष्णुपद रे के निधन के कारण यहां हुए उपचुनाव में भाजपा ने 2021 में कश्मीर में शहीद सीआरपीएफ जवान की बेवा तापसी रॉय को प्रत्याशी बनाया. टीएमसी ने कॉलेज शिक्षक निर्मलचंद्र रॉय को उतारा और माकपा ने कांग्रेस समर्थित लोकगायक ईश्वर चंद्र रॉय को उम्मीदवार बनाया. भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले टीएमसी उम्मीदवार तकरीबन चार हजार मतों से विजयी रहा.
झारखंड में गिरिडीह की डुमरी सीट पर लगातार चौथी मर्तबा जीते झामुमो प्रत्याशी जगरनाथ महतो राज्य के शिक्षा मंत्री थे. उनके निधन से हुए उपचुनाव में उनकी बेवा बेबी देवी एनडीए की आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी से 17,156 मतों से विजयी रहीं. 2019 में इस सीट से एआईएमआईएम प्रत्याशी मोहम्मद अब्दुल मोबीन रिजवी को तकरीबन 24 हजार वोट मिले थे, लेकिन उपचुनाव में पार्टी प्रमुख असुदुद्दीन ओवैसी द्वारा प्रचार करने के बावजूद उनको 3,417 ही वोट मिले. आजसू प्रत्याशी के पक्ष में एनडीए की लीडर भाजपा के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास ने प्रचार किया, जबकि उपमुख्यमंत्री रह चुके आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने सारी ताकत झोंक दी थी. झामुमो प्रत्याशी के पक्ष में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा ‘इंडिया’के संगी-साथी कांग्रेस आदि ने भी प्रचार किया. एआईएमआईएम प्रत्याशी यदि पूर्ण चुनाव की नाईं वोट पा जाता तो निश्चय ही आजसू की बन आती, लेकिन जनाब रिजवी वोटकटवा बनकर रह गये. जदयू और माकपा ने गठबंधन धर्म का निर्वाह करते हुए उपचुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं दिये थे.
उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर परिवहन मंत्री भाजपा के चंदन राम के देहांत के कारण उपचुनाव हुआ, जिसमें उनकी विधवा पार्वती दास कांग्रेस के बसंत कुमार को हराते हुए विजयी रहीं. बसंत महोदय कुछ अरसा पहले ‘आप’ त्यागकर कांग्रेस में आए थे. इस सीट से भाजपा की जीत कतई अप्रत्याशित न थी.
त्रिपुरा के सिपाहीजाला जिले में दो सीटों बॉक्सानगर और धनपुर पर उपचुनाव हुए. दोनों ही सीटों पर सत्ताधारी भाजपा और सीपीएम में टक्कर थी. विपक्षी टिपरा मोथा और कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं दिये थे. माकपा विधायक समसुल हक के निधन से बॉक्सानगर और केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक द्वारा विधायक पद छोड़ने के कारण धनपुर में उपचुनाव हुआ. दोनों ही सीटें भाजपा ने निकाल ली यानी माकपा को अपनी एक सीट गंवानी पड़ी. केरल की पुथुपल्ली सीट पर कांग्रेस विधायक ओमन चांडी के निधन से हुए उपचुनाव में यूडीएफ की ओर से कांग्रेस के चांडी ओमन, जो ओमन चांडी के पुत्र हैं, और एलडीएफ के जैक सी थॉमस के बीच मुकाबला था. भाजपा के जी लिजिन लाल तीसरा कोण बना रहे थे. जीत कांग्रेस के चांडी ओमन की हुई. केरल में भाजपा जोर लगाती है, लेकिन यहां यूडीएफ और एलडीएफ में ही मुकाबला होता रहा है.
एक बात स्पष्ट है कि ‘इंडिया’ का मकसद आगामी लोकसभा चुनाव है. विधानसभा चुनाव इस गठबंधन के एजेंडे में फिलहाल नहीं हैं, फिर भी घोसी और धूपगुड़ी की जीत बहुत कुछ कहती है. वन नेशन, वन इलेक्शन की बातें कर रही भाजपा ने ही घोसी में उपचुनाव की नौबत पैदा की. उत्तरप्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 250 से अधिक विधायक होने के बावजूद वह सपा का एक विधायक तोड़कर ले आई. पश्चिम बंगाल में टीएमसी के विरोध में कांग्रेस समर्थित माकपा प्रत्याशी दिया गया. यह प्रत्याशी न होता तो बेशक भाजपा की जीत होती. टीएमसी प्रत्याशी चार हजार मतों से जीता, जबकि माकपा प्रत्याशी को 13 हजार वोट मिले. माकपा प्रत्याशी न होता तो उसके हिस्से का वोट टीएमसी को कतई न मिलता, भले ही भाजपा को चला जाता. यानी अंतर्विरोधों के बीच ‘इंडिया’ के पार्टनर सोच-समझकर प्रत्याशी दें तो तीन या चार उम्मीदवार होने के बावजूद जीत संभव है. जाहिर है, केरल में माकपा, बंगाल में टीएमसी और पंजाब में ‘आप’अपने प्रभुत्व और वोटर से कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन गठबंधन के नाम कुछ तो त्याग करना ही पड़ेगा. हर राज्य का अपना-अपना डायनेमिक्स होता है. वहां राज कर रहे दल अपनी सुविधा देखकर ही निर्णय लेंगे, लेकिन समूह के लिए उनको किंचित अपने अहम और हित को त्यागना ही पड़ेगा. बाकी, वोटर की समझदारी पर सबकुछ निर्भर करता है. वह हर चुनाव में अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है.
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं.