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भारत की जैव-अर्थव्यवस्था 10 अरब अमेरिकी डॉलर से 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंची

New Delhi :     भारत की जैव जैव-अर्थव्यवस्था को लेकर अच्छी खबर है. जानकारी जो सामने आयी है, उसके अनुसार भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती जैव-अर्थव्यवस्थाओं में से शामिल हो गया है.  

 

अहम बात यह है कि वर्ष 2014 में जैव-अर्थव्यवस्था 10 अरब अमेरिकी डॉलर थी. जो वर्ष 2024 में बढ़ कर 165.7 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गयी है. इसने 3.89 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.25फीसदी का योगदान दिया है. 

 

वर्ष 2030 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तक पहुंचने की कवायद जारी है. जैव-अर्थव्यवस्था के संबंध में यह जानना जरूरी है कि यह  पौधों, पशुओं और सूक्ष्मजीवों जैसे नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग कर भोजन, ऊर्जा और औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन करती है.

 

इसके अलावा यह उत्सर्जन कम करने, जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता करती है.जैव-अर्थव्यवस्था के तहत जीन-एडिटिंग और बायोप्रिंटिंग जैसी नवाचार तकनीक बड़ें काम की चीज है. यह उपाय विकसित कर रही है, जो पृथ्वी की रक्षा करने सहित आर्थिक विकास और मानव कल्याण को आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देती है.  

 

जानकारों का कहना है कि जैव-अर्थव्यवस्था भारत की सतत विकास यात्रा का मजबूत आधार बन रही है, वर्ष 2024 तक भारत की जैव-अर्थव्यवस्था में महाराष्ट्र 35.45 अरब डॉलर मूल्य के साथ अग्रणी राज्य है, जो कुल जैव-अर्थव्यवस्था (मूल्य 165.7 अरब डॉलर) का 21.4फीसदी है.

 

कर्नाटक 32.4 अरब अमेरिकी डॉलर (19.5%) के साथ दूसरे स्थान पर है.तेलंगाना 19.9 अरब अमेरिकी डॉलर (12 फीसदी) का योगदान देता है.  गुजरात 12.9 अरब अमेरिकी डॉलर (7.8 फीसदी), आंध्र प्रदेश 11.1 अरब अमेरिकी डॉलर (6.7 फीसदी ), तमिलनाडु 9.9 अरब अमेरिकी डॉलर (6 फीसदी) का योगदान देता है.

 

उत्तर प्रदेश 7.7 अरब अमेरिकी डॉलर (4.7 फीसदी) का योगदान देता है. इसके अलावा अन्य श्रेणी में छोटे राज्य शामिल हैं, जिनका योगदान 36.4 अरब अमेरिकी डॉलर है. यह जैव-अर्थव्यवस्था के मूल्य का 21.9 फीसदी है

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