Ranchi: पेयजल विभाग में हुई 30 करोड़ की निकासी का पर्दाफाश मैसेंजर्स रजिस्टर की जांच के सहारे किया जा सकता है. इस रजिस्टर का इस्तेमाल ट्रेजरी से निकासी के लिए बिल भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. वित्त विभाग ने प्रारंभिक जांच में डीडीओ प्रभात कुमार सहित अन्य को पहली नजर में दोषी माना था. लेकिन प्राथमिकी सिर्फ रोकड़पाल (अकाउंटेंट) के खिलाफ दर्ज करायी गयी. इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज करने के बदले विभागीय कार्यवाही शुरू की गयी.
पेयजल विभाग ने हुई 30 करोड़ रुपये की निकासी के लिए कई बिलों का सहारा लिया गया है. मूल योजना नगर विकास विभाग की है. नगर विकास विभाग ने जवाहर लाल नेहरू अरबन रिनिवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत पाइपलाइन बिछाने का काम पेयजल स्वच्छता विभाग को सौंपा था. साथ ही योजना की राशि पेयजल विभाग को सौंप दी थी.
योजना में एल एंड टी को कार्यकारी एजेंसी बनाया गया. योजना को लागू करने के दौरान साजिश रच कर ट्रेजरी से 30 करोड़ रुपये की निकासी की गयी. भुगतान पाने के लिए एल एंड टी के बदले रोकड़पाल संतोष कुमार के बैंक खाते का इस्तेमाल किया गया.
योजना में गड़बड़ी की जानकारी मिलने के बाद प्रारंभिक जांच कर रोकड़पाल के खिलाफ वर्ष 2023 में सदर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी.
इंजीनियरों को राहत देते हुए उनके खिलाफ सिर्फ विभागीय कार्यवाह चलाने का फैसला किया गया. इससे फैसले के नतीजे के तौर पर इंजीनियर बाहर और रोकड़पाल जेल में हैं. हालांकि वित्त विभाग ने प्रारंभिक जांच के दौरान इंजीनियर चंद्रशेखर, राधेश्याम रवि और निम्न वर्गीय लिपिक संजय कुमार को पहली नजर में दोषी करार दिया था.
दोषी पाये गये इंजीनियर फर्जी निकासी में संलिप्त पाये गये थे. प्रभात कुमार डीडीओ थे. उनके हस्ताक्षर के बिना ट्रेजरी से पैसा निकालना संभव नहीं था. प्रभात कुमार की ओर से खुद को निर्दोष बताते हुए उनका फर्जी हस्ताक्षर कर निकासी का दावा किया गया.
मैसेंजर्स रजिस्टर की जांच से इस दावे की सच्चाई की जांच की जा सकती है. ट्रेजरी से बिलों की निकासी के लिए मैसेंजर्स रजिस्टर का इस्तेमाल किया जाता है. इस रजिस्टर में बिल का नंबर, निकासी की जाने वाली राशि के ब्योरे के साथ डीडीओ का हस्ताक्षर भी होता है. ट्रेजरी में डीडीओ का हस्ताक्षर के नमूना होता है.
हस्ताक्षर के मिलान के बाद ट्रेजरी से पैसों की निकासी होती है. दूसरे बिल की निकासी के लिए भी यही प्रक्रिया अपनायी जाती है. इसलिए दूसरी बार फर्जी हस्ताक्षर से निकासी के दौरान ही डीडीओ को यह पता लग जाना चाहिए था कि इससे पहले के बिल की निकासी उनके फर्जी हस्ताक्षर के सहारे की गयी थी.
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