Anand Kumar झारखंड के नौकरशाह इन दिनों चर्चा में हैं. चर्चा उनकी काबिलियत और तत्परता की नहीं, बल्कि निकम्मेपन की हो रही है. झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तीन मामलों में सरकार के अफसरों के रवैये पर नाराजगी जतायी. इनमें दो मामले अवमानना के थे. शिक्षा विभाग से संबंधित एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार के अधिकारी कोर्ट का समय बर्बाद करते हैं. आदेश को हल्के में लेते हैं.
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने ग्रीन बिल्डिंग मामले में सरकार के जवाब पर असंतोष जाहिर किया. कोर्ट ने अगली सुनवाई में मुख्य सचिव और भवन निर्माण सचिव को तलब कर लिया है. उधर हटाये गये 42 दारोगाओं को बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं करने पर दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एसएन पाठक ने अधिकारियों की कार्यशैली पर उन्हें फटकार लगायी. कहा कि अविलंब नियुक्ति पत्र जारी करें, वरना अगली सुनवाई में डीजीपी और गृह सचिव सशरीर हाजिर हों. कोर्ट की यह नाराजगी पहली बार नहीं है. झारखंड बनने के बाद से ही कोर्ट अधिकारियों के लचर रवैये पर नाराजगी जताता रहा है. इसे भी पढ़ें : माफ">https://lagatar.in/sorry-honorable-officers-do-not-listen-to-you-because-you-see-the-weight-of-their-caste-religion-and-wallet-and-decide-how-it-is/39889/">माफकरिये माननीय! अफसर आपकी नहीं सुनते, क्योंकि आप उनकी जात, धर्म व बटुए का वजन देख कर तय करते हैं कि वह कैसा है
कोर्ट ने हाल में की हैं कई टिप्पणियां
कोर्ट की हालिया टिप्पणियों से पता चलता है कि झारखंड में अधिकारी कितने बेलगाम हैं. कोर्ट के फैसले तक का पालन नहीं करते. दूसरी तरफ यही अधिकारी कोर्ट में लंबित मामलों का हवाला देकर काम अटकाते हैं. सरकार से संबंधित या किसी कर्मचारी-अधिकारी का कोई मामला कोर्ट चला जाये, तो कोई अफसर उसमें हाथ नहीं डालता और जब उसी मामले में कोर्ट फैसला दे देता है, तो उसका पालन भी नहीं होता. झारखंड सरकार में अब अघोषित परंपरा बन गयी है कि कोर्ट के आदेश का पालन कराना है, तो अवमानना याचिका फाइल करनी पड़ती है. कोर्ट मौखिक फटकार लगाता है. मुख्य सचिव, सचिव को कठघरे में खड़ा करने का हुक्म देता है, तो नौकरशाही के पांव हिलते हैं.माननीय परेशान- अफसर सही जवाब नहीं देते
दूसरी तरफ माननीय परेशान हैं. पांचवीं विधानसभा के बजट सत्र में सरयू राय समेत कई विधायकों ने कहा कि अफसर सही जवाब नहीं देते. अफसरों की इस कारस्तानी के कारण मंत्रियों की किरकिरी भी हुई है. सरयू राय ने तो साफ कहा कि गलती मंत्रियों की नहीं है. अधिकारी अंतिम समय में जवाब बनाकर लाते हैं, ताकि मंत्रियों के पास उन्हें पढ़ने-समझने का समय न रहे. अगले दिन जवाब फाइल करने की बात कह दस्तखत करा लेते हैं. 20 साल से एक ही जैसा जवाब आता है. सवाल है कि क्या झारखंड की नौकरशाही को लकवा मार गया है. विधानसभा राज्य में विधायिका और हाईकोर्ट न्यायपालिका की शीर्ष संस्था है. दोनों ही संस्थाएं किसी कानून को बनाने और उनका पालन नहीं होने पर दंड देने की अधिकारी हैं. फिर यहां अफसर इतने लापरवाह, बेलगाम और उद्दंड क्यों हैं. क्या उन्हें इन संस्थाओं का भय भी नहीं रहा. नौकरशाही कहने को तो जनता की सेवा के लिए है, लेकिन हकीकत में ज्यादातर अफसर खुद को सरकार और कोर्ट से भी ऊपर समझते हैं. जनता की तो इनकी नजर में कोई हैसियत ही नहीं है. ऐसे में सरकार, विधायिका और न्यायपालिका को कठोर कदम उठाना होगा.अधिकारियों को फटकार लगाने से काम नहीं चलेगा. जैसा कि सरयू राय कहते हैं कि अधिकारियों के गले में उंगली डाल कर जवाब लेना होगा, वैसे ही नकारा, उच्छृंखल और कामचोर अफसरों को कड़ा दंड दिये जाने की जरूरत है. बड़े अधिकारियों को नौकरी का डर होगा तो वे छोटों पर नकेल कसेंगे. सिस्टम जवाबदेह बनेगा. लेकिन तब सरकार को भी सख्त होना होगा. कोर्ट में सरकार की फजीहत करानेवाले अधिकारियों पर कार्रवाई करनी होगी. उनकी प्रोन्नति, वेतनवृद्धि रोकनी होगी. मंत्रियों-विधायकों को अपनी पसंद के थानेदार, बीडीओ और इंजीनियर की पोस्टंग का लालच छोड़ना होगा. इसी तरह कोर्ट अगर अपने फैसले के पालन में लापरवाही करनेवाले अधिकारियों की चारित्रिक अभियुक्ति (एसीआर) में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करने का आदेश देने लगे, उनका वेतन-प्रमोशन रोके तो इन अधिकारियों को फौरन अक्ल आ जायेगी. माना कि झारखंड की सरकार संवेदनशील है. इसके मुखिया में जनता का दर्द समझने और उसे दूर करने की इच्छा भी है, लेकिन उनकी सरकार की नीतियों को लागू करने का जिम्मा जिस तंत्र के पास है, वह निहायत अकर्मण्य, असंवेदनशील और क्रूर है. अगर सरकार इस तंत्र को जिम्मेदार और जनोन्मुखी बनाना चाहती है, तो उसे भी ऐसे अधिकारियों के प्रति क्रूर होना होगा.
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