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क्या बड़े एटॉमिक खतरे की तरफ बढ़ रहा उत्तर प्रदेश

Girish Malviya

 

कल्पना करे कि एटॉमिक पावर प्लांट से निकलने वाला गर्म जल और अपशिष्ट रेडियोधर्मी पदार्थ गंगा नदी में बहाए जा रहे हैं. अभी तक यह कल्पना ही है. लेकिन अगले कुछ सालों में यह हकीकत में बदलने जा रहा है, क्योंकि मोदी सरकार ने एटॉमिक एनर्जी का क्षेत्र प्राइवेट कंपनियों के लिए खोल दिया है और उत्तर प्रदेश में इसके लिए आगे आए हैं अडानी जी.

 

खबर आ गई है कि अडानी ग्रुप उत्तर प्रदेश सरकार के साथ इसको लेकर बातचीत कर रहा है. योजना के तहत राज्य में आठ छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर लगाए जाएंगे, जिनमें से हर एक की क्षमता 200 मेगावाट होगी. इस तरह कुल 1600 मेगावाट न्यूक्लियर बिजली पैदा की जा सकेगी.

 

एटॉमिक पावर प्लांट यानी न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने के लिए ऐसा ग्रीनफील्ड एरिया चाहिए होता है, जहां पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो, क्योंकि संयंत्र से निकले गरम पानी के निस्तारण की समस्या रहती है. इसलिए इन्हें भारी मात्रा में साफ पानी की जरूरत होती है, इसलिए इन संयंत्रों को उन स्थानों पर लगाया जाता है, जहां बहता पानी उपलब्ध हो.

 

अब बहते हुए पानी का अर्थ है नदी और उत्तर प्रदेश की मुख्य नदी गंगा ही है. जितनी भी अन्य प्रमुख नदियां हैं जैसे यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा गंडक, कोसी, और सोन आदि वो भी गंगा नदी में ही मिल रही है. उत्तर प्रदेश के बड़े-छोटे शहर भी इन्हीं नदियों के किनारे स्थित है.

 

एटॉमिक पावर प्लांट को भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है. एटॉमिक प्लांट में बिजली बनाने के लिए पानी को गर्म करते हैं, जिससे गर्म पानी और भाप बनती है. यह भाप टरबाइन चलाती है. लेकिन इस्तेमाल हुआ पानी रेडियोधर्मी तत्वों (रेडियोन्यूक्लाइड्स) से दूषित होता है. इसे बहते हुए पानी में छोड़ा जाता है. इसलिए अधिकांश परमाणु संयंत्र समुद्र तटों पर बनाए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश समुद्र के आस पास तो स्थित हैं नहीं. इसलिए ये अपशिष्ट किसी न किसी नदी में ही छोड़ा जाएगा यह तो तय बात है. 

 

दूसरी बड़ी बात यह है कि एटॉमिक पावर प्लांट ऐसी जगह पर बनाए जाते हैं, जो भूकंप के लिए संवेदनशील न हो. लेकिन उत्तर प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील है. खासकर पश्चिमी यूपी के जिले (जैसे मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद) जोन-4 (उच्च जोखिम) और मध्य/पूर्वी जिलों (जैसे लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर) का कुछ हिस्सा जोन-3 (मध्यम जोखिम) में आता है. क्योंकि यह हिमालय के पास और टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर है.

 

राज्य के लगभग 34 जिले भूकंपीय रूप से संवेदनशील माने जाते हैं, जिनमें से कई जोन-3 और जोन-4 में आते हैं. यानी कि उत्तर प्रदेश में ऐसे एटॉमिक पॉवर प्लांट की अनुमति देना हर तरह से खतरनाक हैं. लेकिन अडानी जी अगर चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में ही ये बने तो उन्हें कौन मना कर सकता है.

 

 

डिस्क्लेमर :  यह टिप्पणी लेखक के फेसबुक वॉल से ली गई है.

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