Nishikant Thakur
अहम सवाल यह है कि पाकिस्तान आखिर चाहता क्या है? यह ठीक है कि उसकी पैदाइश ही भारत के विरोध से हुआ है, लेकिन बार बार पीछे धकेले जाने के बावजूद वह सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. बंटवारे के बाद के इतिहास को अगर देखा जाए तो भारत ने कभी भी उस पर आक्रमण नहीं किया और न ही उसे युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज न आते हुए हम पर हमला करता रहा और हारता भी रहा.
साथ ही भारत उसे बार-बार माफ़ी भी देता रहा. यह भारत की सदाशयता है कि वह भारत से लड़ता रहा, घुसपैठ करता रहा, अपने पोसे हुए आतंकियों से हमले करवाता रहा और मुंह की खाने के बावजूद अपने को सही साबित करने का प्रयास करता रहा. हजारों सबूतों के बाद भी वह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को नीचा दिखाने का काम करता रहा है.
उदाहरण के लिए पिछले दिनों पहलगाम घूमने आए 26 पर्यटकों को नाम पता पूछकर मार दिया, फिर अपनी गतिविधियों के लिए माफी मांगने के बजाय भारत को ही युद्ध के लिए ललकारता रहा. अति हो जाने के बाद भारत ने अपना ऑपरेशन सिंदूर किया, तो वह माफी मांगने लगा, गिड़गिड़ाने लगा. जिसे सबूतों सहित हमने विश्व के समक्ष रखा तो फिर वह पाला बदल लिया. चूंकि भारत ने महात्मा गांधी की नीति, यानी सदैव शांति के रास्ते पर चलने का प्रयास किया है, लेकिन लोगों की मनोवृत्ति हमेशा यही रही है कि वह सीधे पेड़ों को काटने का प्रयास करता रहता है.
अपने कार्यकाल के दौरान कई बार कश्मीर से राजस्थान तक की सीमा को नज़दीक से देखने का अवसर मिला, फिर अपनी भारतीय सीमा सुरक्षा व्यवस्था पर गर्व महसूस हुआ. इतनी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद घुसपैठिये कैसे घुस आते है? इस पर सीमा सुरक्षा के अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तानी घुसपैठिये एक ही रंग रूप, भाषा, लंबाई चौड़ाई में होने के कारण वह किसी न किसी बहाने से घुस आते हैं. यहां तक कि वह लंबी दूरी से सुरंग खोदकर भारतीय सीमा में घुस आते हैं और यहां के स्लिपर सेल की कारगुज़ारी से अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल हो जाते है. यही प्रश्न जब पाकिस्तानी सीमा सुरक्षा बल से पूछा गया कि इतनी अच्छी सुरक्षा व्यवस्था और कटीले तारों की फैंसिंग के बावजूद कैसे कोई किसी दूसरे देश में जा सकता है? उसका उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित आज भी महसूस कर रहा हूं.
उनका कहना था कि यह फैंसिंग भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए लगाया है, तो इसकी रक्षा का दायित्व तो आपका ही बनता है. आप अपने देश की सुरक्षा करें, हम आपकी फैंसिंग या सुरक्षा का जिम्मा क्यों लें. कोई भी भारतीय इस उत्तर को सुनकर उत्तेजित ही हो सकता है और उस देश में विचारों को भारत के प्रति किस प्रकार गंदगी से भर दिया है, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है.कभी कभी हमारा देश निश्चिंत हो जाता है कि अब पाकिस्तानी भारत के प्रति वैसा द्वेष नहीं रखेगा और एक बेहतर पड़ोसी और दोस्त होने के भाव से सबकुछ आसान हो जाएगा, लेकिन नहीं उस देश के उपद्रवियों के शरीर में आतंक का कीड़ा रह रहकर दंश मारता है और फिर भारत में किसी न किसी प्रकार आतंकियों को घुसाकर अशांति पैदा करने लगता हैं.
अभी पिछले सप्ताह की बात है जब चार ग्रेनेड के साथ पकड़े गए सेना के बर्खास्त कमांडो धर्मेंद्र सिंह और उसके साथी रविंदर सिंह से पूछताछ के बाद सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि धर्मेंद्र सिंह सेना में पांच वर्ष कमांडो रहा है. वह आतंकियों से संपर्क में आकर देशविरोधी गतिविधियों को अंजाम देने लगा था. वर्ष 2018 में पंजाब के बटाला पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद उसे सेना से बर्खास्त कर दिया गया. हाईकोर्ट ने उसे 2022 में जमानत पर छोड़ा, लेकिन उसके बाद फिर वह भूमिगत हो गया. पुलिस अब इस तहकीकात में लगी है कि अपने भूमिगत होने से अपनी गिरफ्तारी तक वह देश विरोधी किन किन माध्यमों और सूत्रों से कार्य करता रहा.
आरोपित धर्मेंद्र सिंह से अब तक पुलिस पूछताछ में जो जानकारी हासिल की है, उसके अनुसार इन तीन वर्षों में आईएसआई के संपर्क में रहकर नशे और हथियारों की कई खेप को ठिकाने लगा चुका है. साथ ही कमांडो ट्रेनिंग लेने के कारण वेश बदलने में माहिर माना जाता है. धर्मेंद्र सिंह और उसके दो साथियों को गिरफ्तार किया गया है. आरोपित मेहर सिंह, रविंदर सिंह और महकीत सिंह के रूप में पहचान की गई है.
इन तथाकथित आतंकियों की गिरफ्तारी तो एक बानगी है, लेकिन इसके पीछे की सोच को देखें तो साफ नजर आता है कि पाकिस्तान इस तरह भारत के नौजवानों को किस तरह बहला फुसलाकर अपने स्लिपर सेल के माध्यम में भारत को आघात पहुंचाता रहता है. ऐसा नहीं है कि धर्मेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के बाद इस तरह के आतंकी चुप और शांत होकर बैठ जाएंगे अथवा उनका आखिरी लक्ष्य धर्मेंद्र सिंह और उनके साथी ही रहे हैं. यदि पंजाब, जम्मू कश्मीर पुलिस गहन छानबीन करे और अपनी खुफिया एजेंसियों को और सतर्क रखे, तो यह हो ही नहीं सकता कि पंजाब और जम्मू कश्मीर में आतंकी अपनी नापाक गतिविधियों को अंजाम दे सकें.
वैसे, यह कोई सामान्य बात नहीं है कि इतनी बड़ी सीमा को सुरक्षित रखने के लिए सरकारों ने कोई कसर छोड़ी हो, लेकिन जिनका उद्देश्य ही भारत को नुकसान पहुंचाना और उसे अशांत रखने का हो, वह किसी न किसी प्रकार तो सफल हो ही जाता है. दुर्भाग्य यह होता है कि अपने देश के भी कुछ चिढ़े हुए, विरोध करने वाले लोग उनके बहकावे में आ जाते हैं.कश्मीर के पर्यटन स्थल पर वहां के निवासियों से इस बारे में जब पूछा, तो उनका उत्तर सुनकर सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या उस स्थानीय निवासी का कहना सही है? उनका कहना था कि पाकिस्तान जैसे कंगला देश की ऐसी आर्थिक स्थिति नहीं है कि वह अपना पैसा खर्च करके आतंकियों को आतंक फैलाने के लिए हिंदुस्तान भेजे.
उनका कहना था कि सच तो यह है कि अपने भारतीय राजनीतिज्ञ ही अपनी राजनीति की चमक बनाए रखने के लिए खुद ही आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिलाते हैं, ताकि उनकी राजनीति चलती रहे और वे अपना उल्लू साधते रहें. इन आरोपों का सच जानने के लिए हमें अपने राजनीतिज्ञों पर भरोसा तो करना ही होगा, क्योंकि उनपर जो आरोप लगाया जा रहा है उसका निराकरण उन्हीं के द्वारा नियुक्त एजेंसियों द्वारा कराया जाएगा.
वैसे हिन्दुस्तान जैसे देश में कुछ भी असंभव नहीं है, क्योंकि हमारे देश का नियम यही रहा है कि सदैव एक के पीछे एक लगाया जाता है जिससे दूसरों की विश्वसनीयता कायम रहे. कुछ देशभक्त ऐसे भी होते हैं जो किसी भी प्रलोभन में नहीं फंसते और देशहित में अपने आपको शहीद कर देते हैं. कुछ तो ऐसे भी देशभक्त हैं जिनके समक्ष यदि कोई किसी तरह के प्रलोभन की चर्चा करे, तो वह सटीक जवाब देकर प्रलोभन देने वालों को उसकी औकात बता देते हैं, लेकिन अपने ही देश के और विशेष कर रोजगार के लिए भ्रमित युवा अपने को प्रलोभन से रोक नहीं पाते और उनके साथ जुड़कर देश का नुकसान करने का बीड़ा उठा लेते हैं.
अभी उदाहरण तथाकथित आतंकी गतिविधियों में लिप्त पंजाब के धर्मेंद्र सिंह के रूप में दिया जा सकता है, जिसने हिंदुस्तान की सेवा का संकल्प लिया था, लेकिन पता नहीं किस बहकावे में आकर अपने को आतंकी बना लिया और हिंदुस्तान का अहित करने लगा. वैसे आतंकियों और नक्सलवाद में संलिप्त किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा. अब देखना यह है कि गृहमंत्री का यह संकल्प कब पूरा होता है और देश आतंकवाद और नक्सलवादियों से कब मुक्त होता है.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये इनके निजी विचार हैं
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