Ravi Bharti
Ranchi: राज्य के शिड्यूल एरिया (आदिवासी बहुल इलाके) के शहरी निकायों में अब अदिवासी अध्यक्ष की बाध्यता समाप्त नहीं होगी. बल्कि व्यवस्था में आंशिक संशोधन करते हुए चुनी हुई समिति की बात मानने की बाध्यता को खत्म किया जायेगा. इसके साथ ही शिड्यूल एरिया के 50 प्रतिशत आबादी वाले ग्राम पंचायतों मे ऑफ प्रकृति की खुदरा शराब दुकानों के सहारे शराब बेचना चाहती है. राज्य सरकार इन मुद्दों पर जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की बैठक में सहमति लेना चाहती है. टीएसी की बैठक 21 मई को होनी है. जानकारी के मुताबिक मेसा बिल 2001 ( Municipalities extension to the scheduled areas bill 2001) में यह प्रावधान किया गया है कि शिड्यूल एरिया (अनुसूचित क्षेत्र) में नगर निगम या नगरपालिका में मेयर या अध्यक्ष व उपाध्यक्ष आदिवासी समुदाय से होगा. इस प्रावधान के तहत शिड्यूल एरिया के शहरी निकायों में मेयर आदि के पद पर आदिवासी समुदाय के सदस्य के होने की बाध्यता है.
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केंद्रीय स्टैंडिंग कमेटी ने की है अनुशंसा.
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ट्राईबल एडवाईजरी कमेटी से सहमति लेगी सरकार.
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शिड्यूल एरिया में पर्यटन स्थल पर बिकेगी शराब.
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ईचाबांध को शुरु कराने पर लेना होगा फैसला.
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टीएसी की बैठक में प्रस्ताव लायेगी सरकार.
भारत सरकार द्वारा गठित स्टैंडिंग कमेटी ने मेसा में किये गए इस प्रावधान में आंशिक संशोधन की अनुशंसा की है. स्टैंडिंग कमेटी की इस अनुशंसा के लागू होने से शिड्यूल एरिया के नगर निगमों में चुनी हुई समिति की बात मानने की बाध्यता समाप्त हो जायेगी. राज्य सरकार आर्थिक कारणों से अनुसूचित क्षेत्रों के 50 प्रतिशत या इससे अधिक आदिवासी बहुल आबादी वाले ग्राम पर्यटन के महत्व वाले ग्राम पंचायत में शराब बेचने चाहती है. इसके तहत वैसे ग्राम पंचायतों में ऑफ प्रकृति का खुदरा शराब दुकान (जिस दुकान पर बैठ कर शराब पीना प्रतिबंधित हो) खोलना चाहती है, जिसे अधिसूचना जारी कर अंतर्रराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राजकीय महत्व के पर्यटन स्थल घोषित किया जा चुका हो. लेकिन धार्मिक महत्व वाले पर्यटन स्थलों से संबंधित ग्राम पंचायतों में शराब की बिक्री नहीं होगी. मेसा में स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसा के अलावा राज्य सरकार ईचा बांध को फिर से शुरू करना चाहती है. इससे संबंधित प्रस्वात पर भी जनजातीय परामर्शदतृ परिषद की बैठक में सहमति लेना चाहती है. ईचा बांध को फिर से शुरू करने के प्रस्ताव के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था ईचा बांध को निरस्त करने करने से 97 हजार 256 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा सृजित नहीं की जा सकेगी. ईचा बांध नहीं बनने से खरकई बराज से रबी के फसल की सिंचाई नहीं हो पायेगी.
ईचा बांध और इससे जुड़े नहरों के निर्माण पर अब तक 1397.00 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है. साथ ही बांध का निर्माण नहीं करने से झारखंड, बंगाल और ओड़िशा के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन है. उल्लेखनीय है कि ईचा बांध के मुद्दे पर चंपई सोरेन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. इस समिति की अनुशंसा के आलोक में ईचा बांध के काम को स्थगित कर दिया गया था. अक्टूबर 2014 में समिति ने अपनी रिपोर्ट में परियोजना को रद्द करने और रैयतों को उनकी जमीन वापस करने की अनुशंसा की थी. इस अनुशंसा के आलोक में परियोजा को रद्द कर दिया गया था.
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