सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि नियोक्ता की ओर से गलत गणना या किसी नियम की गलत व्याख्या के आलोक में कर्मचारियों को किये गये अतिरिक्त भुगतान की वसूली नहीं की जा सकती है.किसी कर्मचारी द्वारा धोखाधड़ी या गलतबयानी कर ली गयी अतिरिक्त राशि की ही वसूली की जा सकती है. न्यायाधीश पी.एस नरसिम्हा और न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने ओड़िशा सिविल कोर्ट में कार्यरत निजी सहायकों की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के बाद यह फैसला दिया है.
कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार ने पिछले दिनों कैबिनेट प्रस्ताव पारित कर सचिवालय सहायकों और निजी सचिवों के वेतन निर्धारण के लिए वर्ष 2019 में जारी किये गये संकल्प को वापस ले लिया.सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका ( जोगेश्वर साहू बना जिला जज कोर्ट ) में कहा गया था कि सरकार ने उनकी सेवानिवृत के तीन साल और उन्हें किये गये भुगतान के छह साल बाद 20-40 हजार रुपये की वसूली का आदेश दिया था.
इस संकल्प से वेतन वृद्धि का लाभ वर्ष 1996 के पूर्व पदस्थापित सचिवालय सहायकों और निजी सचिवों को मिला था. कैबिनेट के फैसले में कहा गया था कि वित्त विभाग द्वारा 2019 में जारी संकल्प को महालेखाकार ने नियमानुसार नहीं माना है.महालेखाकार द्वारा की गयी आपत्तियों के मद्देनजर सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति ने इस संकल्प को रद्द करने और अतिरिक्त भुगतान की वसूली की अनुशंसा की थी. वर्ष 2019 में जारी संकल्प के आधार पर अब तक संबंधित कर्मचारियों को 10-18 लाख तक का अतिरिक्त भुगतान किया जा चुका है. सरकार इसी अतिरिक्त भुगतान की वसूली की तैयारी कर रही है.महालेखाकार का कहना है कि एक वेतन पुनरीक्षण के मामले में दो पे-मैर्टिक्स नहीं बनाया जा सकता है.
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