alt="" width="350" height="250" /> इसे भी पढ़ें : किरीबुरु">https://lagatar.in/kiriburu-thursday-soy-of-eklavya-archery-academy-selected-in-jharkhand-team/">किरीबुरु
: एकलव्य आर्चरी अकादमी की गुरुवारी सोय का झारखंड टीम में हुआ चयन संताली भाषा में बाहा का अर्थ होता है फूल अर्थात् फूलों का पर्व. ऐसे समय जब प्रकृति फूलों और वृक्षों के नए पत्तों से अपना शृंगार करती है और बसंत जब जन-जन के मन में हिलोरे लेने लगता है तब संताल जाति बाहा पर्व मनाती है. बाहा पर्व में सारजोम अर्थात् सखुआ के फूल का विशेष महत्व होता है. दूसरे शब्दों में सखुआ व महुआ के फूल के बिना बाहा पर्व की बात करना ही बेमानी है. कार्यक्रम को सफल बनाने में नायके बाबा बरियर मुर्मू, कुलगोड़ा ग्राम प्रधान सुनील टुडू, कालिकापुर तरफ परगना पुनता मुर्मू, मोचीराम हांसदा, बर्डी मुर्मू, निवाई मुर्मू समेत ग्रामीणों ने अहम भूमिका निभाई. [wpse_comments_template]

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