Jamshedpur (Sunil Pandey) : करनडीह जाहेरथान कमिटी की ओर से शुक्रवार को गुरु गोमके पं रघुनाथ मुर्मू की 118 वीं जयंती मनायी गई. इस दौरान रघुनाथ मुर्मू की लिखित पुस्तक हिताल का पाठ किया गया. जाहेर थान कमिटी के अध्यक्ष सीआर माझी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि रघुनाथ मुर्मू जब छोटे थे उस समय वे उड़िया स्कूल में दाखिला लिये. उन्हें स्कूल में उड़िया पढ़ने व समझने में बहुत दिक्कत होती थी. तब उन्होंने अपनी मां से पुछा कि संताली भाषा में हम क्यों नहीं लिख पढ़ सकते हैं. क्या हमारी कोई लिपि नही है? मां के इंकार करने पर रघुनाथ मुर्मू ने अपनी लिपि “ओलचिकी” का आविष्कार किया.
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रघुनाथ मुर्मू ने संताली में कई पुस्तकें लिखी है
लिपि का आविष्कार करने के बाद रघुनाथ मुर्मू ने उक्त लिपि का प्रचार-प्रसार करने के लिए बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम आदि कई राज्यों का भ्रमण किया. उन्होंने संताली भाषा में कई पुस्तकें लिखी है उनमें से प्रमुख है बिदु चांदान, दाड़ेगे धोन, पारसी पोहा, रोनोड़, हिताल, ओल चेमेद, खेरवाड़ बीर आदि. इससे पहले प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. जिसमें सभी ने हिस्सा लिया तथा उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
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कार्यक्रम में ये लोग थे मौजूद
कार्यक्रम को जाहेर थान कमिटि के चेयरमैन माझी जुवराज टुडू, बुढान माझी, बीरप्राताप मुर्मू, प्रोफेसर लखाई बास्के आदि ने भी संबोधित किया.समारोह में मुख्य रूप से रविन्द्र नाथ मूर्मू, बाबू राम सोरेन,करन सोरेन,राम चन्द्र मुर्मू,तारा चंद बेसरा, सुशील हेम्ब्रम,शिव मुर्मू, दिनेश सोरेन, उपेन्द्र नाथ मूर्मू,डोमान टुडु, कुशा सोरेन आदि उपस्थित थे। सभा का संचालन जाहेर थान कमिटी के लोग उपस्थित थे.
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