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Janmastmi Special: भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में लिया था आठवां अवतार, पढ़ें जन्म की कथा

Lagatar Desk: मान्यता है कि द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था. कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी. चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था. भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में  नंद बाबा के घर ले जाया गया. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/08/1-60-300x225.jpg"

alt="" width="712" height="534" /> नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी. वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा. दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया. जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया.

भगवान कृष्ण जन्म की कथा

श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के उग्रसेन राजा के बेटे कंस का वध करने के लिए हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में मथुरा के उग्रसेन राजा के बेटे कंस ने उन्हें सिंहासन से उतार कर कारगार में बंद कर दिया था और खुद को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था. राजा की एक बेटी और एक बेटा था. बेटा कंस और बेटी देवकी. देवकी का विवाह वासुदेव के साथ तय कर दिया गया और बड़ी धूम-धाम के साथ वासुदेव के साथ उनका विवाह कर दिया गया. लेकिन जब कंस देवकी को हंसी-खुसी रथ से विदा कर रहा था, उस समय आकाशवाणी हुई की, देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का वध करेगा. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/08/KANS-WADH.webp">

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आकाशवाणी सुनकर कंस डर से कांप गया

आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया. आकाशवाणी के बाद कंस ने बहन देवकी की हत्या करने की ठान ली. लेकिन उस दौरान वासुदेव ने कंस को समझाया कि देवकी को मारने से क्या होगा. देवकी से नहीं, बल्कि उसको देवकी की आठंवी संतान से भय है. वासुदेव ने कंस को सलाह दी कि जब हमारी आठवीं संतान होगी तो हम अपाको सौंप देंगे. आप उसे मार देना. कंस को वासुदेव की ये बात समझ आ गई. लेकिन वासुदेव और देवकी को कंस ने कारगार में कैद कर लिया. देवकी और वासुदेव की सात संतानों को कंस मार चुका था. अब आठवां बच्चा होने वाला था. आसमान में घने बादल छाए थे, तेज बारिश हो रही थी, बिजली कड़क रही थी और भगवान श्री कृष्ण का जन्म लेने वाले थे. रात्रि ठीक 12 बजे कारगार के सारे ताले अपने आप टूट गए और कारगार की सुरक्षा में लगे सभी सैनिक गहरी नींद सो गए. उसी समय वासुदेव और देवकी के सामने भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए और उन्हें कहा कि वे देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. इतना ही नहीं, भगवान विष्णु ने कहा कि वे उन्हें गोकुल में नंद बाबा के यहां छोड़ आएं और वहां अभी-अभी जन्मी कन्या को कंस को लाकर सौंप दें. वासुदेव ने भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही किया. गोकुल से लाए कन्या को कंस को सौंप दिया. कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए हाथ उठाया, कन्या आकाश में गायब हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस जिसे मारना चाहता है वे तो गोकुल पहुंच चुका है. ये आकाशवाणी सुनकर कंस और घबरा गया. कृष्ण को मारने के लिए कंस ने बारी-बारी से की राक्षस गोकुल भेजे लेकिन कृष्ण ने सभी का वध कर दिया. आखिर में श्री कृष्ण ने कंस का भी वध कर दिया. [wpse_comments_template]  

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