
कुमार हेमंत
Ranchi : डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी (DSPMU) के कुड़माली विभाग के स्नातकोत्तर के छात्र कुमार हेमंत ने राज्य में बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि झारखंड, जिसे अपनी हरियाली और शुद्ध हवा के लिए जाना जाता है, अब वायु प्रदूषण के एक नए खतरे की ओर बढ़ रहा है. हेमंत का कहना है कि धान कटाई के बाद खेतों में बची पराली को जलाने की घटनाएं धीरे-धीरे बढ़ने लगी हैं. यह वही परिदृश्य है, जो वर्षों से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गंभीर वायु संकट की वजह बना है, जहां खेतों की लपटें अंततः आसमान में धुएं की मोटी परत में बदल जाती हैं और सांस लेना मुश्किल हो जाता है.
हार्वेस्टर से खेती ने बढ़ाई मुसीबत
पिछले साल की तुलना में इस बार झारखंड के कई जिलों में हार्वेस्टर मशीनों से धान की कटाई और मिंसाई की गई. यह तकनीक भले ही किसानों के लिए श्रम और समय की बचत का जरिया बनी हो. लेकिन इसके बाद खेतों में बची पराली को हटाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कई किसान सबसे आसान रास्ता पराली को जलाना चुन लेते हैं, जो आगे चलकर पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है.
पराली जलाना लाभदायक नहीं, विनाश का है निमंत्रण
कई किसान मानते हैं कि पराली जलाने से खेत की उर्वरता बढ़ती है. लेकिन वैज्ञानिक तथ्य इसके उलट है. पराली जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, लाभकारी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की उर्वरक क्षमता घटती है.
पराली जलाने का इससे भी बड़ा खतरा वायु प्रदूषण है. इससे निकलने वाला धुआं न केवल खेतों को बंजर बनाता है, बल्कि हवा में घुलकर पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कणों के जरिए हमारे फेफड़ों तक पहुंचता है.
इससे निकलने वाली गैस कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड वातावरण को जहरीला बना देती हैं. जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों पर पड़ता है.
यही हालात रहे, तो जल्द स्मॉग की गिरफ्त में होगा झारखंड
अगर यही हालात रहे, तो आने वाले 4-5 वर्षों में रांची, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद जैसे शहरों में भी वही धुंध छा जाएगी, जो दिल्ली और पंजाब-हरियाणा में हर साल अक्टूबर-नवंबर में देखी जाती है. इससे दृश्यता घटेगी, सड़क हादसे बढ़ेंगे, और अस्पतालों में सांस के मरीजों की कतारें लंबी होती जाएंगी. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं अभी सीमित हैं. लेकिन अगर इस पर तुरंत नियंत्रण नहीं हुआ, तो यह स्थिति गंभीर वायु संकट में बदल सकती है, जिसको नियंत्रित करना बेहद कठिन होगा.
पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में करना होगा जागरूक
हेमंत का कहना है कि पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में किसानों को जागरूक कर झारखंड को वायु प्रदूषण से बचाया जा सकता है. साथ ही सरकार को वैकल्पिक उपायों जैसे बायो-डिकम्पोजर, पराली प्रबंधन मशीनें, मल्चर, हैप्पी सीडर जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना होगा और सरकारी योजनाओं व सब्सिडी को गांव-गांव तक पहुंचाना होगा. यदि आज ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में वायु प्रदूषण झारखंड के लिए उतना ही बड़ा संकट बन सकता है, जितना उत्तर भारत के कई राज्यों में बन चुका है. हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को जहरीली हवा के हवाले होने से बचाना होगा.
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