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झारखंड सरकार ने खनन के दुष्प्रभावों को भी केंद्रीय करों में हिस्सेदारी का आधार बनाने का मुद्दा दूसरी बार उठाया

Ranchi: झारखंड सरकार ने खनन के दुष्प्रभावों को केंद्रीय करों की हिस्सेदारी में आधार बनाने का मद्दा दूसरी बार उठाया. इससे पहले 15वें वित्त आयोग के साथ हुई बैठक में राज्य सरकार ने यह मुद्दा पहली बार उठाया था.

16वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गयी थी कि केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी तय करने के लिए जिन बिंदुओं को आधार बनाया जाता है उसमें खनन के दुष्प्रभाव को भी शामिल करना चाहिए.
 
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राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गयी थी कि राज्य की खनिज संपदा का सबसे ज्यादा लाभ भारत सरकार के लोक उपक्रमों जैसे, सीसीएल, बीसीसीएल आदि को होता है. लेकिन खनिजों का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा राज्य पर पड़ता है. खनन क्षेत्र के लिए ली गयी जमीन खेती या दूसरे किसी काम में राज्य सरकार या राज्य के नागरिकों द्वारा नहीं किया जा सकता है. खनन से पैदा होने वाले प्रदूषण से राज्य के नागरिक प्रभावित होते हैं. इसके अलावा विस्थापन जैसी समस्या पैदा होती है.
 
खनन से राज्य का जलस्रोत भी दूषित होता है. खनिजों की ढुलाई से सड़कें जल्दी टूटती है. इससे राज्य सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है. इसलिए खनन के दुष्प्रभाव को भी केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी तय करने में आधार के रूप में शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन 15 वें वित्त आयोग ने राज्य सरकार के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.
 
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खनन से पैदा होने वाली समस्याओं को उसके दुष्प्रभाव के मद्देनजर राज्य सरकार ने 16वें वित्त आयोग को दिये गये अपने ज्ञापन में फिर से अपनी यह मांग दोहरायी है. राज्य सरकार ने 16 वें वित्त आयोग से खनन का दुष्प्रभाव पड़ने वाले क्षेत्रों के रूप में कृषि की उत्पादकता में गिरावट, स्वास्थ्य ,विस्थापन और आदिवासी समुदाय के आजीवीका के प्रभावित होने का उल्लेख किया है.
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