Ranchi : वन अधिकार अधिनियम, 2006 (Forest Rights Act - FRA) के तहत झारखंड में वन भूमि पर अधिकार देने की प्रक्रिया काफी धीमी गति से चल रही है. जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार के हालिया आंकड़े बताते हैं कि झारखंड सामुदायिक और व्यक्तिगत दोनों ही प्रकार के वन पट्टा वितरण में अन्य राज्यों की तुलना में काफी पीछे है.
सामुदायिक वन पट्टा: झारखंड सबसे पीछे
राज्य में अब तक सामुदायिक वन पट्टे के लिए करीब 4,000 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से महज 2,000 के करीब मामलों का ही निपटारा किया गया है। यानी कुल दावों के केवल 52.95% मामलों में ही जमीन का अधिकार सौंपा गया है. वन पट्टा देने के मामले में झारखंड की स्थिति चिंताजनक है. कई दावे महीनों से लंबित पड़े हैं, जबकि अन्य राज्य इस दिशा में तीव्रता से काम कर रहे हैं.
सामुदायिक वन पट्टा वितरण में शीर्ष राज्य (आवेदन बनाम स्वीकृति):
छत्तीसगढ़: 57,000 में से 53,000
मध्य प्रदेश: 42,000 में से 28,000
ओडिशा: 35,000 में से 9,000
झारखंड: 4,000 में से 2,000
व्यक्तिगत वन पट्टा में भी झारखंड की स्थिति कमजोर
झारखंड सरकार ने व्यक्तिगत वन पट्टों के मामलों में भी उदासीनता दिखाई है. राज्य को 1 लाख 7 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे. लेकिन अब तक सिर्फ 60 हजार लोगों को ही पट्टा मिल पाया है. झारखंड की तुलना में जहां वन त्क्षेत्र है वहां कई गुना अधिक पट्टे जारी किए हैं.
व्यक्तिगत वन पट्टा वितरण में शीर्ष राज्य:
छत्तीसगढ़: 8.09 लाख में से 4.08 लाख
ओडिशा: 7.01 लाख में से 4.06 लाख
तेलंगाना: 6.52 लाख में से 2.31 लाख
झारखंड: 1.07 लाख में से 60,000
सवालों के घेरे में सरकार की प्रतिबद्धता
वन अधिकार अधिनियम का उद्देश्य आदिवासी और वनाश्रित समुदायों को उनकी परंपरागत भूमि पर कानूनी अधिकार देना है, लेकिन झारखंड सरकार की धीमी कार्यप्रणाली इस उद्देश्य को पाटने में बाधा बन रही है.विशेषज्ञों का कहना है कि पट्टा वितरण की धीमी दर न केवल लाभुकों के अधिकारों का हनन है, बल्कि इससे राज्य की सामाजिक-आर्थिक योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं. अब देखना यह है कि क्या सरकार इस मोर्चे पर सक्रियता दिखाएगी या फिर आंकड़े यूं ही फाइलों में दबे रहेंगे.