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झारखंड का 135 वर्ष पुराना ऐतिहासिक हिजला मेला एवं पूज्य स्थल

Sachchidananda Soren Dumka: झारखंड की उपराजधानी दुमका से सटे हिजला पहाड़ी की तलहटी में स्थित हिजला बस्ती सदियों से संताल आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का केंद्र रही है. यहां मयूराक्षी नदी तट और हिजला पहाड़ी के मध्य 135 वर्षों से लगातार राजकीय जनजातीय हिजला मेला का आयोजन किया जा रहा है. इस ऐतिहासिक मेले की शुरुआत 3 फरवरी 1890 को ब्रिटिश हुकूमत के तत्कालीन उपायुक्त जॉन आर. कास्टेयर्स ने की थी. यह मेला संताल आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर, लोककला, संगीत, और परंपराओं को सहेजने का एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है. इसे भी पढ़ें -JSSC">https://lagatar.in/jssc-released-new-website/">JSSC

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हिजला मेला का ऐतिहासिक महत्व

हिजला मेले की स्थापना ब्रिटिश प्रशासन द्वारा की गई थी, लेकिन इसका नामकरण आदिवासी परंपराओं से जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी इस क्षेत्र के ग्राम प्रधान, मांझी, परगनैत आदि से मिलकर शासन के नियम-कानून तय करते थे. अंग्रेज़ों ने इसे "His Law" (हिज ला) कहा, जो बाद में "हिजला" नाम से प्रचलित हो गया.

दिसोम मरांग बुरु थान: संताल आदिवासियों का पूज्य स्थल

हिजला मेले के परिसर में संताल आदिवासियों का पवित्र पूजास्थल "दिसोम मरांग बुरु थान" स्थित है. यह स्थल आदिवासियों की आस्था और परंपरा का प्रतीक है, जहां ग्राम प्रधान (मांझी बाबा) और अन्य समुदाय के लोग पूजा-अर्चना कर सामूहिक फैसले लेते थे.

अंग्रेजों द्वारा पवित्र सखुआ पेड़ का कटना और अकाल

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alt="" width="600" height="400" /> ग्रामीणों के अनुसार, इस स्थल पर संताल आदिवासी अपने पूज्य सखुआ (सारजोम) पेड़ के नीचे बैठकर चर्चा और निर्णय लिया करते थे. अंग्रेजों को यह संदेह हुआ कि इतनी बड़ी संख्या में आदिवासियों का एकत्रित होना उनके खिलाफ किसी विद्रोह का संकेत हो सकता है. इसे रोकने के लिए अंग्रेजों ने सखुआ पेड़ कटवा दिया, जिससे इस क्षेत्र में अकाल और भुखमरी फैल गई. इसके बाद, आदिवासियों के विरोध के चलते ब्रिटिश सरकार को हिजला मेले की शुरुआत करनी पड़ी.

हर वर्ष राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जाने वाला मेला

झारखंड सरकार द्वारा हर वर्ष फरवरी माह में इस मेले का आयोजन किया जाता है. हिजला गांव के मांझी बाबा (ग्राम प्रधान) इस मेले का उद्घाटन करते हैं. मेला शुरू होने से पहले दिसोम मरांग बुरु थान में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें ग्रामीणों, प्रशासन और श्रद्धालुओं की सहभागिता रहती है. मेले के दौरान नायकी (पुजारी) निरंतर पूजा-अर्चना करते हैं, और इसमें सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल होते हैं.

हजारों साल पुराने जीवाश्मों की उपस्थिति

इस पवित्र स्थल पर कई सौ वर्ष पुराने जीवाश्म (फॉसिल्स) भी मौजूद हैं, जो अब पत्थरों में परिवर्तित हो चुके हैं. यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

झारखंड और भारत के लिए ऐतिहासिक धरोहर

राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव और दिसोम मरांग बुरु थान न केवल संताल आदिवासियों के लिए, बल्कि झारखंड और भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए एक अमूल्य धरोहर है. इसे भी पढ़ें -JAC">https://lagatar.in/devendranath-mahato-met-governor-in-jac-paper-leak-case-handed-over-pen-drive-along-with-demand-letter/">JAC

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