- दोनों दलों ने झोंकी ताकत, झामुमो के लिए अपनों से पार पाना बड़ी चुनौती
Praveen Kumar
Ranchi : भाजपा और इंडिया गठबंधन के लिए सबसे चर्चित राजमहल लोकसभा सीट इस बार प्रतिष्ठा की सीट बन गयी है. यह सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित है. कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट समझे जाने वाली राजमहल सीट पर बाद में झामुमो ने सेंध लगायी. अब इस सीट पर भाजपा और झामुमो में किसकी प्रतिष्ठा बचती है और किसे हार का सामना करना पड़ेगा. इसका फैसला एक जून को वहां के मतदाता करेंगे.
लोबिन हेंब्रम के चुनावी अखाड़े में आने से राजमहल का मुकाबला हुआ दिलचस्प
भाजपा ने राजमहल लोकसभा सीट से ताला मरांडी को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता ताला मरांडी की जीत सुनिश्चित करने में जोर शोर से जुटे हैं. वहीं झामुमो गठबंधन के तहत तीसरी बार इस सीट पर जीत दर्ज करने की तैयारी कर रहा है. झामुमो ने निवर्तमान सांसद विजय हांसदा पर तीसरी बार भरोसा जताया है. इससे पहले विजय हांसदा 2014 और 2019 के चुनाव में जीत दर्ज कर चुके हैं. वहीं अपनी ही पार्टी से बागी रुख अख्तियार किये झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम के चुनावी अखाड़े में कूदने से राजमहल का मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
राजमहल लोकसभा के चुनाव में मुद्दे
राजमहल लोकसभा वैसे तो एक आदिवासी बहुल इलाका है, लेकिन यहां लंबे समय से अवैध तरीके से बांग्लादेशियों के घुसपैठ का मुद्दा काफी चर्चा में रहा है. हाल के दिनों में यह आदिवासी जमीन के कब्जे के मामले में भी सुर्खियों में रहा है. इसके अलावा पलायन भी इस इलाके का अहम मुद्दा है. वहीं क्षेत्र में मानव तस्करी का मुद्दा भी जोर-शोर से उठता रहा है. हाल के दिनों में राजमहल लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले बोरियो, बरहेट और पतना जैसे इलाकों से मानव तस्करी के कई मामले आये हैं. इस पर रोकथाम बहुत बड़ी चुनौती है. अवैध खनन के मामले भी चुनाव के मुद्दे के रूप में समाने आ रहे हैं. इसके अलावा राजमहल को पश्चिम बंगाल से जोड़ने के लिए गंगा नदी पर पुल के निर्माण की मांग वर्षों से उठती रही है. यही हाल साहिबगंज रेलखंड का भी है. देश की सबसे पुरानी रेल खंडों में शुमार होने के बावजूद इसका अब तक अपेक्षित विकास नहीं हो सका है.
राजमहल का चुनावी समीकरण
राजमहल लोकसभा क्षेत्र की बड़ी जनसंख्या गांवों में रहती है. इस सीट पर जनजीवन बेहद ही सामान्य है. पश्चिम बंगाल से सटे होने के कारण यहां बंगाली भाषी लोगों का भी बड़ा प्रभाव रहा है. साथ ही यहां अल्पसंख्यकों और ईसाई मिशनरी का प्रभाव भी है. राजमहल लोकसभा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा साहिबगंज और पाकुड़ जिले में पड़ता है. वहीं सुंदर पहाड़ी का इलाका गोड्डा जिला और गोपीकांदर का इलाका दुमका जिला में पड़ता है. राजमहल विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की मजबूत पैठ है. 2019 के चुनाव में यहां से भाजपा ने 1 लाख 3 हजार 62 मत लाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रत्याशी को 22 हजार 800 मतों के अंतर से हराया था.
झामुमो प्रत्याशी को अपनों से ही खतरा
राजमहल संसदीय क्षेत्र अंतर्गत बोरियो विधानसभा का प्रतिनिधित्व झामुमो विधायक लोबिन हेब्रोम कर रहे हैं. इस लोकसभा चुनाव में अपने ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ वे चुनाव मैदान में खड़े है. ऐसे में झामुमो को पार्टी के भीतर से ही चुनैती मिल रही है. लोबिन के साथ झामुमो के वैसे कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समुह है, जो पार्टी के लिए लड़ता रहा. लेकिन पार्टी ने कभी उन्हें तरजीह नहीं दी. जमीन की हेराफेरी के खिलाफ लोबिन अपने ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गयी. वहीं निवर्तमान सांसद विजय हांसदा के खिलाफ लोगों की नारजगी का लाभ लोबिन को मिल सकता है.
ताला मरांडी के सामने हैं कई चुनौतियां
ताला मरांडी के सामने जीत के लिए जी तोड़ मेहनत, नाराज चल रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के साथ ही खासकर राजमहल, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर विधानसभा क्षेत्र में निकटतम प्रतिद्वंदी से काफी अंतरों से जीत हासिल करने की सबसे बड़ी चुनौती रहेगी, क्योंकि यही तीन विधानसभा क्षेत्र हैं जहां ताला मरांडी ने काफी मतों के अंतर से अपने प्रतिद्वंदी को पीछे धकलने में कामयाबी हासिल की तो संसद पहुंचने का उनका रास्ता साफ हो जाएगा. राजमहल संसदीय क्षेत्र का पाकुड़ विधानसभा अल्पंसख्यक बहुल है. बरहेट विधानसभा झामुमो का गढ़ है और यहां का प्रतिनिधित्व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कर रहे हैं. हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कार्यकर्ताओं निरसा देखी जा रही है.
2019 को लोस चुनाव में किस विस में किसको कितने मिले थे वोट
विधानसभा झामुमो भाजपा
राजमहल 80262 103062
बोरियो 76301 65360
बरहेट 62921 49299
लिट्टीपाड़ा 71504 55035
पाकुड़ 125966 76711
महेशपुर 89635 58212
लोकसभा में कब किस पार्टी का रहा कब्जा
- 1957 कांग्रेस
- 1962 झारखंड पार्टी
- 1967 झारखंड पार्टी
- 1971 कांग्रेस
- 1977 जनता पार्टी
- 1980 कांग्रेस
- 1984 कांग्रेस
- 1989 झामुमो
- 1991 झामुमो
- 1996 कांग्रेस
- 1998 भाजपा
- 1999 कांग्रेस
- 2004 झामुमो
- 2009 भाजपा
- 2014 झामुमो
- 2019 झामुमो
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