Kaushal Anand
Ranchi : बीते विधानसभा चुनाव से ही झामुमो कांग्रेस को इस बात का एहसास कराता रहा है कि वह झारखंड में बड़े भाई की भूमिका में है, इसलिए लोकसभा में झामुमो को अधिक सीटें चाहिए. मगर कांग्रेस ने एक न सुनी. झामुमो के लाख प्रयास और दावों के बावजूद उसे कांग्रेस ने पांच सीटें ही दीं और खुद सात सीटों पर चुनाव लड़ी. मगर कांग्रेस सात में महज दो सीट जितने में सफल रही. जबकि झामुमो ने पांच में तीन सीट जीत कर फिर यह एहसास करा दिया कि अब भी झारखंड में झामुमो बड़ा भाई ही है. हालांकि कांग्रेस भले ही सामान्य सीटों पर जीत दर्ज नहीं कर पायी हो, मगर अपने वोट प्रतिशत में काफी सुधार किया है. जिसका लाभ विधानसभा चुनाव में उसे मिल सकता है.
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अब झामुमो की नजर विधानसभा पर
लोकसभा चुनाव परिणाम से उत्साहित झामुमो की नजर अब विधानसभा पर टिक गयी है. इस चुनाव में झामुमो ने जहां बहुत कुछ खोया तो उससे अधिक पा भी लिया है. पिछली बार महज एक सीट जीतने में सफल रहा झामुमो इस बार तीन सीट जीतकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद हताश और निराश झामुमो को कल्पना सोरेन के रूप में संजीवनी मिल चुका है. कल्पना सोरेन ने अपनी उपयोगिता और लोहा पार्टी को मनवा लिया है कि निकट भविष्य में वह ही सोरेन और झामुमो परिवार की नयी पौध हैं. इसलिए पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने भी गत दिवस स्पष्ट कर दिया है कि अब झामुमो की नजर विधानसभा पर है. झामुमो और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा को पांचों आदिवासी सीटों पर धूल चटा दिया. झामुमो ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब सरकार और पार्टी के पास समय बहुत कम बचा है. शेष बचे चार-पांच महीने में सरकार को हेमंत सोरेन के सभी अधूरे काम पूरा करना है. स्पष्ट है कि झामुमो का निकट भविष्य में क्या इरादा है.
कल्पना के आगामी भूमिका पर रहेगी सबकी नजर
कल्पना मुर्मू सोरेन भले ही पांच महीने के लिए ही सही मगर वह विधानसभा की दहलीज पर पहुंच गयीं. अब कल्पना सोरेन सदन के अंदर अपने तेवर और अंदाज में दहाड़ेंगी. चुनाव जीतने के बाद और आगामी विधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन की पार्टी, चुनाव और सरकार में क्या भूमिका होगी. इसकी चर्चा बहुत अधिक है. राजनीतिक गलियारे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि झारखंड सरकार का नेतृत्व परिवर्तन होगा. सोरेन परिवार में इसकी कोई सुगबुगाहट नहीं है. क्योंकि सोरेन परिवार और खुद पार्टी यह मानकर चल रही है कि मात्र चार महीने के लिए नेतृत्व परिवर्तन करना और कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन को नाराज करना कहीं से उचित नहीं होगा. अब जो होगा वह विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा.
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