New Delhi : इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने पूर्व में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में एक बयान दिया था, जिससे काफी विवाद हो गया था. सुप्रीम कोर्ट जज खिलाफ आंतरिक जांच शुरू करने की प्रक्रिया में था. खबरों के अनुसार उसी समय राज्यसभा सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजा. इसके बाद कोर्ट ने इस योजना को ठंडे बस्ते मे डाल दिया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले के जानकार लोगों ने बताया कि मार्च में राज्यसभा द्वारा भेजे गये पत्र में कहा गया कि इस तरह की कार्यवाही शुरू करने का संवैधानिक अधिकार सिर्फ राज्यसभा के सभापति के पास है और यह संसद और राष्ट्रपति के दायरे में आता है.
इस पत्र के मिलते ही सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव के खिलाफ आंतरिक जांच कराने की योजना रोक दी. हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इस मामले में प्रतिकूल रिपोर्ट दी थी. गंभीर आपत्तियों वाली रिपोर्ट के बाद भारत के तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने जांच प्रक्रिया शुरू की थी.
इससे पहले फरवरी में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस मामले में कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव को पद से हटाने का अधिकार केवल संसद के पास है.
श्री धनखड़ ने कहा था कि 13 दिसंबर, 2024 को उन्हें एक प्रस्ताव का बिना तारीख वाला नोटिस मिला है, जिस पर राज्यसभा के 55 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. इस प्रस्ताव में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव को संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत पद से हटाने की गुहार लगाई गयी है.
जगदीप धनखड़ ने कहा कि इस विषय पर निर्णय लेने का अधिकार संविधान के अनुसार केवल राज्यसभा के सभापति को है. आगे यह मामला संसद और राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आता है. विपक्ष के 55 सांसदों ने जस्टिस यादव के कथित कदाचार को लेकर प्रस्ताव राज्यसभा में पेश किया था.
पिछले साल 8 दिसंबर को विहिप के एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि भारत केवल बहुसंख्यक (हिंदू समुदाय)की इच्छा के अनुसार ही चलेगा. उन्होंने मुसलमानों का उल्लेख करते हुए कठमुल्ला’ जैसे विवादास्पद शब्द का इस्तेमाल किया था. चार शादियां व तीन तलाक जैसी प्रथाओं का हवाला देते हुए कहा था कि यह देश के लिए घातक हैं. उन्होंने प्रस्तावित यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के तहत इन्हें खत्म करने की बात कही थी.
उन्होंने कहा था कि केवल हिंदू ही इस देश को 'विश्व गुरु बना सकता है. इस बयान को लेकर उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और न्यायिक निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया था.
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