Search

पिता को याद कर भावुक हुईं कारगिल युद्ध के शहीद बिरसा उरांव की बेटी

कारगिल युद्ध में शहीद गुमला के जवान बिरसा उरांव की बेटी से शुभम संदेश की खास बातचीत

Pravin Kumar Ranchi: वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में झारखंड के शहीदों को सरकारी सम्मान आज भी नहीं मिल सकी है. इन अमर शहीदों की वीरगाथा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई विशेष पहल नहीं की गई. शहीद की बेटी होने के नाते मैं चाहती हूं कि झारखंड सरकार इन शहीदों की याद में कुछ ऐसा करे, जो मेरे पिता सहित राज्य के अमर शहीदों की गौरव गाथा को अलग पहचान दिलाये. उक्त बातें कारगिल युद्ध में शहीद गुमला जिले के सिसई प्रखंड के जतराटोली शहिजाना के बेर्री गांव निवासी बिरसा उरांव की बेटी पूजा विभूति उरांव ने शुभम संदेश से बातचीत में कही. शहीद बिरसा उरांव ऑपरेशन विजय कारगिल में दो सितंबर 1999 में शहीद हो गये थे. बिरसा उरांव हवलदार के पद पर बिहार रेजिमेंट में थे. जवान से उनकी लांस नायक व हलवदार पद पर प्रोन्नति हुई थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय मध्य विद्यालय बेर्री व मैट्रिक की परीक्षा नदिया हिंदू उवि लोहरदगा से 1983 में की थी. शहीद बिरसा उरांव की दो संतान हैं. वर्तमान में उनकी बड़ी बेटी पूजा विभूति उरांव वर्ष 2019 में दारोगा के पद पर बहाल हुई हैं. वे वर्तमान में रांची के अरगोड़ा थाने में पोस्टेड हैं. उन्होंने बताया कि मेरा भाई चंदन उरांव सिविल सेवा की तैयारी कर रहा है. मैं रांची में ही पढ़ाई कर पुलिस सेवा में आई हूं. पिता बिरसा उरांव को याद करते हुए पूजा विभूति उरांव की आंख डबडबा गईं. वह कहती हैं पिता के शहीद होने के बाद मेरे मामा और नाना ने हमारी सारी जिम्मेदारी उठायी. कभी किसी जिद की कमी महसूस नहीं हुई. लेकिन जीवन में पिता के सूनेपान को हमेशा महसूस किया और उनका ना होना हमें खलता रहा. जब मेरी शादी हो रही थी तब मैं खूब रोई, देश की सेवा का जज्बा पिता से ही मिला. इस बात का हमें गर्व है पिता देश की सेवा में आपनी जान निछावर कर दिए. उस समय मेरी उम्र 7 साल के करीब थी. आखरी बार पिता से युद्ध के पहले जब वह दिवाली पर घर आए थे तब मिली. पिताजी ने हम दोनों भाई-बहनों को गोद में उठा कर प्यार किया, दूसरे दिन वह सीमा पर जाने के लिए निकल गए. जब मै थोड़ी बड़ी हुई तब इस इस बात का एहसास हुआ कि मेरे पिता ने बहुत बड़ा काम किया. गांव के लोग गर्व महसूस करते हैं. उनके नाम पर गांव में स्मारक भी बनवाया गया है. पिता की शहदात ही देश सेवा में खुद को समर्पित करने के जज्बे जगाया. आज मैं पुलिस सेवा में हूं ताकि राज्य की सेवा कर सकूं.

सरकार से क्या उम्मीद करती है शहीद की बेटी

विभूति उरांव पुलिस सेवा में हैं लेकिन एक बेटी के तौर पर वह कहती हैं, मैं सरकार से यही उम्मीद करती हूं कि शहीदों को पहचान दिलाने के लिए सरकार पहल करे. उनके नाम पर स्टेडियम ,स्मारक बनाएं . आज हम देश के अंदर चैन से तमाम तरह की गतिविधियां कर रहे हैं. वह बॉर्डर पर तैनात जवानों की बदौलत ही है. उनकी उनकी वीर गाथा ही युवाओं को राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी. [wpse_comments_template]  

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp