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किरीबुरु : आइइडी विस्फोट में घायल सहायक कमांडेंट हैं गरीबों के मददगार

Kiriburu (Shailesh Singh) : सीआरपीएफ 197 बटालियन के सहायक कमांडेंट सीपी तिवारी 24 जुलाई की सुबह लगभग 7.30 बजे सर्च ऑपरेशन के दौरान भाकपा माओवादियों द्वारा लगाये गये 10-10 किलो के शक्तिशाली आइइडी विस्फोट में स्प्लिंटर लगने से गंभीर रुप से घायल हो गये हैं. उनके गाल को स्प्लिंटर चीरते हुये पार हो गई थी. उनका इलाज रांची के मेडिका अस्पताल में चल रहा है. अब वे खतरे से बाहर बताये जा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि तुम्बाहाका जंगल क्षेत्र में नक्सलियों की गतिविधियों की सूचना मिलने के बाद तय एसओपी का पालन करते हुये सहायक कमांडेंट सीपी तिवारी अपने जवानों के साथ सर्च अभियान चला रहे थे. इसे भी पढ़ें : बंगाल">https://lagatar.in/fear-of-cyclonic-storm-again-in-bay-of-bengal-it-will-cause-heavy-rains-in-12-states/">बंगाल

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सारे जवान एक-दूसरे से काफी दूरी पर थे. तभी नक्सलियों द्वारा शक्तिशाली आइइडी विस्फोट किया गया, जिसमें एक स्प्लिंटर लगने से सहायक कमांडेंट गंभीर रुप से घायल हो गये थे. घटना के बाद हेलिकॉप्टर से उन्हें रांची मेडिका अस्पताल भेजा गया. अगर जवान एक-दूसरे से अधिक दूरी पर नहीं रहते तो बड़ी घटना घट सकती थी. शायद नक्सली भी सहायक कमांडेंट सीपी तिवारी की कार्य प्रणाली, आदिवासी व मानवता प्रेमी, गरीब ग्रामीणों की सेवा व ग्रामीणों में बढ़ती उनकी लोकप्रियता से घबरा कर उन्हें लक्ष्य कर आइइडी विस्फोट किया था, ताकि बड़े नेतृत्वकर्ता को नुकसान पहुंचाया जा सके. इसे भी पढ़ें : किरीबुरु">https://lagatar.in/kiriburu-the-team-that-came-from-west-bengal-to-drive-away-elephants-operated-for-hours/">किरीबुरु

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उल्लेखनीय है कि सहायक कमांडेंट सीपी तिवारी जितने बहादुर और अपने काम के प्रति ईमानदार व वफादार हैं, देश सेवा, देश के दुश्मनों के खिलाफ लड़ने एवं बहादुरी का जज्बा भी उनके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ है. उससे कहीं ज्यादा वे मानव प्रेमी, सहयोगी, गरीबों के मददगार एवं मसीहा हैं. सारंडा में वे जब भी नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में निकलते थे, तो सुदूरवर्ती गांवों में रहने वाले गरीबों से मिलकर यथासंभव उनकी मदद करते और अपनी कुशल व्यवहार से आदिवासियों के दिल में बस जाते थे. अगर उनके कैंप में कोई गरीब किसी प्रकार की मदद हेतु आता था, तो उसके लिये वे सदैव खडे़ रहते थे. किसी को निराश होकर वापस नहीं जाने देते थे. सारंडा के ग्रामीण उनके व्यवहार से काफी प्रभावित रहते थे. [wpse_comments_template]

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