- धनबाद के ठेकेदार ने मोबाइल टावर लगवाया, मजदूर परेशान
Kiriburu (Shailesh Singh) : गुआ थाना अन्तर्गत लिपुंगा गांव के 12 मजदूरों का पैसा बीएसएनएल कंपनी का मोबाईल टावर लगाने वाला धनबाद का ठेकेदार द्वारा अब तक नहीं दिये जाने से मजदूरों व ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्याप्त है. मजदूर दिवस के दिन गांव के सामाजिक कार्यकर्ता दारा सिंह चाम्पिया के नेतृत्व में गांव के पिडि़त मजदूर सुखलाल चाम्पिया, जिंगरन चाम्पिया, गुरा चाम्पिया, बाबूलाल चाम्पिया, गुरा जेराई, कोलाय चाम्पिया, मोतरा चाम्पिया, मागेया चाम्पिया, रंजीत चाम्पिया, बुधराम चाम्पिया, बांगरा चाम्पिया एवं संजय चाम्पिया ने इसके खिलाफ आवाज उठाते हुये बताया की लिपुंगा गांव में धनबाद का ठेकेदार अमित और श्रवण द्वारा बीएसएनएल का टावर लगाने का कार्य प्रारम्भ किया गया था. इसके लिये गड्ढा़ खुदाई हेतु हम मजदूरों को कार्य पर लगाया था. कुछ को पेटी पर तो कुछ को दिहाड़ी पर काम लगाया. हम सभी होली से पूर्व काम कर दिये. लेकिन आज तक हमारा मजदूरी का लगभग 15-20 हजार रूपये उक्त ठेकेदार द्वारा नहीं दिया गया.
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ठेकेदार से अलग-अलग नम्बर से फोन कर पैसा मांगा जाता है तो वह फोन काटकर नम्बर को ब्लौक लिस्ट में डाल दे रहा है. ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन हमारा बकाया मजदूरी का पैसा दिलाने का कार्य करे, अन्यथा हम ग्रामीण उक्त टावर का अधूरा कार्य को पूर्ण नहीं होने देंगे. पैसा नहीं मिला तो टावर का समानों को जब्त करने का कार्य करेंगे. मजदूरों ने बताया की तमाम योजनाओं में ठेकेदार द्वारा मजदूरों का शोषण किया जा रहा है, मजदूरों को सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी नहीं दिया जा रहा है. सरकार व संबंधित विभाग इस मामले में मौनी बाबा बन तमाम आदिवासी व अन्य मजदूरों का भारी शोषण कराने का कार्य कर रही है.
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कुम्बिया के ग्रामीणों को 11-12 माह से नहीं मिला राशन
- नाराज लोगों ने राशन कार्ड के रुप में झारखण्ड सरकार व झामुमो को दिखाया आईना
Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा के कुम्बिया गांव के दर्जनों ग्रामीणों व महिलाओं ने आज संगठित होकर झारखण्ड सरकार एवं झामुमो के कुछ संदिग्ध नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोला. ये ग्रामीण आज सुबह अपने-अपने हाथों में राशन कार्ड पकड़ दिखाते हुये झारखण्ड सरकार व झामुमो नेताओं से सवाल किया है कि वह पिछले 11-12 महीनों से सरकारी राशन नहीं मिलने की आवाज उठाते आ रहे हैं, लेकिन आज तक सरकार व उनकी प्रशासन ने सुधी क्यों नहीं ली. यह सिर्फ कुम्बिया गांव का मामला नहीं है, बल्कि सारंडा के चुर्गी, मम्मार आदि गांवों का भी है. हम गरीबों को एक रूपये की दर से मिलने वाला सरकारी राशन कौन खा जा रहा है. कल झामुमो के नेता हमारे गांव आये और कुछ ग्रामीणों को वनाधिकार का पट्टा इस बार दिलवाने की झूठी बात कहकर उनके हाथों में झामुमो का झंडा पकड़वा फोटो खिंचा वाहवाही लूट रहे हैं. ऐसे लोग पहले यह बताये की जब वह एक रूपये का सरकारी चावल नहीं दिला पा रहे हैं तो वनाधिकार का पट्टा कैसे दिला सकेंगे.
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वनाधिकार का पट्टा से संबंधित मामला एनजीटी में लंबित है, यह उतना आसान नहीं है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी सारंडा के इन्क्रोचमेंट गांव के लोगों को वनाधिकार का पट्टा दिलाया था लेकिन कुछ दिन बाद हीं उन सारे पट्टा को सरकार व उनकी प्रशासन ने रद्द कर दिया था. झारखण्ड सरकार ने भी दो बार हम आपके द्वार कार्यक्रम के माध्यम से वनाधिकार का पट्टा हेतु आवेदन लिया लेकिन आज तक पट्टा नहीं मिला. हम ग्रामीण बेवकूफ नहीं हैं.
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ग्रामीणों ने कुछ झामुमो नेताओं पर गंभीर आरोप लगाते हुये कहा कि वह सारंडा के विभिन्न गांवों के कुछ शिक्षित व गरीब बेरोजगारों से सेल की खदानों में नौकरी लगाने के नाम पर लाखों रुपये की ठगी की लेकिन एक का भी नौकरी नहीं दिला पाया. ऐसे लोगों का पैसा भी वह आज तक वापस नहीं किया. ऐसे लोगों को पहले गरीबों का सारा पैसा वापस कर देना चाहिये तब वोट मांगने गांव गांव घुमना चाहिये.
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ग्रामीणों ने कहा कि हम विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों व कार्यकर्ताओं के गांव में आने व प्रचार-प्रसार करने के पक्षधर हैं. लेकिन एक नैतिकता भी उनमें होनी चाहिये. लोकतंत्र में हमें वोट देने का अधिकार है एवं हम मतदान करेंगे भी. लेकिन किसी के बहकावे में नहीं. जो हमारे लिये बेहतर होगा, हम सभी मिलकर उस प्रत्यासी के लिये वोट करेंगे.
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मजदूर संगठनों ने सादे समारोह में मनाया मजदूर दिवस
- शहीद मजदूरों को नमन किया और दी श्रद्धांजलि
Kiriburu (Shailesh Singh) : झारखण्ड मजदूर संघर्ष संघ, एटक, बीएमएस आदि मजदूर संगठनों ने 1 मई को मजदूर दिवस के रुप में मनाया. इस दौरान श्रम करते मौत के शिकार हुये मजदूरों को श्रद्धांजलि अर्पित की. मजदूर नेता राजेन्द्र सिंद्रिया, अफताब आलम आदि ने बताया की आज का दिन मजदूरों की कड़ी मेहनत को सम्मानित करने का दिन है. श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य के साथ ही मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए भी इस दिन को मनाते हैं, ताकि मजदूरों की स्थिति देश-दुनिया में मजबूत हो सके. मजदूर किसी भी खदान, उपक्रम, राज्य और देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं.
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लगभग हर काम मजदूरों के श्रम पर निर्भर करता है. मजदूरों के पक्ष में 1886 से पहले अमेरिका में आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इस आंदोलन में अमेरिका के मजदूर सड़कों पर उतर गए. अपने हक के लिए बड़ी संख्या में मजदूर हड़ताल पर चले गए. इस आंदोलन की मुख्य वजह मजदूरों की कार्य अवधि थी. उस दौरान मजदूर एक दिन में 15-15 घंटे तक काम करते थे. इस आंदोलन के दौरान मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई मजदूरों को जान गंवानी पड़ी थी. इस घटना के तीन साल बीतने के बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई.
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इस बैठक में यह तय किया गया कि हर मजदूर से प्रतिदिन 8 घंटे ही काम लिया जाएगा. वहीं सम्मेलन के बाद 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला लिया गया. इस दिन हर वर्ष मजदूरों को छुट्टी देने का भी फैसला लिया गया. बाद में अमेरिका के मजदूरों की तरह अन्य कई देशों में भी मजदूरों के लिए 8 घंटे काम करने के नियम को लागू कर दिया गया. सभी ने कहा कि सेल प्रबंधन भी हम मजदूरों का शोषण निरंतर करते हुये हमारी अनेक सुविधाओं से वंचित कर वेज-रिवीजन जैसे मामलों का समाधान नहीं कर रही है. इस दौरान मजदूर अपने कार्यालय में सामूहिक भोजन कर आपसी एकता को बनाये रखने का संकल्प लिया.
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