Kiriburu (Shailesh Singh) : जंगल काटोगे, जलाओगे तो कैसे यह आर्थिक लाभ पाओगे… एशिया का सबसे बड़ा साल का जंगल सारंडा अपने वन उत्पादों के जरिये जंगल में बसे ग्रामीणों को आर्थिक उन्नति को अग्रसर करते हुये उनकी तमाम प्रकार की जरुरतों को काफी हद तक पूरा कर रहा है. लेकिन वहीं ग्रामीण सारंडा जंगल को माफियाओं के हाथों कटने व जलाये जाने से बचाने में न सिर्फ असफल रह रहे हैं, बल्कि कुछ ग्रामीण तो स्वयं भी इस अनैतिक कार्य में लिप्त हैं. 29 जून को मेघाहातुबुरु में लगने वाली साप्ताहिक शनिचरा हाट में सारंडा के सुदूरवर्ती गांवों से भारी तादाद में ग्रामीण वन उत्पादों को बेचने हेतु लाये हैं. इसमें विभिन्न प्रजातियों के आम, जामुन, पका कटहल, आमड़ा, रूटका, कुशुम, नींबू, पपीता, सूजना साग, जंगल में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के साग आदि शामिल हैं.
इसे भी पढ़ें : गिरिडीह : गैस सिलिंडर से घर में लगी आग, बाल-बाल बचे लोग
![](https://i0.wp.com/lagatar.in/wp-content/uploads/2024/06/Saranda-Forest-1-1.jpg?resize=600%2C400&ssl=1)
30 से 50 रुपये किलो बिक रहा आम
यह सारे वनोत्पाद जंगल होने की वजह से ग्रामीणों को मिल पा रहे हैं, जिसे बेचकर वे पैसा प्राप्त कर अन्य जरूरी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. आज बाजार में आम 30 से 50 रुपये किलो बिक रहा है. रूगड़ा-रुटका की कीमत लगभग 600 रुपये किलो है. जंगल नहीं होगा तो यह लाभ मिलना ग्रामीणों को बंद हो जायेगा. इससे सारंडा के हजारों परिवारों के सामने बेरोजगारी व भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी. यह वनोत्पाद न सिर्फ ग्रामीणों की आर्थिक उन्नति का स्रोत है, बल्कि यह पूरे परिवार को पौष्टिक आहार भी देता है. जंगल न सिर्फ कटने, बल्कि जलाये जाने से भी वनोत्पादों को भारी नुकसान पहुंचता है. ऐसी स्थिति में सोने का अंडा देने वाली सारंडा जंगल को खत्म कर देना है या फिर इस जंगल को और घना तथा विशाल बनाकर सालों भर तथा अनंत काल तक इसका लाभ हजारों परिवार को लेना है, यह सारंडा के ग्रामीणों को तय करना है.