Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा, कोल्हान एंव चाईबासा (दक्षिण) वन प्रमंडलों के जंगलों से भारी पैमाने पर सागवान, बीजा, साल, करम, गम्हार आदि पेंड़ों की कटाई धड़ल्ले से हो रही है. कीमती लकड़ियों को काट तथा तस्करी कर जगन्नाथपुर क्षेत्र के लकड़ी माफिया फर्निचर उद्योग में चला रहे है. इसके अलावे ये माफिया जगन्नाथपुर से झारखंड, उड़ीसा के अलावे अन्य राज्यों में भी अवैध फर्नीचर बनाकर तथा लकड़ी की तस्करी कर रहे है. इससे ये मोटी कमाई तो कर ही रहे है पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह सारा अवैध काम वन विभाग के कुछ कर्मचारियों व पदाधिकारियों की सहमति से तथा उनकी नाक के नीचे निरंतर जारी है.
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सागवान के नाम पर ग्राहकों को लूट रहे माफिया
सिर्फ जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र के ढीपासाई, रहिमाबाद, उरांवसाई आदि बस्तियों में दर्जनों स्थानों पर अवैध फर्निचर उद्योग वृहत पैमाने पर वर्षों से संचालित हो रहे है. यहां के फर्नीचर विक्रेता व लकड़ी माफिया खुलेआम बाहर से कारीगर को बुला कर फर्निचर बना फर्जी कागजात के साथ उसे निरंतर तस्करी व बेच रहे हैं. इसके खिलाफ वन विभाग कोई कार्रवाई नहीं करती है. फर्निचर के इस अवैध कारोबार में लिप्त माफिया सागवान के नाम पर दूसरे पेड़ों की लकड़ियों से फर्निचर बना कर सागवान की रंग में रंग ग्राहकों को बेच रहे है. उनसे मोटी रकम भी वसूल रहे हैं. तस्करी के लिए लकड़ी इन जंगलों से कटवाकर, राईका, जेटेया व मोंगरा के रास्ते जगन्नाथपुर में बेधड़क पहुंचाया जा रहा है. इस अवैध तस्करी के खिलाफ वर्षों पूर्व गुआ के तत्कालीन रेंजर जीएल भगत ने जगन्नाथपुर के विभिन्न क्षेत्रों में औचक छापेमारी की थी जिसमें भारी पैमाने पर लकड़ी बरामद किया गया था एंव माफियाओं में दहशत फैल गई थी. लेकिन उसके बाद से वन विभाग की एक भी कार्रवाई नहीं होने से यह अवैध धंधा भारी पैमाने पर फल-फूल रहा है.
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फर्निचर 60-60 हजार रुपये में बेची जा रही है
जिससे सारंडा समेत कई जंगलों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है. सूत्रों का कहना है कि अगर वन विभाग के उच्च अधिकारी अपनी पहचान छुपा तथा आम ग्राहक बनकर जगन्नाथपुर के इन अवैध फर्निचर बनाने की फैक्ट्री का जायजा लेंगे तो उनके भी होश उड़ जायेंगे. सागवान के नाम पर दूसरी लकड़ियों के बॉक्स पलंग, सोफा एंव डाईनिंग सेट लगभग 60-60 हजार रुपये में बेची जा रही है. इसके अलावे चौखट, दरवाजा, खिड़की आदि निर्मित फर्निचर को विभिन्न बस्तियों में स्थित गोदामों में रखा जाता है, जहां से अन्यत्र भेजा व महंगे दामों में बेचा जाता है. जंगल से लकड़ी काट व उसे चिराई कर लाने वाले मजदूरों को काफी कम पैसा दिया जाता है. जंगल से लकड़ी साइकिल अथवा चार चक्का वाहन से निरंतर लाया जा रहा है. जब तक इन अवैध फर्निचर उद्योगों को वन विभाग बंद नहीं कराती है तब-तक जंगलों से लकड़ियों की कटाई पर रोक लगाना संभव नहीं होगा.
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