Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा जंगल हर मौसम में अपने वनवासियों की जीविकोपार्जन व आर्थिक उन्नति हेतु विभिन्न प्रकार के वनोत्पाद देती है. लेकिन दुःख की बात यह है कि करोड़ों-अरबों रुपये का यह वनोत्पाद ग्रामीणों की जानकारी, व्यापारिक सोच एवं पर्याप्त बाजार उपलब्ध नहीं होने की वजह से जंगल में हीं बर्बाद व नष्ट हो जा रहे है.
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गर्मी के मौसम में सारंडा जंगल के तमाम क्षेत्रों में विभिन्न प्रजाति के आम पेड़ों से गिरकर बर्बाद हो रहे हैं. जंगल में पके आम को मुफ्त में भी कोई लेने वाला नहीं है. जबकि पके आम व इससे बना पापड़ अर्थात अमावट को हर उम्र वर्ग के लोग पसंद करते हैं. भारत के हर हिस्से में आम पापड़ बेचे और खरीदे जाते हैं और ये व्यापार केवल किसी एक राज्य तक ही सीमित नहीं है और इसकी मांग हर राज्य में है.
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कच्चे आम से ग्रामीण आचार, आम चूर्ण पाउडर आदि बनाने के अलावे पक्के आम से अमावट अथवा आम का पापड़ बनाकर तथा उसे बेच कर आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते है. वर्तमान समय में सारंडा के सभी क्षेत्रों में बडे़ पैमाने पर आम पेड़ के नीचे पक्के आम गिरकर बीछे पडे़ हैं. सिर्फ जरूरत है इसके प्रोसेसिंग मशीन की. अगर मशीन नहीं भी रहे तो ग्रामीण पके आम के रस को किसी बर्तन या पात्र में गारकर, उसे धूप में सुखाकर अमावट अथवा पापड़ बनाकर बेच सकते हैं. इसके लिये ग्रामीणों को कोई पूंजी नहीं लगानी पडे़गी. सिर्फ थोडी़ मेहनत की जरूरत है. वन विभाग, सरकार अथवा विभिन्न खदान प्रबंधन सारंडा के ग्रामीणों को इस व्यवसाय को प्रारम्भ करने के लिए प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग मशीन उपलब्ध करवा सकती है. ताकि ये ग्रामीण अपना व्यापार प्रारम्भ कर सके.
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फोटोः-जिसे मुफ्त में भी कोई लेने वाला नहीं