Kiriburu : फगुआ गीत के साथ जब ढोलक, झाल और मंजीरे की धुन मेघाहातुबुरु के मीना बाजार में गूंजी तो हर आदमी फगुआ के रंग में रंग गया. फगुआ सिर्फ गीत नहीं है बल्कि हमारी परंपरा और विरासत है. आधुनिकता के साथ-साथ हमारी परंपरा और विरासत गायब होती जा रही है. अब तो ना ही वह गीत रहे और ना ही उनको गाने वाले. अब तो फगुआ की जगह डीजे और फूहड़ गीतों का शोर सुनाई देता है.
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गांव में भी विलुप्त हो रही है परंपरा
शहर की तो बात छोड़ ही दें, गांव में भी अब ये परंपरा खत्म हो रही है. लेकिन इस परम्परा को वर्षों से लेकर अब तक किरीबुरु-मेघाहातुबुरु में बिहार व उत्तर प्रदेश के कुछ लोगों ने बचाकर रखा है. मीना बाजार में व्यास रामाशिष, शिव शंकर सिंह, भोला प्रसाद, शिव प्रसाद गुप्ता, जीतेन्द्र भगत, अजय गिरी, मनोज सिंह, वीरेन्द्र मिश्रा, उमेश भगत, सुरेश ठाकुर, पलटन गुप्ता, रवि जयसवाल, बसंत प्रसाद, ताड़क गिरी, राम भवन, राजकुमार राम, लालाजी, बब्लू गुप्ता और दर्जनों लोगों ने फगुआ गीत की परम्परा निभाते हुये ढोलक, झाल, मंजीरे की धुन पर होली गीत गाया. सुमिरन श्री भगवान, नदिया सरजू के तीरा आज बिरज में होली रे, केकय हाथै कनक पिचकारी केकैय हाथै अबीरा, बसवरिया से कागा उड़ भागा मोरा सइया अभागा न जागा, छलिया का वेश बनाया, श्याम होली खेलने आए फगुआ गाकर लोगों का मानमोह लिया. फगुआ गीत को होली के दिन तक विभिन्न मुहल्लों में जाकर समाज के लोग गाते रहेंगे.