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किरीबुरू : बीड़ी, सियाली, साल पत्तों को बेच जीवन यापन करने को विवश है सारंडा के ग्रामीण

Kiriburu (Shailesh Singh)सारंडा जंगल की बीड़ी, सियाली, साल आदि पत्तों को बेच अपना जीवन यापन करने को विवश है सारंडा के सैकड़ों ग्रामीण. इन ग्रामीणों के घंटों की कड़ी मेहनत के बावजूद इन्हें वन उत्पाद का उचित कीमत नहीं मिल पा रहा है. जबकि ये सारंडा के घने जंगलों में विषैले जीव-जन्तुओं से सामना करते हुए पत्ता तोड़ने का काम कर रहे हैं. सारंडा जंगल में पत्ता तोड़ने आए मनोहरपुर प्रखंड के दउतुम्बा, कमारबेड़ा, गुचुड़ी, गोविन्द चन्द्र नायक, गीता देवी आदि ने बताया की वह वर्षों से यह कार्य कर न सिर्फ अपना व परिवार का पेट पाल रही है बल्कि अपने बच्चों को भी पढ़ाने का कार्य करती है. इसे भी पढ़ें :बहरागोड़ा">https://lagatar.in/baharagora-despite-ngts-ban-illegal-sand-trade-is-going-on-indiscriminately/">बहरागोड़ा

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साल पत्ता का सौ प्लेट पर पंद्रह रुपये मिलता है

[caption id="attachment_758145" align="aligncenter" width="600"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2023/09/saranda-gramin-2-1.jpg"

alt="" width="600" height="400" /> ऐसे पत्तों को सुखा बंडल बनाया जाता है[/caption] ग्रामीण जंगल में वन देवि की पूजा कर पत्ता तोड़ने घूसते है ताकि कोई जानवर आदि से नुकसान नहीं हो. इन्होंने बताया की प्रत्येक किलो सियाली पत्ता के एवज में जराईकेला के व्यापारी बीस रुपये, सौ बंडल बिड़ी पत्ता (एक बंडल में 42 पत्ता) पर नब्बे रुपये तथा साल पत्ता का सौ प्लेट बनाकर देने पर पंद्रह रुपये मिलता हैं. व्यापारी बीड़ी पत्ता की खरीद गांव में आकर हीं करते हैं तथा इन पत्तों को झारखंड-ओडिशा के अलावे मद्रास आदि राज्यों में वह भेजते हैं. ग्रामीणों ने बताया की मनोहरपुर से बस द्वारा छोटानागरा पंचायत के जंगलों में ये आते हैं. अर्थात आने-जाने का भाड़ा साठ रुपये देना पड़ता है. इसे भी पढ़ें :बहरागोड़ा">https://lagatar.in/baharagora-despite-ngts-ban-illegal-sand-trade-is-going-on-indiscriminately/">बहरागोड़ा

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प्रोसेसिंग प्लांट सारंडा में लगाने की मांग

पत्ता को सुखाना भी पड़ता है इससे कमाई कम होती है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार अथवा वन विभाग इन पत्तों के अलावे तमाम प्रकार के वन उत्पाद का सरकारी मुल्य निर्धारित कर प्रोसेसिंग प्लांट लगा सारंडा में खरीद-बिक्री केन्द्र खोल देती तो हमारा काम आसान हो जाता. हमें उचित मुल्य मिलता जिससे हम आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ते. जंगल के पत्तों के कारोबार में सैकड़ों परिवार जुड़े हैं जो अपने साथ खाने की टीफीन लाते हैं एंव सड़क किनारे स्थित पेंड़ों पर घने जंगलों में पत्ता तोड़ने चले जाते हैं. इसे भी पढ़ें :किरीबुरू">https://lagatar.in/kiriburu-munda-dakuva-diuri-of-the-village-were-honored/">किरीबुरू

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