Koderma : शहर में आज भी कुछ ऐसी जिंदगी है, जो पशुओं की तरह कूड़े कचरे में अपनी रोजी-रोटी तलाशती रहती है. गली-गली प्लास्टिक के टुकड़े चुनने वाले इन मासूमों की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है. इनकी पीड़ा जानने की फुर्सत किसी के पास नहीं है. जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन की भी नजर इनकी ओर नहीं जाती. स्वयं को गरीबों का रहनुमा बताने वाले तथाकथित नेता और सामाजिक संस्थाएं भी सब कुछ जान कर अपनी आंख मुंदे रहती है. सुबह होते ही ये बच्चे पुराना बोरा और आवारा कुत्तों से लड़ने के लिए छड़ी लिए शहर की गलियों में कचरे के ढेर में अपनी जिंदगी तलाश करते दिख जाएंगे. ये बच्चे कूड़े के ढेर में गिद्ध की नजर लिए प्लास्टिक और लोहे के टुकड़े की तलाश करते रहते हैं. शाम को उसी रद्दी को कबाड़ी में बेचकर पेट भरने की रकम बमुश्किल जुटा पाते हैं. खानाबदोश सी जिंदगी जीने वाले इन लोगों के पास हमेशा ही अभाव बना रहता है. इन तमाम मुश्किलों के बावजूद इन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकवा शिकायत नहीं है. झुग्गी झोपड़ी ही इनका बसेरा है. फटे चिटे कपड़े और बोरे का टुकड़ा इनका बिछावन है. प्रशासनिक उदासीनता व जनप्रतिनिधियों के असहयोगात्मक रवैया के कारण ऐसे बाल श्रमिक अपने हाल पर रोते दिख जाएंगे. छोटी सी उम्र में ये बच्चे नशे के आदि हो रहे हैं. इनके हाथों में कचरे की बोरी के साथ-साथ डेंडराइट आदि की प्लास्टिक भी दिख जाएंगे. बाल श्रमिकों का एक बड़ा भाग होटलों व गैरेजों में मशीन की तरह आज भी काम करते दिख जाएंगे. जहां इनका जमकर शोषण होता है. बाल श्रमिकों के लिए बनाए गए सारे कायदे कानून ताक पर रखा जा रहा है. इसे भी पढ़ें : ‘शुभम">https://lagatar.in/shubham-sandesh-impact-home-guard-dsp-suspends-commander/">‘शुभम
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कोडरमा : कूड़े-कचरे के ढेर में रोजी-रोटी तलाश रही है मासूम जिंदगियां

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