Ranchi : कुड़मी समाज का चक्का जाम आंदोलन भले ही थम गया है, लेकिन समाज अपनी मांग को लेकर अब भी अड़ा है. वे कहते हैं कि हमारी मांग जायज है, इसे हम लेकर ही रहेंगे. अपनी मांग के समर्थन में वे कहते हैं कि ब्रिटिश काल में कुड़मी समाज एसटी की श्रेणी में था. साजिश के तहत उसे इससे बाहर कर दिया गया. सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. हमें सरकार के रुख का इंतजार है. हमारी मांगों पर अगर सरकार गौर नहीं करेगी तो हम और वृहद आंदोलन के लिए तैयार हैं. शुभम संदेश की टीम ने इस संबंध में विभिन्न जिलों के कुड़मी समाज के लोगों से बात की. पेश है रिपोर्ट…
कुड़मियों के पास पुख्त प्रमाण है : महेश्वर महतो
आदित्यपुर के झामुमो के जिलाध्यक्ष महेश्वर महतो कहते हैं कि कुड़मी जाति ब्रिटिश काल में एसटी थी. इस बात का कुड़मियों के पास का पुख्ता प्रमाण पत्र है. ऐसे में सरकार यह बताए कि कुड़मियों को एसटी से बाहर क्यों कर दिया. आज झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुडमियों द्वारा जो कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने और उनकी भाषा कुड़माली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है, वह जायज है. झारखंड में कुड़मियों की जमीन अधिग्रहित करने के लिए साजिश के तहत कुचक्र रच कर इस जाति को एसटी से हटाया गया.
कुड़मी जाति के साथ अन्याय हुआ है : कुंती महतो
आदित्यपुर वार्ड दो की पूर्व पार्षद कुंती महतो कहती हैं कि झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुड़मी जाति के साथ अन्याय हुआ है. हमारा जो इतिहास है उससे प्रतीत होता है कि कुड़मी वर्षों से जंगलों में रहकर आदिवासी बनकर रहे हैं. पर्व त्योहार हमारा प्रकृति पर आधारित है. हमारे दादा-परदादा आदिवासी थे, इस बात का भी सबूत है तो फिर अब हमलोग आदिवासी क्यों नहीं हैं. केंद्र सरकार शीघ्र कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करे. अन्यथा कुड़मी जाति के लोग आंदोलन को बाध्य होंगे. अभी वार्ता के लिए बुलाया गया है. अगर बात नहीं बनी तो फिर आंदोलन करेंगे.
कुड़मियों को अस्तित्व बचाने की चुनौती : रूद्रो महतो
आदित्यपुर निवासी झारखंड आंदोलनकारी रुद्रो महतो कहते हैं कि कुड़मी जाति 1931 तक ब्रिटिश काल में अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में थी. कुड़मी जाति झारखंड आंदोलन हो या भाषाई आंदोलन दोनों में आदिवासी समुदाय को परस्पर सहयोग दिया. उस समय कुड़मी को आदिवासी समझ रहे थे, लेकिन जब अलग झारखंड बन गया और संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हो गई तो कुड़मियों और उनकी भाषा को आदिवासी समुदाय खुद से अलग कर दिया है. झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुड़मियों के सामने वर्तमान में अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती है.
पूर्वज आदिवासी थे तो हम क्यों नहीं हो सकते: दीपक महतो
आदित्यपुर निवासी अखिल भारतीय पंचायत परिषद के जिला उपाध्यक्ष दीपक महतो कहते हैं कि कुड़मी समाज जिस मान सम्मान के लिए आंदोलन कर रहा है उसका हम पूरा समर्थन करते हैं. कुड़मियों के पूर्वज आदिवासी थे, तो फिर हमलोग आदिवासी कैसे नहीं हैं. इसकी जांच होनी चाहिए. कोई भी समाज अपने भविष्य के प्रति संजीदा रहेगा. यही वजह है कि आज कुड़मी समाज भी अपनी आनेवाले पीढ़ी के लिए आंदोलन कर रहा है. हमारे जमीन को सीएनटी एक्ट में डालकर कुड़मियों के विकास को सरकार अवरुद्ध कर रखी है. हम कुड़मी आंदोलन में सहभागिता निभाते हुए पूर्ण समर्थन करते हैं.
मांग जायज, नहीं माने जाने पर फिर आंदोलन : अरविंद
जमशेदपुर झामुमो नेता सह कुड़मी सेना के राष्ट्रीय महासचिव अरविंद कुमार ने कहा कि कुड़मी को आदिवासी बनाने की मांग जायज है. इसका सरकारी दस्तावेजों में जिक्र है, लेकिन 1951 में साजिश के तहत कुड़मी से अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस ले लिया गया. तब से लगातार मांग की जा रही है, लेकिन सरकार बरगलाने का काम कर रही है. अब आर-पार की लड़ाई के लिए समाज के लोग एकजुट हो चुके हैं. वर्तमान आंदोलन स्थगित किया गया है, समाप्त नहीं हुआ है. जरूरत पड़ी तो फिर वृहत पैमाने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा. इसकी तैयारी चल रही है.
सरकार अविलंब हमारी मांग मान ले : मनोज महतो
जमशेदपुर प्रखंड के हलुदबनी निवासी मनोज महतो ने कहा कि कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग वर्षों से हो रही है. पहले इस जाति को जनजाति का दर्जा प्राप्त था, लेकिन एक साजिश के तहत इसे बाहर कर दिया गया. अपने अधिकार के लिए आंदोलन करना गलत नहीं है. कुड़मी समाज की परंपरा, भाषा-संस्कृति एवं रहन-सहन जनजातीय समाज की तरह आज भी है. ऐसे में सरकार को अन्य दूसरी जातियों की तरह ही कुड़मी को अनुसूचित जन जाति का दर्जा देना चाहिए. अन्यथा आंदोलन होते रहेंगे तथा सरकार एवं आम जनजीवन प्रभावित होता रहेगा.
सभ्यता-संस्कृति नहीं बदल सकते : बन बिहारी महतो
पटमदा के प्रगतिशील किसान सह कुड़मी समाज के सक्रिय कार्यकर्ता बन बिहारी महतो का कहना है कि कुड़मी आदिकाल से आदिवासी थे. कालांतर में सरकार ने उन्हें बाहर कर दिया. अपना पुराना अधिकार मांगना कहीं से गलत नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार को समाज की मांगों पर पुनर्विचार करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होगा तो आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज होगा. जिसकी सारी जवाबदेही केंद्र एवं राज्य सरकार की होगी. आंदोलन शुरू हो चुका है और हमारा समाज इस राह पर आगे बढ़ गया है. हम अपनी जायज हक के लिए लड़ रहे हैं. इसे लेकर ही रहेंगे.
72 वर्ष से भी पुरानी मांग है : विशाल चंद्र महतो
जमशेदपुर निवासी कुड़मी सेना के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष विशाल महतो ने कहा कि कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग 72 वर्ष पुरानी है. समाज की यह संवैधानिक मांग है, लेकिन साजिश के तहत 1950 में समाज को उक्त श्रेणी से बाहर कर दिया गया. आज भी समाज में दबे-कुचले लोग हैं, जिन्हें मुख्यधारा में लाने एवं उनके उत्थान के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा जरूरी है. जब तक हमारा हक अधिकार नहीं मिलता, आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि सरकार ने हमें सीएनटी में रखा है, लेकिन उसके लाभ से वंचित किया है. यह सरकार की दोहरी नीति है.
आदिवासी दर्जे के लिए होगी आर-पार की लड़ाई
कुड़मी को आदिवासी दर्जा देने की मांग को लेकर झारखंड, बंगाल, ओडिशा के समाज से जुड़े लोग वृहद आंदोलन की तैयारी में लगे हैं. आंदोलनकारियों ने ट्रेन रोकी, जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ा. इस आंदोलन से आमजनों सहित कुर्मी समाज के लोगों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. नेताओं का कहना है कि कुर्मी समाज के साथ अन्याय हो रहा है. इस आंदोलन को अब वृहद रूप देना होगा.
जल्द होगी आर्थिक नाकेबंदी : सदानंद महतो
झारखंड प्रदेश आदिवासी कुर्मी युवा मंच के संयोजक सदानंद महतो ने कहा कि झारखंड के कुर्मी आदिवासी थे और आदिवासी ही रहेंगे. यह जाति जल, जंगल,जमीन से जुड़ी हुई है. कुर्मी जाति 1913 से 1931 तक भारत के गजट में आदिवासी (ट्राइबल) थी. लेकिन 1952 में संविधान लागू होते ही इसे सूची से बाहर कर दिया गया है. यह लड़ाई हमारे पूर्वज भी लड़ रहे थे और आज हम भी लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुड़मी समाज अपने हक और अधिकार के लिए बहुत जल्द झारखंड में आर्थिक नाकेबंदी करेगा.
मांगें जायज, सरकार को माननी होगी : अखिलेश
धनबाद गोधर निवासी मार्क्सवादी युवा मोर्चा के नेता अखिलेश महतो ने कहा कि मांगें जायज हैं और सरकार को हर हाल में माननी होगी. अगर जल्द मांगें पूरी नहीं हुई तो आंदोलन और उग्र होगा. आंदोलन में युवाओं की भागीदारी अधिक है. उन्होंने आदिवासियों से अपील की है कि वह कुर्मी जाति का समर्थन करें, तभी झारखंड में आदिवासियों की संख्या बढ़ेगी. झारखंड में आदिवासी 50% से अधिक हो जाएंगे तो केंद्र को नियमानुसार आदिवासी राज्य का दर्जा देना होगा, तभी राज्य का विकास भी होगा.
72 वर्षों से हो रहा शोषण : हलधर
झारखंड प्रदेश आदिवासी कुर्मी युवा मंच के नेता हलधर महतो ने कहा कि लगभग 72 वर्षों से कुर्मी महतो का शोषण किया जा रहा है. हमारे हक और अधिकार को छीना जा रहा है. हमें विलुप्त करने की साजिश रची जा रही है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
कुड़मी आंदोलन नया नहीं है : रतन महतो
घाटशिला प्रखंड के कुड़मी समाज के सामाजिक कार्यकर्ता सह झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता रतन महतो ने बताया कि कुड़मी का आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं है. बरसों से कुड़मी समाज के लोग एसटी में शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं. सरकार इसे नजर अंदाज नहीं कर सकती. आवागमन को लेकर लोगों को परेशानी हुई है. इसका भी हम लोगों को ज्ञात है, परंतु जिस तरह से सरकार हम लोगों के साथ भेदभाव कर रही है. यह कुड़मी समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा. एसटी की मांग को लेकर समाज का आंदोलन जारी रहेगा.
ठगने का काम कर रही सरकार : नीलकमल
घाटशिला कुडमी सामाज के सामाजिक कार्यकर्ता नीलकमल महतो ने बताया कि कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर समाज के लोगों को सरकार ठगने का काम कर रही है. हम आदिवासी थे, इसका ठोस प्रमाण है. सरकार इस पर गंभीरता से विचार करे और एसटी में शामिल करे. सरकार को उचित निर्णय लेने का समय आ गया है. यदि सरकार कुड़मियों के हित में ठोस निर्णय नहीं लेती है तो आंदोलन और तेज किया जाएगा. आंदोलन से समाज के लोग नहीं डरते हैं. अपनी कुर्बानी भी देने को तैयार हैं.
हमारी संस्कृति मिलती है : परिमल
घाटशिला के सामाजिक कार्यकर्ता परिमल महतो ने कहा कि कुड़मी समुदाय की अपनी भाषा, परंपरा संस्कृति है. हमारी संस्कृति आदिवासी परंपरा से मिलती-जुलती है. हम सब अपने घर में शादी-विवाह या पूजा पाठ भी किसी ब्राह्मणों से न करा कर स्वयं करते हैं, जो आदिवासी समाज से मिलता-जुलता है.
हमारा आंदोलन बिल्कुल जायज : रविकांत महतो
रविकांत महतो कहते हैं कि कुर्मी जाति को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर किया जा रहा आंदोलन बिल्कुल जायज है . ऐसा नहीं करने पर कुड़मी जाति विलुप्त हो जाएगी और कुछ ऐसा ही साजिश भी की जा रही है . हम लोग यहां के मूल बाशिंदा होने के बावजूद भी हमलोगों को अपना अधिकार नहीं मिल पा रहा है जिससे छुब्ध होकर समाज आंदोलन की राह पर है . हमारी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो लाखों युवा सड़क पर उतर कर आंदोलन करेंगे और सभी चीजों को ठप कर देंगे.
कुड़मियों को एसटी का दर्जा दिया जाए : उत्तम
उत्तम महतो कहते हैं कि यह मांग वर्षों से की जा रही है कि कुड़मियों को एसटी का दर्जा दिया जाए. इसको लेकर कई बार आंदोलन भी चलाया गया, लेकिन सरकार इस पर गंभीर नहीं है. अब हम जैसे युवाओं को ही इस आंदोलन को चलाना होगा और सड़क पर उतर कर आंदोलन करना होगा. तभी सरकार के कानों तक हमारी बात पहुंच पाएगी . आखिर मूल बाशिंदा होने के बाद भी हम लोगों को एसटी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया जाता. हम लोगों को ओबीसी श्रेणी में क्यों डाला गया है .जबकि हमारे पूर्वज बताते हैं कि हम आजादी से पहले एसटी श्रेणी में थे.
हम पहले भी एसटी श्रेणी में थे : मोहित
मोहित पटेल कहते हैं कि झारखंड में रह रहे कुड़मी छोटा नागपुर पठार के मूल बाशिंदा हैं ऐसे में आदिवासियों को एसटी का दर्जा प्राप्त है. लेकिन हम लोगों को ओबीसी श्रेणी में डाला गया है, जबकि आजादी से पहले हम लोग भी एसटी श्रेणी में थे बाद में हमे ओबीसी में डाला गया . लगातार समाज के द्वारा यह मांग हीती रही है कि हम लोगों को भी एसटी का दर्जा मिलना चाहिए. जिसको लेकर आंदोलन भी चलाया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि हमारी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करें नहीं तो आने वाले समय में बंगाल, झारखंड और ओडिशा के कुड़मी बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे.
हमें एसटी का लाभ मिलना चाहिए : रितेश
रितेश महतो कहते हैं कि हमारे पूर्वज बताते हैं कि आजादी से पहले हम लोग भी एसटी श्रेणी में आते थे, लेकिन आजादी के बाद हम लोगों को ओबीसी श्रेणी में डाल दिया गया. जिससे हम लोगों को मिलने वाला आरक्षण समाप्त हो गया. छोटा नागपुर पठार के वाशिंदा होने के नाते हम लोगों को भी एसटी का लाभ मिलना चाहिए . ताकि हमें भी नौकरियों में ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले .मूल बाशिंदा होने के बावजूद भी हम लोगों को अपना अधिकार नहीं मिल पा रहा है. इसलिए समाज के लोग आंदोलन चला रहे हैं.सरकार को इस पर जल्द संज्ञान लेना चाहिए.
आंदोलन अपनी पहचान की लड़ाई : चंदन महतो
चाकुलिया प्रखंड के युवा कुड़मी नेता चंदन महतो ने कहा कि कुड़मी आंदोलन रिजर्वेशन की लड़ाई नहीं है. यह हमारी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है. झारखंड के हर गांव से युवाओं की कमेटी बनेगी और बृहत आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाएगी. उन्होंने कहा कि अपने हक और अधिकार के लिए समाज आंदोलन के पथ पर अग्रसर है. रेल चक्का जाम और हाईवे जाम जैसे आंदोलन काफी सफल हुए हैं. कुड़मी जाति को एसटी में शामिल किया जाए और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए.
जाम के लिए सरकार जिम्मेदार: पंकज कुमार
चाकुलिया के कुड़मी आंदोलनकारी मंच के अध्यक्ष पंकज कुमार महतो ने कहा कि कुड़मी पिछले 70 सालों से शांतिपूर्वक ढंग से अपना हक मांग रहे हैं. आज अगर हम कुड़मी रेल एवं राजमार्ग अवरोध कर रहे हैं तो इसकी जिम्मेदार उस समय की कांग्रेस सरकार तथा वर्तमान भाजपा सरकार दोनों है. इस आंदोलन में अगर वार्ता विफल हुई तो आगे हमारा आंदोलन उग्र होगा. इसकी जिम्मेवारी सरकार की होगी. इस बार और बड़े पैमाने पर आंदोलन की रुप रेखा तैयार कर रहे हैं. इसलिए सरकार को हमारी मांगों पर ध्यान देना चाहिए.
समाज को एकजुट करना जरूरी है : शिवदयाल महतो
चाईबासा के कुड़मी समाज के शिव दयाल महतो कहते हैं कि समाज को एकजुट होना जरुरी है. जब तक समाज एकजुट नहीं होगा, तब तक हमे अधिकार नहीं मिलेगा. कुड़मी को एसटी बनना सामाजिक लड़ाई है. प्रत्येक गांव और घर से लोगों को आगे आकर इस आंदोलन में शामिल होने की जरूरत है. आंदोलन किसी एक का नहीं है. यह एक समूहिक आंदोलन है. रेल रोको आंदोलन भले की खत्म हो गया है, लेकिन सरकार से हमारी मांग को पूरी मजबूती से रखने के लिये एकजुट होना होगा. दूसरी ओर सरकार को भी राज्य हित को देखते हुए हमारी मांगों पर गौर करना चाहिए.
एकजुट होकर आगे बढ़ने की जरूरत है : सूरज
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य सूरज महतो कहते हैं कि कुड़मी आंदोलन हमेशा कुछ समय के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन इस बार यह आंदोलन खत्म होता नहीं दिख रहा है. हम सब को एकजुट होकर आगे बढ़ने की जरूरत है. जब तक हमारी एकता बनी रहेगी, तब सरकार हमारी बातों को सुनेगी. आदिवासी कुड़मी समाज की लड़ाई के समर्थन में मेरा पूरा परिवार है. कुड़मी को एसटी का दर्जा मिलना ही चाहिये. जब तक एसटी का दर्जा नहीं मिलेगा, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा. हम इस आंदोलन से पीछे हटने वाले नहीं हैं.अब तो वृहत आंदोलन की तैयारी हो रही है.
मांगें पूरी होने तक जारी रहेगा आंदोलन : अनूप
चाईबासा के कुड़मी समाज के सदस्य अनूप महतो कहते हैं कि आंदोलन खड़ा कर हम लोगों को परेशान नहीं करना चाहते हैं, लेकिन हमारी मांगें आज से नहीं हो रही हैं. पिछले कई वर्षों से हो रही हैं. जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होती है तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा. फिलहाल रोक रोको आंदोलन स्थागित कर दिया गया है, लेकिन आने वाले दिनों में और उग्र आंदोलन की तैयारी में पूरा समाज जुटा है. पश्चिम सिंहभूम में जिस तरह का आंदोलन हुआ है, वह सराहनीय है. झारखंड के कुड़मी समाज इसके लिये आभारी है. आने वाले दिनों में जोरदार आंदोलन हो इसकी रणनीति तैयार की जा रही.
हमारा अधिकार एसटी बनना है : यशवंत महतो
चाईबासा कुड़मी समाज के सदस्य यशवंत महतो कहते हैं कि हमारा अधिकारी एसटी बनना है. लेकिन, सरकार जिस तरह से हमें अपना अधिकार नहीं दे रही है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार को एकजुट होकर आगे बढ़ने की जरूरत है. लोकतांत्रिक तरीके से हमारी लड़ाई लड़ी जा रही है. इसमें किसी तरह की हिंसा नहीं हो रही है. वर्षों से यह आंदोलन चल रहा है, लेकिन सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है. राजनीतिक दल कुड़मी को सिर्फ छलने का काम कर रही है. लेकिन इस बार कुड़मी दिग्भ्रमित नहीं होंगे. इसका असर चुनाव में भी देखने को मिलेगा.
चुनाव के समय कुड़मी की याद आती है : प्रदीप
चाईबासा के शिक्षक प्रदीप महतो कहते हैं कि चुनाव के समय ही सिर्फ कुड़मी की याद राजनेताओं को आती है. हमारी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है, जो एक दुर्भाग्यपूर्ण है. अनुसूचित जनजाति के लिये वर्षों से हमारी लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन इसको नजरअंदाज किया जाता रहा है. हमारी अपनी भाषा, संस्कृति व पारंपरिक रीति रिवाज आदिवासियों से मिलती-जुलती है. इतिहास में हमारे पूर्वज आदिवासी हैं. हम अपने अधिकार के लिये लड़ाई लड़ रहे हैं. जब तक हमारा अधिकार हमें नहीं मिलेगा तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा.
पश्चिम बंगाल में हुए आंदोलन से ताकत दिखी : कार्तिक महतो
अनुसूचित जनजाति हमारा समाज पहले से ही है. आज की मांग नहीं है. वर्षों पुरानी मांग है. सरकार इसको गंभीरता से नहीं ले रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार को गंभीरता से काम करने की जरूरत है. पश्चिम बंगाल में जिस तरह का आंदोलन हुआ है, वह सराहनीय है. झारखंड में भी इस तरह के आंदोलन की जरूरत है. झारखंड एक पिछ़ड़ा हुआ राज्य है. यहां एक बहुत बड़ी जनसंख्या कुड़मी समुदाय की है. कई विधानसभा में निर्णायक वोटर तक हैं. यदि कुड़मी को एसटी का दर्जा नहीं मिलता तो आने वाले चुनाव में राजनेता को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा.
हक का आंदोलन आगे भी जारी रहेगा: रवि महतो
टोटेमिक कुड़मी समाज के सचिव चक्रधरपुर निवासी रवि महतो ने कहा है कि अधिकार और हक का आंदोलन आगे भी जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि हमने अपना आंदोलन पूरी तरह से खत्म नहीं किया है. हमारी मांग बहुत पुरानी मांग है. कुड़मी समाज को जब तक एसटी में शामिल नहीं किया जाएगा तब तक संगठित होकर इसी तरह आवाज बुलंद किया जाएगा. सरकार को हमारी एकजुटता का पता चल गया है. इसलिए हमारी मांग पर सरकार जल्द से जल्द विचार करे. अगर हमारी मांगों पर सरकार गौर नहीं करती है तो और बढ़े पैमाने पर आंदोलन होगा.
मांगें पूरी होने तक हम रुकने वाले नहीं : गणेश
चक्रधरपुर निवासी कुड़मी समाज के गणेश महतो ने कहा कि मांगें पूरी होने तक हम रुकने वाले नहीं हैं. सरकार को हमारी मांग को पूरा करना होगा. सिर्फ बंगाल के एक कोने में आंदोलन करने से असर दिखने लगा. मांगे अगर पूरी नहीं हुई तो पूरे देश में समाज द्वारा आंदोलन किया जाएगा और इसकी जवाबदेही सरकार की होगी. 70 साल से हम अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं, बार बार ठगे जाने के बाद हम आंदोलन के लिए बाध्य होते हैं.हमने आंदोलन को विराम दिया है, खत्म नहीं किया है. आगे के आंदोलन की तैयारी हो रही है.
सरकार न समझे कि हम कमजोर हैं : रोमित कटियार
टोटेमिक कुड़मी समाज के रोमित कटियार ने कहा है कि सरकार यह न समझे कि हम कमजोर हैं. पूरी मजबूती के साथ हमने अपना आंदोलन शुरू किया है और यह आंदोलन आगे भी जारी रहेगा.कुड़मी समाज एकजुट होकर अपने हक के लिए लड़ाई कर रहा है. बार-बार हमें ठगने की कोशिश नहीं किया जाए. आने वाले समय में व्यापक रूप से आंदोलन किया जाएगा. राजनीतिक दल के नेता सिर्फ वोट बैंक की राजनीति न करें, बल्कि चुनाव से पहले जो आश्वासन दिए जाते हैं उसे पूरा करें. कुड़मी समाज आगे की रणनीति तैयार कर रहा है.
पूरे कुड़मी समाज के लिए हो रहा है आंदोलन : दीपक
चक्रधरपुर निवासी कुड़मी समाज के नेता दीपक महतो ने कहा कि हम किसी एक व्यक्ति के लिए आंदोलन नहीं कर रहे हैं ,बल्कि पूरे समाज के लिए आंदोलन किया जा रहा है. इसमें समाज के हर वर्ग के लोग अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं. बंगाल,झारखंड में बड़ी संख्या में कुड़मी समाज के लोग निवास करते हैं, इसलिए हमें ठगने की कोशिशनहीं किया जाए. हमारा आंदोलन आगे भी जारी रहेगा. सरकार यह न समझे कि हम पीछे हट जाएंगे, जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता है,हमारी लड़ाई जारी रहेगी. इसकी तैयारी की जा रही है.
आरक्षण नहीं, अस्मिता की भी है बात : नीलकंठ
झामुमो के जिला सचिव नीलकंठ महतो कहते हैं कि यह सिर्फ आरक्षण का मामला नहीं, बल्कि कुड़मियों की पहचान व अस्मिता से भी जुड़ा सवाल है. अधिकार के लिए लड़ाई तो लड़नी होगी. एक षड्यंत्र के तहत कुड़की को आदिवासी सूची से हटा दिया गया. कुड़मी समाज की मांग जायज है. इसे अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करना ही चाहिए. वर्ष 1891 में इसीलिए जनजाति यानी ट्राइब स्टेट्स दिया गया, कास्ट नहीं. 1908 में उनकी जमीन सीएनटी एक्ट के तहत संरक्षित की गई. वर्ष 1913 में इंडियन सक्शेसन एक्ट के बहुत से प्रावधानों से अलग रखा गया.
कुड़मी को अलग बताना गलत : झरीलाल महतो
केरेडारी निवासी सह मुखिया झरीलाल महतो ने कहा कि कुड़मी को आदिवासियों से अलग बताना गलत है. कुड़मी भी प्रकृति उपासक हैं. फिर कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने में कहां परेशानी है. छोटानागपुर पठार आदिकाल से आदिवासियों का निवास स्थान रहा है. यहां हो, मुंडा, संथाल, उरांव आदि जनजातियों के साथ कुरमी/कुड़मी जन जाति भी आदि काल से साथ साथ रहते आ रहे हैं. हजारीबाग के सिप्टन रिपोर्ट और बंगाल व ओडिशा के गजेटियर में भी इसका जिक्र है. ऐसे में कुड़मी समाज का आंदोलन बिल्कुल जायज है.
आर-पार का आंदोलन होगा : बैजनाथ महतो
कुड़मी समाज के बैजनाथ महतो कहते हैं कि अधिकार के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है. उन्होंने कहा कि अब आंदोलन ही विकल्प बचा है. राज्यभर में आंदोलन करने की जरूरत है. कुड़मी को एसटी का दर्जा दिलाने के लिए एकजुटता की जरूरत है. समाज के हर लोगों को अपना अधिकार पाने के लिए सड़क पर उतरना होगा और आवाज बुलंद करनी होगी.हमारे आंदोलन की शुरूआत हो चुकी है. यह आंदोलन थमने वाला नहीं है. जब तक हमें अपना अधिकार नहीं मिल जाता है, हमारा समाज हक की लड़ाई लड़ता रहेगा.
एसटी में शामिल करने की जरूरत है : विष्णु महतो
कुड़मी-आदिवासी आंदोलन समिति के सदस्य विष्णु महतो ने कहा कि कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की जरूरत है. कोल्ह, संताल, मुंडा और उरांव की तरह ही कुड़मी भी प्रकृति के उपासक रहे हैं. बिहार और यूपी के इलाके में ‘कुड़मी’ शब्द को अपभ्रंश कर ‘कुरमी’ कर दिया गया. ऐसे में कुड़मी को अनुसूचित जनजाति के सूची में शामिल करने की दरकार है. बिहार, बंगाल और ओडिशा में सरकार के गजेटियर में भी इस बात का जिक्र है. इसलोगों को यह समझना चाहिए कि हम अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. इसके लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं.
अधिकार कोई छीन नहीं सकता है : कमलेश महतो
कुड़मी-आदिवासी आंदोलन समिति के सदस्य कमलेश महतो ने कहा कि कुड़मी से उसका अधिकार कोई छीन नहीं सकता. हम लड़कर अधिकार लेना जानते हैं. सरकार को कुड़मी को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करना होगा. उत्तरी छोटानागपुर के इतिहास के पन्नों में दर्ज अधिकार को कोई मिटा नहीं सकता है. इसके लिए जो भी लड़ाई लड़नी होगी, उसके लिए कुड़मी समाज तैयार है. हम आगे के आंदोलन के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं. इस बार का आंदोलन और वृहत होगा. सरकार को हमारी बात माननी होगी और हमें एसटी का दर्जा देना होगा.
षड्यंत्र के तहत हटा दिया गया नाम : परमेश्वर
कुड़मी समाज के परमेश्वर महतो कहते हैं कि षड्यंत्र के तहत कुड़मी जाति को एसटी सूची से हटा दिया गया. यह राजनीतिक साजिश है, जिसे हम लोग कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे. अनुसूचित जाति का दर्जा हर हाल में लेकर रहेंगे. इसके लिए जो भी कुर्बानी देनी होगी, हम कुड़मी समाज के लोग उसके लिए तैयार हैं. सरकार को कुड़मियों की मनोभावना को समझने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आंदोलन का रूख और तेज होगा. इसकी तैयारी चल रही है. हमारा समाज अपना हक लेकर ही रहेगा. हम अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं जो किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है.
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