Sunil Kumar
Latehar: चर्चित राजेंद्र प्रसाद साहू हत्याकांड की जिम्मेदारी प्रतिबंधित नक्सली संगठन टीएसपीसी ने ली है. टीएसपीसी द्वारा जारी किया गया हस्तलिखित पर्चा कई सवालों को जन्म दे रहा है. बता दें कि दिवंगत राजेन्द्र साहू की सार्वजनिक जीवन की शुरुआत माओवादियों और टीपीसी के इर्द-गिर्द ही हुई है. उन पर माओवादी और टीपीसी का समर्थक होने का आरोप लगता रहा है. हालांकि पर्चा में टीएसपीसी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि उनके संबंध संगठन के साथ कालांतर में अच्छा रहा है. इसी का फायदा उठाकर उन्होंने संगठन का करोड़ों रुपया और हथियार गबन किया. दूसरी ओर साल 2007 से संगठन में सहयोग करने की बात कही गई है. बताते चलें कि वर्ष 2007 में भरत गंझू के नेतृत्व में टीपीसी मगध आम्रपाली कोयला क्षेत्र में सक्रिय था न कि आक्रमण गंझू और उनके कार्यकाल में.
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टीएसपीसी का पर्चा जाली तो नहीं ?
राजेन्द्र साहू के ऊपर कोई आरोप नहीं लगा. अब जब संगठन की गतिविधियां समाप्ति की ओर अग्रसर है या कथित रूप से समाप्त हो चुकी है तो इस तरह का आरोप लगाया जाना लोगों के समझ से परे है. दबी जुबान से लोग यह भी कह रहे हैं कि हत्या की साजिश रचने वालों ने टीएसपीसी का जाली पर्चा जारी किया है. हत्या के कारणों पर पुलिस का स्टैंड मोड़ने की कोशिश की गई है. नक्सली संगठन के द्वारा जारी विज्ञप्ति में कभी भी नोट और रिमार्क्स जारी नहीं किए जाते हैं. इस विज्ञप्ति में सारी बात लिखे जाने के बाद भी नोट लिखकर रिमार्क्स दिए गए हैं. जानकारों का कहना है कि प्रतिबंधित संगठनों की स्टाइल में इस पर्चा को हत्या में शामिल षड्यंत्रकारियों के द्वारा जारी किया गया है. पुलिस इसे ही अंतिम सत्य मानकर लोगों के समक्ष पर्चा की बातें सार्वजनिक करते हुए अपराधियों को जेल भेज चुकी है.
अपराधियों से लड़ने स्कूटी से ही चल पड़े थे राजेंद्र साहू
जानकारों का कहना है कि अपराधियों के द्वारा दिए गए स्वीकारोक्ति बयान काल्पनिक जैसा ही प्रतीत हो रहा है. घटना की तह में जाएं तो महज संयोग और एक चूक के कारण राजेंद्र प्रसाद साहू की जान गई है. जैसा कि प्रत्यक्षदर्शियों एवं घटना की गहराई तक पहुंचे लोगों का कहना है कि स्वर्गीय राजेंद्र साहू अपराधियों के द्वारा ललकारे जाने पर स्कूटी से ही चल दिए थे और उन्होंने अपराधियों को शूट करने की पूरी कोशिश की थी. उनके हथियार से गोली नहीं चलने पर अपराधियों ने बचाव में फायरिंग कर दिया और राजेन्द्र साहू को गोली लग गई. अगर यह कोई षड्यंत्र होता या सुनियोजित होता तो अपराधी राजेंद्र साहू को देखते ही गोली बरसा सकते थे.
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क्या राजेंद्र साहू ने भी की थी फायरिंग ?
जहां से उनकी झड़प शुरू हुई वहां से अपराधियों ने जान बचाते हुए करीब-करीब दो किलोमीटर तक भागने का प्रयास किया. जब गोली उनके ऊपर मिस कर गई तब जवाब में गोली चलायी गयी. जैसा कि राजेंद्र साहू की पत्नी के फर्द बयान पर दर्ज की गई प्राथमिकी में भी पुष्टि हुई है. उन्होंने कहा कि पिस्तौल से उनके पति ने गुंडों के ऊपर गोली चलायी थी. लेकिन गोली नहीं चली और जवाबी गोली उनके पति को लग गई. बहरहाल मामला जो भी हो यदि पुलिस की जांच और अपराधियों के पकड़े जाने की पुलिसिया उपलब्धि को सच मान लें तो नक्सलियों के इस क्षेत्र में पुनः सक्रिय होने की बात तो जरूर सामने दिख रही है. संभव है कि इस घटना के बाद टीएसपीसी श्रेय लेने के कवायद में जुटा हो.
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