Latehar : गांवों में हुनर की कमी नहीं है. ग्रामीणों के हाथों के हुनर ही उन्हें आजीविका दिलाते हैं. लेकिन उस हुनर की सही कीमत गांव के हुनरमंदों को नहीं मिल पाती है. लातेहार के बेतला नेशनल पार्क से सटे तूरी टोला के ग्रामीण भी हुनरमंद हैं. टोला के ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन बांस की टोकरी बनाना और बेचना है. लेकिन उससे परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता है. छठ पूजा को देखते हुए टोला के ग्रामीण बांस का दउरा और सूप बनाने में अभी से जुट गये हैं.
टोला के बिफन तूरी ने बताया कि जंगलों में बांस अब धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. ऐसे में उन्हें ज्यादा कीमत चुका कर बांस खरीदना पड़ता है. एक 15-20 फीट की बांस की तकरीबन सौ रूपये में आती है. बांस से ही उनका परिवार टोकरी, सूप व अन्य सामग्रियां बनाते हैं. घर के छोटे बड़े सभी इसी काम में लगे हैं. लेकिन आसपास कोई बड़ी मंडी नहीं होने से घाटा लगता है. बताया कि वे स्थानीय कारोबारियों को औने-पौने दामों में अपने उत्पादों को बेच देते हैं. यही कारोबारी शहर में जा कर उसी टोकरी को दोगुने दामों में बेचते हैं.
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सरकारी मदद मिलती तो जीवन खुशहाल होता
बिफन ने बताया कि टोला के लोग परिवार के साथ मिलकर दिन-रात टोकरी बनाते हैं. परिश्रम करते हैं, लेकिन मुनाफा कारोबारी कमाते हैं. अगर इस टोला के पास मंडी रहती या फिर सरकार के द्वारा उनके उत्पादों को खरीदने की व्यवस्था होती, तो अच्छे दाम मिल सकते थे. इससे टोला वासियों को रोजगार मिलता और वे खुशहाल होते. बिफन ने बताया कि गांव में रोजगार का कोई और साधन नहीं है. अगर सरकारी स्तर से बांस उपलब्ध कराया जाता और उत्पादों की क्रय की जाती, तो हमारी स्थिती सुधर सकती थी.
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