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New Delhi : कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ अब न्यायिक जगत से ही आवाज उठने लगी है. आवाज उठाने वालों में जस्टिस मदन बी लोकुर, कानून के जानकार फली एस नरीमन और सीनियर वकील श्रीराम पांचू शामिल हैं. बता दें कि ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस मुरलीधर इसी साल 7 अगस्त को रिटायर हुए. वे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के भी जस्टिस रहे हैं. उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अवसर न दिये जाने पर न्यायिक जगत के इन कानूनविदों ने सवाल उठाये हैं.
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जस्टिस मुरलीधर को कानून की अच्छी अकादमिक समझ थी
पूछा कि आखिर जस्टिस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं भेजा गया.कहा कि यदि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया गया होता तो उनकी रिटायरमेंट उम्र 7 अगस्त,2026 हो जाती इन तीनों न्यायविदों ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक आर्टिकल में कॉलेजियम के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में एक वकील के तौर पर जस्टिस मुरलीधर का शानदार करियर था क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की उन्हें गहरी समझ थी. मुरलीधर को कानून की अच्छी अकादमिक समझ थी. कहा कि वह अहम मामलों के वकील भी रहे थे. टीएम शेषन के दौर में उन्होंने चुनाव आयोग की तरफ से दलीलें दी थीं. विधि आयोग के वह सदस्य रह चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट के लिए प्रमोट न किया उनकी समझ से बाहर परे है
जस्टिस मुरलीधर 2006 से 2020 तक दिल्ली हाई कोर्ट में जज रहे थे. तीनों कानूनविदों के अनुसार जस्टिस मुरलीधर को क्रिमिनल जस्टिस की शानदार समझ थी. इसके बाद भी उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लिए प्रमोट न किया उनकी समझ से बाहर परे है. कॉलेजियम से सवाल: जस्टिस एस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं भेजा…शीर्षक से लिखे Article में पूर्व जस्टिस के फैसलों का भी जिक्र है. बता दें कि दिल्ली दंगों के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा था कि यदि दिल्ली पुलिस ने भड़काऊ भाषणों के मामले में सही समय पर ऐक्शन लिया होता तो दंगे भड़कने की स्थिति नहीं आती.लेख में ओडिशा हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस रहने के दौरान लाये गये बदलावों का भी जिक्र किया गया है. सवाल उठाया गया है कि इस शानदार जज को सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं भेजा गया?
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