Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट द्वारा स्थानीय निकाय चुनाव कराने को लेकर दिये गये आदेश और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बावजूद जल्द चुनाव होने की कोई उम्मीद नहीं है. इसके दो प्रमुख कारण हैं. पहला चुनाव आयोग द्वारा पूरे देश में SIR शुरू करने का संकेत दिया जाना और दूसरा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में राज्य सरकार द्वारा ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अब तक पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा निर्धारित नहीं करना.
राज्य में शहरी स्थानीय निकाय (नगर निगम, नगर पालिका, नगर पर्षद) चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा तैयार मतदाता सूची के इस्तेमाल का प्रावधान है. राज्य निर्वाचन आयोग और चुनाव आयोग के बीच मतदाता सूची की मांग को लेकर चली लंबी खींच तान और पत्राचार के बाद विधानसभा चुनाव 2024 के लिए चुनाव आयोग द्वारा तैयार पुनरीक्षित मतदाता सूची के आधार पर स्थानीय निकाय चुनाव कराने पर सहमति बनी थी. इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव आयोग द्वारा तैयार मतदाता सूची को वार्डों में बांटने का काम शुरू किया. इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग के तत्कालीन निर्वाचन आयुक्त डॉक्टर डीके तिवारी का कार्यकाल समाप्त हो गया. इससे राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव के लिए आगे की प्रक्रिया रुक गयी.
इसके बाद राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव कराने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गयीं. हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद जल्द स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया. आदेश का अनुपालन नहीं होने पर Contempt Petition दायर किये गये. आदालत ने मामले में सख्त रवैया अपनाते हुए मुख्य सचिव को कार्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया. इस निर्देश के आलोक में तत्कालीन मुख्य सचिव अलका तिवारी कोर्ट में हाजिर हुईं. अब सरकार ने उन्हें ही राज्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया है. राज्य सरकार द्वारा चुनाव से संबंधित सारे कानूनी प्रावधानों को पूरा करने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग शहरी स्थानीय निकय चुनाव कराने के लिए अपना कदम बढ़ायेगा.
इसके लिए उसे चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा के लिए तैयार मतदाता सूची की जरूरत होगी. चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची का Special Intensive Revision( SIR) कराया है. साथ ही देशभर में SIR कराने की बात कही है. इसकी शुरूआत इसी साल अक्तूबर नवंबर से होने का संकेत है. ऐसी स्थिति में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा स्थानीय निकाय चुनाव के लिए SIR के बाद अंतिम रूप से प्रकाशित की जाने वाली मतदाता सूची की जरूरत होगी. इसलिए राज्य में हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद स्थानीय निकाय चुनाव जल्द कराने की उम्मीद नहीं है.
दूसरी बात यह कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ट्रिपल टेस्ट के बाद अब तक पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के प्रावधान से संबंधित अधिसूचना जारी नहीं की है. विकास किशन राव गवली ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को दी जा रही 27% के आरक्षण के प्रावधान को चुनौती दी थी. इसमें गवली की ओर से यह कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243 में चुनाव के दौरान सिर्फ SC-ST को आरक्षण देने का उल्लेख है. इसमें OBC के आरक्षण का उल्लेख नहीं है. इसलिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सिर्फ SC-ST के लिए सीटें आरक्षित की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट ने विकास किशन राव गवली बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में ट्रिपल टेस्ट के बाद ही स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ी जाति को आरक्षण देने का प्रावधान करने का आदेश दिया था. साथ ही SC, ST और OBC की दी जाने वाली आरक्षण की कुल सीमा को 50% प्रतिशत के अंदर रखने का आदेश दिया था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो OBC को आरक्षण दिये बिना ही निकाय चुनाव करा सकती है. लेकिन निकाय चुनाव में OBC को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट की बाध्यता होगी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये इस आदेश के अनुपालन ने राज्य सरकार ने काफी देर से ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया शुरू की. ट्रिपल टेस्ट की जिम्मेवारी राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को दी गयी. पिछड़ा वर्ग आयोग ने ट्रिपल टेस्ट के बाद अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है. इस रिपोर्ट पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आपत्तियां दर्ज करायी गयी हैं. राज्य सरकार ने भी पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आलोक में पिछड़ों के आरक्षण पर कोई फैसला नहीं किया है.
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