Ranchi: मधुपुर विधानसभा उपचुनाव की तैयारी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दी है. चुनाव आयोग द्वारा जल्द ही यहां उपचुनाव कराने के लिए अधिसूचना जारी किए जाने की उम्मीद है. इस विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला हमेशा दिलचस्प रहा है. एक बार फिर चुनाव को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है. मधुपुर विधानसभा क्षेत्र में झामुमो और भाजपा एक-दूसरे को हमेशा पटखनी देते रहे हैं. एक बार झामुमो की जीत होती है, तो दूसरी बार भाजपा सीट पर कब्जा जमाती है.
इस बार मुकाबला फिर देखने वाला होगा. क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व मंत्री स्व. हाजी हुसैन अंसारी के पुत्र हफीजुल हसन को सरकार में मंत्री बना दिया है और साफ कर दिया है कि झामुमो के मधुपुर से वही उम्मीदवार होंगे. भाजपा ने अभी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन पूर्व मंत्री राज पालिवार को एक बार फिर मौका देने की चर्चा है.
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तीन अप्रैल तक उपचुनाव संपन्न कराना होगा
पूर्व मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के निधन के कारण मधुपुर विधानसभा सीट खाली हुई है. सीट खाली होने के छह महीने के अंदर चुनाव कराया जाना जरूरी है. इस लिहाज से चुनाव आयोग को तीन अप्रैल तक उपचुनाव संपन्न कराना है. आयोग ने तैयारी शुरू कर दी है. राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के रविकुमार ने रविवार को मधुपुर में उपचुनाव की तैयारी की समीक्षा की है. उन्होंने आयोग को रिपोर्ट दे दी है. इसलिए मधुपुर विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना इस महीने के अंत तक घोषित किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है.
अब तक हुए चार चुनाव, दो बार झामुमो का कब्जा
अविभाजित बिहार में वर्ष 2000 में हाजी हुसैन अंसारी मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे. राज्य गठन के बाद हुए चुनाव में यहां की जनता हर बार चेहरा बदल देती है. राज्य गठन के बाद अब तक चार चुनाव हुए हैं. इनमें दो बार झामुमो और दो बार भाजपा का कब्जा रहा है. वर्ष 2005 में भाजपा के राज पालिवार ने जीत दर्ज की तो वर्ष 2009 के चुनाव में हाजी हुसैन अंसारी जीते थे. हालांकि इस चुनाव में दूसरे नंबर पर झामुमो रहा था. वर्ष 2014 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा के राज पालिवार को जनता ने जिताया, तो वर्ष 2019 के चुनाव में जनता ने जीत का सेहरा हाजी हुसैन अंसारी को पहनाया.
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झामुमो का अधिक, भाजपा का कम वोटों से होती रही जीत
मधुपुर विधानसभा सीट पर जीत-हार का फैसला भी दिलचस्प रहा है. झामुमो की जब भी जीत हुई है, तो मार्जिन अधिक रहा है. जबकि भाजपा कम वोटों के अंतर से जीतती रही है. वर्ष 2005 में भाजपा ने 6,667 और वर्ष 2014 में 6,884 वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं झामुमो ने वर्ष 2009 में 20,468 और वर्ष 2019 में 23,069 वोटों से जीत दर्ज की.
दोनों पक्षों को सहयोगियों के साथ की जरूरत
यूपीए और एनडीए दोनों को अपने-अपने सहयोगियों के साथ की जरूरत है. झामुमो ने उम्मीदवार तय कर दिया है. उसे कांग्रेस का साथ तो मिल रहा, लेकिन राजद को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है. राजद ने इस सीट पर दावा भी ठोका था, लेकिन झामुमो ने स्पष्ट कर दिया कि हफीजुल अंसारी ही उसके उम्मीदवार होंगे. ऐसी हालत में झामुमो को राजद को मनाकर उसका साथ लेना पड़ेगा. वहीं झाविमो का भाजपा में विलय हो गया है.
झाविमो उम्मीदवार को पिछले चुनाव में 4,222 वोट मिले थे. झाविमो समर्थक अब भाजपा को वोट दें, यह कोशिश भाजपा के प्रत्याशी को करनी होगी. उधर, गत चुनाव में भाजपा और आजसू में तालमेल नहीं बैठ पाया था. आजसू के उम्मीदवार को 45,620 वोट मिले थे. भाजपा और आजसू के वोटों को जोड़ कर देखा जाए तो झामुमो को इससे कम वोट आये थे. चुनाव के बाद भाजपा और आजसू में एक बार फिर तालमेल बैठा है. यह तालमेल चुनाव में बना रहा, तो उपचुनाव के नतीजे चौंकानेवाले भी हो सकते हैं.
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