New Delhi : कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में आये उपभोग खर्च सर्वे को चुनाव से प्रेरित सर्वे करार देते हुए मंगलवार को दावा किया कि सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने की नाकाम कोशिश की है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है तो देश में जाति आधारित जनगणना करवाई जायेगी ताकि सही आंकड़ा एकत्र हो सके. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
10 साल की गहन निद्रा में खर्राटे लेने के बाद, आख़िरकार मोदी सरकार, जनता के ख़र्च और आमदनी पर एक “चुनाव से प्रेरित सर्वे” लाई है।
सर्वे में मोदी सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने की नाकाम कोशिश की है।
अगर देश में सब कुछ इतना चमकदार है, जैसा इस Household Consumption Expenditure Survey… pic.twitter.com/4gwf6nC8zG
— Mallikarjun Kharge (@kharge) February 27, 2024
मोदी सरकार, जनता के खर्च और आमदनी पर चुनाव से प्रेरित सर्वे लायी है
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के ताजा अध्ययन के अनुसार देश में परिवारों का प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 2011-12 की तुलना में 2022-23 में दोगुना से अधिक हो गया है. गत शनिवार को जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत एनएसएसओ ने अगस्त, 2022 से जुलाई, 2023 के दौरान परिवारों का उपभोग खर्च सर्वेक्षण (एचसीईएस) किया. खड़गे ने एक्स पर पोस्ट किया, 10 साल की गहन निद्रा में खर्राटे लेने के बाद, आख़िरकार मोदी सरकार, जनता के ख़र्च और आमदनी पर एक चुनाव से प्रेरित सर्वे लायी है.
7 करोड़ लोग रोजाना केवल 46 रुपये ही खर्च क्यों करते हैं?
सर्वे में मोदी सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने की नाकाम कोशिश की है. उन्होंने सवाल किया, अगर देश में सब कुछ इतना चमकदार है, जैसा इन परिवारों के उपभोग खर्च सर्वे में दर्शाया जा रहा है तो ग्रामीण भारत के सबसे ग़रीब 5 प्रतिशत अर्थात क़रीब 7 करोड़ लोग रोज़ाना केवल 46 रुपये ही ख़र्च क्यों करते हैं? खड़गे ने कहा, क्यों सबसे गरीब पांच प्रतिशत परिवारों को सबसे कम केवल 68 रुपये प्रति माह का ही लाभ सरकारी योजनाओं से मिला? बाक़ी का लाभ क्या पूंजीपति मित्रों को ही मिला? उन्होंने यह सवाल भी किया, किसानों की मासिक आमदनी ग्रामीण भारत की औसत आमदनी से कम क्यों है? क्यों ग्रामीण परिवारों का ईंधन पर खर्च केवल 1.5 प्रतिशत ही घटा, जबकि मोदी सरकार उज्ज्वला योजना की सफलता का ढिंढोरा पीटती फिरती है?
कमरतोड़ महंगाई को फर्जी आंकड़ों से छिपाने की कवायद है
उनके अनुसार, नीति आयोग के अधिकारी अब कह रहे हैं कि इन आंकड़ों के अनुसार अब भारत में ग़रीबी केवल पांच प्रतिशत ही रह गयी है, बल्कि उसी नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक की एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार ग़रीबी का आंकड़ा 11.28 प्रतिशत है. दोनों सर्वे/रिपोर्ट एक ही वर्ष 2022-23 के हैं. ग़रीबों का मज़ाक़ क्यों उड़ा रही है मोदी सरकार? उन्होंने कहा, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सरकार इस सर्वे से खाद्य मुद्रास्फीति के आंकड़ों को नापने के मापदंड में बदलाव कर सकती है. क्या ये कमरतोड़ महंगाई को फ़र्ज़ी आंकड़ों से छिपाने की क़वायद नहीं है?
मोदी सरकार जीडीपी बेस ईयर का चुनावी फायदा लेना चाहती है
उन्होंने कहा, “क्या मोदी सरकार जीडीपी बेस ईयर का चुनावी फ़ायदा लेना चाहती थी और असली तथ्य छिपाना चाहती थी? उन्होंने दावा किया कि इस परिवारों का उपभोग खर्च सर्वे का नामांकन 69वां चरण या 70वां चरण होना चाहिए था, पर इस सर्वे के नाम में ये कौन सा चरण है, वही जान-बूझकर ग़ायब कर दिया गया है ताक़ि आंकड़ों की हेराफेरी पकड़ी ही नहीं जा सके! उन्होंने कहा, मोदी जी, सब कुछ डुबाकर, डुबकी ज़रूर लगाइये, पर वर्षों से अर्जित भारत के सर्वमान्य डाटा संग्रह व सर्वेक्षणों की साख मत डुबाइये. ” कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, हमारी एक ही मांग है, सही जानकारी के लिए 2021 की जनगणना जल्द से जल्द होनी चाहिए और जाति आधारित जनगणना उसका अंग होनी चाहिए. खड़गे ने कहा, कांग्रेस पार्टी इंडिया गठबंधन की सरकार बनते ही यह जरूर करवायेगी.
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