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मणिपुर की त्रासदी: कौन जिम्मेदार

Gladson Dungdung मणिपुर में कुकी एवं मैतेई समुदायों के बीच 3 मई 2023 को शुरू हुई हिंसा के दरमियान कुकी महिलाओं के साथ हुई शर्मनाक घटना ने लोगों को अंदर से झकझोर कर रख दिया. इस हिंसा में अबतक 181 लोग मारे जा चुके हैं. 300 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. लगभग 54,488 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. कुकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने के बाद भीड़ ने उन्हें नंगा घुमाया. राज्य सरकार हिंसा पर मौन रही, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उसकी नाकामी के लिए लताड़ा. इन सबके बावजूद भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री एन. विरेन सिंह को नहीं हटाया. यह सीधे तौर पर सरकार प्रायोजित हिंसा थी. विपक्षी पार्टियों ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया, लेकिन चितंनीय विषय यह है कि हिंसा के मौलिक कारणों एवं उपायों पर गंभीरता के साथ चर्चा करने के बजाय संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद किया गया. यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी त्रासदी है. सत्ता पक्ष ने विपक्षी पार्टियों के आरोप से बचने के लिए एक नैरेटिव तैयार किया, जिसे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में रखा. इसके अलावा मणिपुर के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, पार्टी के नेता, प्रवक्ताओं एवं आईटी सेल ने टीवी चैनलों, अखबारों एवं सोशल मीडिया के द्वारा इसे देशभर में फैलाया. इस नैरेटिव में हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार हुए कुकी समुदाय को ही इसके लिए जिम्मेवार मानते हुए उन्हें म्यांमारी घुसपैठिए, बाहरी एवं आतंकवादी कहा गया. सवाल यह है कि मणिपुर में विगत दो सौ वर्षों से निवास करने वाले कुकी समुदाय के लोग घुसपैठिए कैसे हो गए? जमीन का मालिकाना हक उनके पास कैसे है? कुकी समुदाय को घुसपैठिए बोलने वाले लोगों का इतिहास क्या है? मौजूदा दौर में संघ परिवार देश का सबसे शक्तिशाली संगठन है, जिसके नियंत्रण में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया एवं बौद्धिक जगत का एक बड़ा हिस्सा है, जिसकी बदौलत अल्पसंख्यक समुदायों को निरंतर निशाना बनाया जाता है और मणिपुर हिंसा इससे अलग नहीं है. निश्चित तौर पर मणिपुर में दो समुदायों के बीच होने वाली हिंसक घटना नयी नहीं है, लेकिन इसमें नया पक्ष यह है कि इस बार ईसाई धर्मावलंबी कुकी समुदाय के लोगों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया. हिंसा में मारे गये 181 लोगों में से 113 लोग कुकी समुदाय से थे. हिंसा के दौरान 400 गिरजाघरों को जलाया गया या क्षति पहुंचायी गयी, जिसके पीछे सांप्रदायिक राजनीति जिम्मेवार है. 2017 में भाजपा पहली बार मणिपुर की सत्ता पर काबिज हुई. फलस्वरूप, राज्य सरकार के सहयोग से आरएसएस ने मजबूती के साथ वहां मैतेई समुदाय के बीच अपनी पैठ बनाने के बाद कुकी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलायी, जिसका परिणाम सबके सामने है. मणिपुर हिंसा के मूल में वहां की जमीन है. मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 प्रतिशत है, जो ओबीसी जाति से आते हैं, जिनमें अधिकांश हिन्दू धर्मावलंबी हैं. वे खुद को वहां का मूल निवासी बताते हैं. ये लोग इम्फाल घाटी में बसे हुए हैं, जो मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का मात्र 10 प्रतिशत है. वहीं 34 प्रकार के छोटे-छोटे आदिवासी समुदाय हैं, जो मूलतः कुकी एवं नागा के रूप में जाने जाते हैं, जिन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है, जिनकी आबादी 43 प्रतिशत है, जिनमें अधिकांश ईसाई धर्मावलंबी हैं, मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में निवास करते हैं, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 90 प्रतिशत है. मणिपुर में मौजूदा कानून के अनुसार बहुसंख्यक मैतेई पहाड़ी क्षेत्र में न बस सकते हैं और न ही आदिवासियों की जमीन खरीद सकते हैं. मैतेई लोग लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं एवं पहाड़ी इलाके में बसने एवं जमीन खरीदने का अधिकार भी. इसी सिलसिले में मैतेई ट्राईबल यूनियन ने मणिपुर उच्च न्यायालय में एक रिट पीटिशन दायर किया था, जिसपर 27 मार्च 2023 को न्यायालय ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने हेतु राज्य सरकार को केन्द्रीय अनुसूचित जनजाति मंत्रालय, भारत सरकार को सिफारिश भेजने का आदेश दिया. मूल बात यह है कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलते ही कुकी एवं नागा आदिवासियों की जमीन और संवैधानिक अधिकार असुरक्षित हो जायेंगे, क्योंकि मैतेई समुदाय के लोग राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हैं. राज्य के 60 विधानसभा सीटों में से 40 सीट मैतेई बहुल घाटी क्षेत्र में पड़ते हैं एवं मात्र 20 सीट पहाड़ी क्षेत्र में. मणिपुर हिंसा ने हमें लोकतंत्र के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर किया है, क्योंकि इस मुद्दे पर चर्चा हेतु संसद में 60 घंटे का बहुमूल्य समय आवंटित किया गया था, लेकिन मणिपुर के दोनों सांसदों में से किसी को भी बोलने नहीं दिया गया. फिर उनका सांसद बने रहने का क्या औचित्य है? केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के ‘‘हवाई चुंबन” ने आहत कर दिया, लेकिन भीड़ के द्वारा दो कुकी महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार एवं नंगा घुमाने की घटना उनकी जमीर को नहीं छू सकी. क्या यह लोकतंत्र की त्रासदी नहीं है? मणिपुर की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि ‘‘मणिपुर हिंसा” पर विपक्ष के द्वारा संसद में लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 घंटे 13 मिनट भाषण दिया, जिसमें मणिपुर पर सिर्फ दो मिनट बात की और बाकी सारा समय विपक्षी गठबंधन, कांग्रेस पार्टी एवं गांधी परिवार को कोसने में व्यतीत कर दिया. इसके अलावा सत्ता एवं विपक्षी पार्टियों के अधिकांश नेताओं ने “मणिपुर हिंसा” पर चर्चा करने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने, एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं एक-दूसरे की कमी उजागर करने में समय बर्बाद किया. क्या यह मणिपुर के लोगों के साथ अन्याय नहीं है? डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]

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