Hazaribagh : लोकसभा चुनाव के परिणाम पर शहर में खूब चर्चा हो रही है. भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार पर मंथन किया जा रहा है. भाजपा के पक्ष में वो कौन से फैक्टर रहे, जिनके बल पर मनीष जायसवाल ने जय प्रकाश भाई के जातीय समीकरण को तोड़ते हुए करीब तीन लाख मतों से जीत हासिल की. बताते चलें कि भाजपा प्रत्याशी ने अपने प्रचार अभियान की खुद अगुवाई की और 75 दिन लगातार क्षेत्र की जनता से मुलाकात करते रहे, एक-एक घर जाकर लोगों से अपने लिए वोट मांगे. इसके अलावा कई जनसभाएं और रैलियां कीं. इस दौरान उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं का भी खूब सहयोग मिला. जायसवाल ने न जाति पर बात की, न किसी विरोधी प्रत्याशी पर आरोप लगाए, जबकि विपक्षी प्रत्याशियों ने उन्हें कभी व्यापारी, तो कभी शराब माफिया और स्कूल माफिया कहते रहे. अंत में क्षेत्र की जनता ने जात-पात से ऊपर उठकर भाजपा प्रत्याशी की बातों पर विश्वास करते हुए उन्हें तीन लाख वोट से विजयी बनाया.
हालांकि कुछ पुराने कार्यकर्ता भाजपा प्रत्याशी से नाराज रहे और आरोप लगाते रहे. किसी ने मनचाहा क्षेत्र में नहीं भेजने का आरोप लगाया तो, किसी ने मान सम्मान नहीं देने की बात कही. इनमें लगभग 100 से 150 पुराने भाजपा कार्यकर्ता शामिल रहे. यहां तक कि प्रत्याशी को डर भी महसूस करवाते रहे, विपक्ष को सहयोग करने के लिए अपने जाति वालों को भी उलझाते रहे, प्रेस वार्ता के माध्यम से भाजपा प्रत्याशी को गुमराह करते रहे. लेकिन भाजपा प्रत्याशी को इनकी बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा. वह अपनी मेहनत पर विश्वास रखते हुए क्षेत्र की जनता के साथ संवाद करते रहे, अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते रहे और अंत में रिजल्ट सामने आया, जिसमें जातिवाद फैलाने वालों की बोलती बंद हो गई.
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जनता से किए वादों को पूरा करने की चुनौती
अब जब सारी चुनौतियों से पार पाते हुए मनीष जायसवाल ने एक बड़ी जीत दर्ज कर ली है तो यह देखना है कि वह आम जनता से किए वादों को पूरा कर पाते हैं या नहीं. अगर वह अपने वादों खरा नहीं उतरे तो फिर उन्हें 2029 में जनता को जवाब देना होगा. इधर, इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल को जनता ने जबरदस्त झटका दिया है. प्रचार अभियान के दौरान पटेल आरोप लगाते रहे, लेकिन जैसे ही चुनाव परिणाम आया अपने पुराने मित्र मनीष जायसवाल को बधाई देने पहुंच गए. यह देखकर जनता की आंखें फटी की फटी रह गईं. कई लोगों का कहना है कि चुनाव के समय दोनों प्रत्याशी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे. यहां तक कि अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया जा रहा था, लेकिन अंत में दोनों प्रत्याशी एक हो गए और सहयोग देने वाली जनता और कार्यकर्ता जीते हुए प्रत्याशी की नजर से उतर गए.
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