- गांव-जवार और प्रदेश की आवाज बनने वाले नेता अब नहीं रहे हमारे बीच
- प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रहे लक्ष्मण गिलुआ और दुखा भगत का कोरोना से निधन
- एक महीने के अंदर साइमन मरांडी, नियेल तिर्की, बंदी उरांव, विष्णु भैया जैसे नेताओं की मौत
- प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ गिरधारी राम गौंझू और डॉ भुवनेश्वर अनुज का भी निधन
Ranchi: देश महामारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. कोरोना संक्रमण ने देशभर में 2 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी छीन ली. इस महामारी ने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र के कई चर्चित चेहरों को निगल लिया. पहचान, पैसा, पैरवी और रसूख सब कुछ रहते हुए भी इन्हें नहीं बचाया जा सका. अगर झारखंड की बात करें तो यहां 20 से ज्यादा प्रसिद्ध नेता और समाजसेवियों की मौत काल में मौत हुई है. अधिकांश की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है.
बुधवार देर रात बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद लक्ष्मण गिलुआ का निधन हो गया. इससे पहले झारखंड कांग्रेस के पहले प्रदेश अध्यक्ष दुखा भगत की भी मौत कोरोना से हो गई थी. पूर्व मंत्री साइमन मरांडी, पूर्व सिमडेगा के पूर्व विधायक नियेल तिर्की, जामताड़ा के पूर्व विधायक विष्णु भैया, पूर्व मंत्री और आईपीएस बंदी उरांव, प्रसिद्ध लेखक और नागपुरी साहित्यकार डॉ गिरिधारी राम गौंझू, नागपुरी साहित्यकार डॉ भुवनेश्वर अनुज समेत कई लोगों की मौत बीते एक महीने में हो गई है. इससे पहले कोरोना के पहली लहर में झारखंड के मंत्री हाजी हुसैन अंसारी की भी मौत कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई थी.
पूर्व सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ का कोरोना से निधन
बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद लक्ष्मण गिलुआ का निधन 28-29 अप्रैल की रात कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई. संक्रमित होने के बाद वे टीएमएच में भर्ती थे. पिछले कुछ दिनों से उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी. डॉक्टरों ने उन्हें रेमेडिसिवर दवा लेने के लिए लिखा था, जिसे हासिल करने के लिए उन्हें काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा था. 57 साल के गिलुआ प्रदेश में बीजेपी का बड़ा चेहरा रहे हैं. पिछला लोकसभा चुनाव वे गीता कोड़ा से हार गये थे. वहीं विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद उन्होंने 25 दिसंबर को प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था.
कोरोना के कारण पूर्व सांसद और प्रदेश अध्यक्ष दुखा भगत की भी मौत
वनांचल बीजेपी के आखिरी और झारखंड बीजेपी के पहले प्रदेश अध्यक्ष दुखा भगत की भी मौत कोरोना की वजह से हो गई. 23 अप्रैल को रांची के रिम्स में इलाज के दौरान का निधन हो गया. कोरोना संक्रमित होने के बाद कई अस्पतालों में उन्हें एडमिट करने की कोशिश की गई थी, लेकिन बेड नहीं मिल पायी थी. आखिरकार सांसद संजय सेठ की पहल से रिम्स में उन्हें बेड मिली थी जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. दुखा भगत उस समय सुर्खियों में आये थे, जब उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और वर्तमान मंत्री रामेश्वर उरांव को लोकसभा चुनाव में हरा दिया था. दुखा भगत 1999 से 2004 तक लोहरदगा के सांसद रहे थे.
कोरोना काल में जेएमएम के कद्दावर नेता साइमन मरांडी का भी निधन
जेएमएम के कद्दावर नेता साइमन मरांडी की भी मौत कोरोना काल में हो गई. 13 अप्रैल को कोलकाता को आरएन टैगोर अस्पताल में उनका निधन हुआ. साइमन कई दिनों से बीमार चल रहे थे. तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. साइमन मरांडी का राजनीतिक सफर काफी पुराना है. 1977 में पहला चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़ा था. वे पांच बार 1977, 1980, 1985, 2009 में 2017 विधायक रहे हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ हारे थे. साइमन जेएमएम के टिकट पर राजमहल सीट से 1989 और 1991 में सांसद रहे थे. 2013 में हेमंत सरकार में मंत्री भी बनाए गए थे.
पिछली लहर में मंत्री हाजी हुसैन अंसारी का निधन
हेमंत सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी का निधन 3 अक्टूबर 2020 को हुआ था. कोरोना संक्रमण के कारण वे रांची के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराये गये थे. मृत्यु से पहले उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी थी. देवघर जिला के मधुपुर प्रखंड के पिपरा गांव में 23 जुलाई, 1947 को जन्मे अंसारी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी. हाजी हुसैन अंसारी बाद में जेएमएम में शामिल हो गये और मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से 1995 से 2019 तक लगातार चुनाव लड़ते रहे. अपने ही गढ़ में उन्हें दो बार हार का भी सामना करना पड़ा. राज्य में जब भी जेएमएम की सरकार बनी, वह उसमें मंत्री बने. हेमंत सोरेन की अगुवाई में पहली बार बनी बहुमत की सरकार में भी वह मंत्री थे.
बीमारी से लड़ते-लड़ते खामोश हो गई विष्णु भैया की आवाज
कोरोना काल में जामताड़ा के पूर्व विधायक विष्णु भैया का भी निधन हो हुआ. 3 अप्रैल को मेडिका में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. विष्णु भैया कई दिनों से बीमार थे. 16 मार्च को रिम्स में एडमिट कराया था. तबीयत में थोड़ी सुधार होने के बाद परिजनों ने उन्हें 24 मार्च को अस्पताल से डिस्चार्ज करवा लिया था, लेकिन अचानक 1 अप्रैल को उनकी तबीयत फिर से खराब हो गई. जिसके बाद उन्हें मेडिका में भर्ती कराया गया था. विष्णु भैया ने 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में गढ़ में बीजेपी की सीट से जीत हासिल की थी. बाद में जेएमएम ज्वाइन कर लिया. 2009 में वे जेएमएम से जामताड़ा से चुनाव जीते. 2014 में वे विधानसभा चुनाव हार गये. उन्होंने कोडरमा संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव में भी हाथ आजमाया था, हालांकि वे पराजित हुए थे.
जिंदगी की जंग हार गये नियेल तिर्की
सिमडेगा के पूर्व विधायक नियेल तिर्की का निधन 14 अप्रैल को हो गया. रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में उन्हें इलाज के लिए एडमिट कराया गया था. इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. मौत के बाद उनके बेटे ने आरोप लगाया कि वैक्सीन लेने के बाद उनकी मौत हुई है. नियेल तिर्की एकीकृत बिहार में मंत्री भी रहे थे. नियेल तिर्की ने आजसू से 1982 में अपनी राजनीति शुरू की थी. फिर कांग्रेस में चले गये. 1995 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद लगातार तीन बार सिमडेगा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2009 में विधानसभा चुनाव विमला प्रधान से हार गये थे. इसके बाद भी कांग्रेस ने उन्हें खूंटी से लोकसभा का चुनाव लड़वाया था, लेकिन वे कड़िया मुंडा से चुनाव हार गये थे. फिर 2014 में उन्होंने आजसू से चुनाव लड़ा था.
पूर्व मंत्री और विधायक बंदी उरांव भी नहीं रहे
पूर्व आईपीएस और मंत्री रहे बंदी उरांव का भी कोरोना काल में निधन हो गया. लंबे समय से बीमार चल रहे कांग्रेसी नेता व सिसई के पूर्व विधायक बंदी उरांव का 90 वर्ष की आयु में निधन हुआ. 1980 में गिरिडीह के एसपी के पद पर रहते हुए उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देकर कार्तिक उरांव के प्रेरणा से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. उनके पुत्र अरुण उरांव भी पुलिस अधिकारी रह चुके हैं, जो अभी भाजपा में हैं. पुत्रवधु गीताश्री उरांव भी कांग्रेस की टिकट पर विधायक रह चुकी हैं. बंदी उरांव 1980 से 2000 तक सिसई विधानसभा के विधायक रहे. चंद्रशेखर सिंह के कैबिनेट में मंत्री रहे. क्षेत्रीय कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे. 1991-92 में राष्ट्रीय जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष भी थे. पेसा कानून बनाने के लिए भूरिया कमिटी के सदस्य भी थे.
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ गिरधारी राम गौंझू का इलाज नहीं मिलने से निधन
झारखंड सहित पूरे देश के प्रख्यात नागपुरी साहित्यकार और रंगकर्मी डॉ. गिरधारी राम गौंझू का 15 अप्रैल को निधन हो गया. डॉ. गिरिधारी राम गौंझू को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. सांस लेने में परेशानी और ऑक्सीजन की कमी के कारण उनकी मौत हो गई. हालांकि, कोरोना का टेस्ट उनका नहीं हो पाया था. इसी वजह से किसी भी अस्पताल में उनको भर्ती नहीं करवाया जा सका. कई अस्पतालों का चक्कर काटने के बाद भी उनको भर्ती नहीं किया गया और ऑक्सीजन लेवल कम होने के कारण उनकी मौत हो गई. उन्होंने झारखंड की कला संस्कृति को एक मुकाम दिया. किसी भी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति जरूर होती थी.
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ भुवनेश्वर अनुज भी हारे जिंदगी की जंग
झारखंड के प्रसिद्ध साहित्यकार, शिक्षाविद, पत्रकार डॉ भुवनेश्वर अनुज का 2 अप्रैल को निधन हो गया. 12 अक्टूबर 1936 को सिसई में जन्मे डॉ भुवनेश्वर अनुज कार्तिक बाबू को अपना आदर्श मानते थे. अपने गांव में कार्तिक उरांव के नाम पर हाई स्कूल की स्थापना की थी. राज्य में नागपुरी व अन्य झारखंडी भाषाओं में पढ़ाई आरंभ कराने वाले में वे प्रमुख सूत्रधार थे. संजय गांधी मेमोरियल कालेज पंडरा, रांची के अलावा सिसई कालेज, बसिया कालेज, लापुंग कालेज की स्थापना में उनकी अहम भूमिका रही. झारखंड आंदोलन को गतिमान करने के लिए उनकी अमूल्यरचनाएं भी प्रकाशित हुई. बौद्धिक स्तर से झारखंड आंदोलन को गति देते रहे.