आसनसोल उपचुनाव का मतलब
Dr. Pramod Pathak लोकसभा की चार सीटों के लिए कल मतदान हो रहे हैं. पंजाब में एक, उत्तर प्रदेश में दो और बंगाल में एक सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इन चार में से तीन सीटें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास नहीं है. पंजाब के संगरूर सीट से आम आदमी पार्टी के भगवंत मान सांसद थे, जो अब वहां के मुख्यमंत्री हैं. उत्तर प्रदेश की जिन दो सीटों पर चुनाव है, उनमें रामपुर से आजम खान और आजमगढ़ से अखिलेश यादव सांसद थे, जो अब विधायक हैं. केवल आसनसोल सीट पर भाजपा का कब्जा था. इस लिहाज से इस सीट का भाजपा के लिए अलग ही महत्व है. इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी यहां से भाजपा उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो जीते थे. 2019 में भी उन्होंने यह सीट बरकरार रखी और उनके भाजपा से इस्तीफा देकर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के कारण ही यहां उप चुनाव हो रहा है. कुछ अलग हटकर साबित करना चाहती है भाजपा : वैसे तो भाजपा हर चुनाव को पूरी गंभीरता से लेती है और कोई भी कोशिश नहीं छोड़ती. लेकिन आसनसोल में उसे कुछ अलग साबित करना है. ऐसा नहीं है कि इस एक सीट की हार जीत से भाजपा को कोई अंतर पड़ने वाला है. लेकिन फिर भी भाजपा इस सीट को आसानी से नहीं छोड़ने वाली. उसे यह साबित करना है कि यह सीट भाजपा की है ना कि किसी अन्य उम्मीदवार की. बाबुल सुप्रियो के तृणमूल में जाने पर खाली हुई सीट : वैसे यहां बाबुल सुप्रियो खासे लोकप्रिय हैं, लेकिन वह मोदी इफेक्ट ही था जिसने उन्हें लोकसभा तक पहुंचाया. उसी मोदी इफेक्ट की साख को फिर से स्थापित करने के लिए भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. लेकिन इस बार उसकी रणनीति थोड़ी बदली हुई है. यानी उसकी आक्रामकता प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष है. बंगाल विधानसभा के चुनाव में लगे झटके के कारण भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है और शीर्ष नेतृत्व को इस लड़ाई में इतने जोर शोर से शामिल नहीं कर रही है जितने जोर शोर से विधानसभा चुनाव में किया था. मतदाता हिन्दीभाषी तो प्रचारक भी ज्यादा बिहारी : आसनसोल में हिंदीभाषी मतदाताओं की बड़ी संख्या है और उनमें भी सबसे ज्यादा बिहारी हैं, जिन्होंने भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यही वजह है कि ममता बनर्जी ने यहां से अपने जमाने के लोकप्रिय अभिनेता और बिहारी बाबू के नाम से मशहूर सिने कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतारा है. उनके सामने भाजपा की उम्मीदवार अग्निमित्र पाल अपेक्षाकृत नयी हैं. किंतु भारी-भरकम उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा के लिए भाजपा मैदान आसान नहीं छोड़ना चाहती. अपने उम्मीदवार को मजबूती देने के लिए भाजपा ने अपनी बिहार फोर्स को मैदान में उतारा है. चाहे केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय हों या फिर पूर्व मंत्री एवं पटना के सांसद रविशंकर प्रसाद अथवा पटना सिटी के सांसद रामकृपाल यादव. इन सभी नेताओं को भाजपा ने इस रणनीति के तहत आसनसोल चुनाव अभियान में शामिल किया है कि वह शत्रुघ्न सिन्हा की बिहारियों में अपेक्षाकृत ज्यादा लोकप्रियता की धार को कम कर सके. शत्रुघ्न सिन्हा को परास्त करने के लिए रविशंकर का सहारा : शत्रुघ्न सिन्हा की बिरादरी के समर्थकों में पैठ करने के लिए रवि शंकर प्रसाद को उतारा गया है और यादव बिरादरी को आकर्षित करने के लिए रामकृपाल यादव को लाया गया है. वैसे आसनसोल में अल्पसंख्यक समुदाय की भी अच्छी खासी उपस्थिति है और वह भी परिणाम को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जाहिर है हिंदी भाषी और बिहार वासियों के वोटों में जितनी सेंधमारी भाजपा कर सकती है, करेगी. मोदी इफेक्ट का टेस्ट भी होगा आसनसोल सीट पर : कुल मिलाकर इस बार की लड़ाई इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है कि मोदी इफेक्ट का बंगाल के वोटरों पर अब क्या प्रभाव है यह भी देखना है और आने वाले दिनों में ममता बनर्जी का विपक्ष की गोलबंदी में कद कितना बढ़ेगा यह भी देखना है. इतना तो निश्चित है कि भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा और एक-एक सीट पर फोकस करना होगा. उन्हें चुनाव लड़ने की रणनीति भाजपा से सीखनी होगी और अभी से तैयारी करनी होगी. यह पूरी तरह ममता बनर्जी की लड़ाई : आसनसोल की जीत और जीत का अंतर दोनों ही महत्वपूर्ण होंगे. भाजपा की चुनाव मशीनरी ज्यादा चुस्त है इसमें शक नहीं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उस मशीनरी के कल-पुर्जे ढीले नहीं किए जा सकते. भाजपा काल में राजनीति पूरी तरह से रणनीति की लड़ाई है और राजनीतिक प्रबंधन का पाठ विपक्ष को सीखना होगा. आसनसोल एक टेस्ट केस है. यह पूरी तरह से ममता बनर्जी की लड़ाई है. डिस्क्लेमर : लेखक स्तंभकार और आईटीआई -आइएसएम के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, ये उनके निजी विचार हैं.

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