राज्यपाल सतपाल मलिक के बयान के मायने

Rama Shankar Singh मात्र किताबी और सेमिनारी ज्ञान से लबालब और जमीनी व्यावहारिक सामाजिक राजनीति से दूर अच्छी नीयत वाले बुद्धिजीवियों का सनातन विभ्रम व संकट बना रहता है. एक ख़ास तरह की असहिष्णु तुनकमिज़ाजी बनी रहती है. ऐसे लोग बौद्धिक पेंडुलम बने रहते हैं, कभी धुर इधर कभी धुर उधर. किसानों की मुख्य लड़ाई फसलों की लागत और परिश्रम समेत अन्य इन्पुट्स आदि की उचित लागत के आधार पर न्यूनतम क़ीमत की क़ानूनी गारंटी मिलने की है. सभी औद्योगिक उत्पादों पर न्यूनतम लागत क़ीमत और मनचाहा मुनाफ़ा के आधार पर क़ीमतें तय होती हैं. जिसमें विक्रेता का भी मुनाफ़ा शामिल होता है, जिसे एमआरपी कहते हैं. एमएसपी का कानून बनते होते ही बाक़ी तीनों क़ानूनों से किसानों का नुक़सान तो बंद हो जायेगा. लेकिन वे तीनों क़ानून साधारण शहरी व ग़ैर कृषि उपभोक्ताओं को मार डालेंगे. दरअसल, किसान उन तीनों क़ानूनों का विरोध इसी मध्यवर्ग निम्नवर्ग के जीवन को बचाने के लिए कर रहे हैं. बेअक्ल मध्यवर्ग इसे नहीं समझ रहा है कि शेष कृषि क़ानून में भंडारण, ख़रीद और बेचने की सीमाओं को ख़त्म करने में सिर्फ़ और सिर्फ़ उपभोक्ताओं की ही लूट होगी और ज़बरदस्त होगी. इतनी कि सब कुछ भूल कर दो जून की रोटी के इंतज़ाम में फंसे रह जायेंगें. जिसका पूरा जीवन खेती किसानी गांवों के साथ बीता हो, वह इस बात को समझता है और इसीलिए किसान आंदोलन लगातार... एमएसपी पर क़ानून बनाने की कहते रहे हैं. यह भी सही है कि एक बार यह सरकार तीनों क़ानून वापस ले सकती है, पर एमएसपी कभी नहीं देगी. इसी एमएसपी को हासिल कर पाना किसान आंदोलन की ऐतिहासिक क्रांतिकारी सफलता मानी जायेगी यदि ऐसा हो सका तो. गवर्नर मलिक गांवों के हर पक्ष से जुड़े रहे हैं और राजनीति में पांच दशकों से अधिक समय से सक्रिय हैं. एमएसपी पर उनका कहना मूल बात पर विमर्श को लौटा लाना है. षड्यंत्रों के चौतरफ़ा माहौल में हर बात में साजिश सूंघ लेना भी कोई अनुचित बात नहीं है. समय सब का जवाब दे देता है, आजकल कुछ जल्दी ही. अप्रासंगिक होते बैठे ठाले दल गिरोह आख़िर कुछ तो करेंगें ही. राज्यपाल के पद की संवैधानिक मर्यादाओं व ज़िम्मेदारियों का जो ठीक से सम्यक् अध्ययन करते हैं, वे किसी भी भांति उनके वक्तव्य को अनुचित नहीं कह सकते. किसी भी छोटी सी बात पर मीनमेख निकाल कर आलोचना का अधिकार है और सदैव ही रहेगा. व्यापक लोकहित राष्ट्रहित एवं सामयिक सदंर्भ काट कर हम अपनी छोटी निगाह से हर चीज को नंबर जीतने की प्रवृति को नियंत्रित करना चाहिए, फिर सब सार्वभौम हैं ही. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
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