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मीडियाः हिंसा दिखाते हैं, प्रेम नहीं- डर बेचते हैं, दिशा नहीं

Vinay Bharat

जब भारत में पुल और गणित बन रहे हैं, तब मीडिया हमें ड्रम और हत्या दिखा रहा है. IISc की प्रो जी माधवी लता ने 17 वर्षों की मेहनत से चिनाब नदी पर विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाया. वहीं अमेरिका में दिव्या त्यागी ने 100 साल पुरानी wind energy equation गणितीय चुनौती को सुलझाकर ऊर्जा की नई राह खोली.
 
लेकिन अखबारों में, टीवी पर ये खबरें नहीं दिखीं. कहीं भी नहीं. दिखीं भी तो ऐसे, जैसे बताने से अधिक छुपाया जा रहा हो. बस, छाप दिया, दिखा दिया. 
 
क्या पुल को कवर करना दिलचस्प नहीं था? क्या दिव्या की videos हम दिन में 100 बार नहीं देख सकते थे? देख सकते थे. पर, हमें दिखाया नहीं गया. पढ़ाया नहीं गया. दिखी तो बस- पत्नी ने पति को टुकड़ों में काटा, हत्या करवा कर घाटी में फेंका, रिश्ते में विष, हिंसा और सनसनी!
 
 
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दरअसल, इस तरह की खबरें ही हमारा भारत नहीं है. पर हम इसे ही ज्यादा देख रहे हैं. क्योंकि चुन-चुनकर इन्हें ही परोसा जा रहा है. एक तरह से जबरन दिखाया जा रहा है. पढ़ाया जा रहा है.
 
यह दरअसल न्यूज ही नहीं  है- यह एक सोची-समझी बाजार-नीति है. आज का कॉरपोरेट मीडिया निजी हाथों में है. बाजार के हाथों में खेल रहा है. सभी को पता है. ये सब मिलकर भारतीय समाज की वैवाहिक संस्था, पारिवारिक विश्वास और नैतिक जड़ों को तोड़ना चाहता है.
 
क्योंकि टूटे हुए लोग, बंटे हुए रिश्ते- “माइक्रो consumer ” बनते हैं. हर अकेला इंसान एक नया ग्राहक है- जो अकेलापन मिटाने के लिए ज्यादा खरीदेगा, ज्यादा देखेगा, ज्यादा झुकेगा.
 
इसलिए वे हिंसा दिखाते हैं, प्रेम नहीं.  डर बेचते हैं, दिशा नहीं. अब हम तय करें- हम पुल चुनेंगे या ड्रम ?  हम बाजार की चालों से नहीं, विवेक से सोचेंगे.  ऐसे news का TRP हमने ही बढ़ाया है, गिराना भी हम सभी की जिम्मेदारी है.
 

लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के असिस्टेंड प्रोफेसर हैं.

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