Surjit Singh
यह जो मीडिया में खबर है- इस साल अक्टूबर में पिछले साल के अक्टूबर के मुकाबले 28 प्रतिशत वाहन अधिक बिके. आधा सच है. दरअसल, पिछले साल दिवाली 12 नवंबर को था, इस साल 31 अक्टूबर को था. यानी कि दिवाली के ठीक पहले वाले माह के मुकाबले दिवाली के माह में सिर्फ 28 प्रतिशत अधिक वाहन बिके.
वाहन विक्रेताओं के पास 90 से अधिक दिनों की इंवेंटरी थी. यानी 90 दिन तक वह बिना वाहन मंगाये, ग्राहकों की मांग की पूर्ति कर सकते थे. उन्हें उम्मीद थी कि दिवाली में बंपर बिक्री होगी. लेकिन कम बिक्री हुए. यानी मिडिल क्लास के हालात बहुत खराब हैं. उपर से भले ही टिप-टॉप दिख रहे हों. राजनीतिक मजबूरियों की वजह से वह आह के बदले वाह-वाह कह रहे हों, पर सच इसके उलट है.
सच कितना कड़वा है, यह चार दिन पहले आयी रिपोर्ट से भी समझ सकते हैं. पिछले पांच सालों में आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या ढ़ाई करोड़ बढ़ कर 7.5 करोड़ हो गया, लेकिन आयकर भरने वालों की संख्या 3.3 करोड़ से कम होकर 2.8 करोड़ रह गया. यह जो आयकर देने वालों की संख्या में 50 लाख की कमी आ गई है. यह बताता है कि मिडिल क्लास अब हाफने लगा है. कमाई बढ़ नहीं रही और महंगाई आसमान पर है.
पिछले पांच सालों में सब्जी, राशन से लेकर दवाईयों तक के दाम दो-तीन गुणा बढ़ चुका है.
यह जो डॉलर मजबूत हो रहा है और रूपया कमजोर हो रहा है. यह जो पिछले 37 दिनों में शेयर बाजार ने 7054 अंक (8.2 प्रतिशत) की गिरावट देखी है. और गिरावट की आशंका है. क्योंकि विदेशी निवेशकों ने पिछले 37 दिनों में 1.34 लाख करोड़ की बिकवाली की है. विदेशी निवेशक पहले भी बिकवाली करते थे, तब भारतीय निवेशक बाजार को थाम लेते थे. अब स्थिति अलग है. भारतीय निवेशकों का दम फूल चुका है. अब उनके पास बाजार में लगाने के लिए पैसे नहीं है. जो लगाये हैं, उसमें गिरावट जारी है. अगर विदेशी के साथ देशी निवेशकों ने भी बाजार से पैसा निकालना शुरु किया, तो बाजार कोहराम तय है.
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि शेयर बाजार में जो 10.37 करोड़ निवेशक है, उनमें से 7.27 करोड़ निवेशक नए हैं. यानी पिछले तीन-चार सालों के भीतर बाजार में आये हैं. जिन्होंने बाजार में सिर्फ मुनाफा देखा है, उन्हें भी लग रहा था कि सच में बागों में बहार है. अब जब तेज गिरावट हो रही है तो उनके हाथ-पांच फूलने लगे हैं.
कुल मिलाकर हालात यह है कि भले ही सरकारें अच्छे-अच्छे आंकड़े दिखा कर खुद वाहवाही लेते रहे. उनके आंकड़ों पर हम गर्व करते रहें. लेकिन सच तो यही है कि ना मिडिल क्लास की माली हालत ठीक है और ना ही उनके लिए बागों में बहार है. है तो सिर्फ गिने-चुने लोगों की संपन्नता और तेजी से बढ़ती उनकी अमीरी. मिडिल क्लास की तो जेब खाली है और आंखों में सुनापन. यानी ठन-ठन गोपाल वाली स्थिति.
Leave a Reply