Sunil Pandey
Jamshedpur : पूर्वी सिंहभूम जिले में 11 प्रखंड हैं, जिसमें जमशेदपुर सदर प्रखंड को छोड़कर सभी प्रखंडों में खनन कार्य चलता है. कहीं पत्थर, कहीं बालू, कहीं क्वार्ट्ज-क्वार्टजाइट तो कहीं पन्ना का खनन होता है. विभाग की ओर से पूरे जिले में 30 क्रशर की अनुज्ञप्ति दी गई है. लेकिन अगर पोटका की बात करें तो जानकार बताते हैं कि अकेले इस प्रखंड क्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा क्रशर का संचालन हो रहा है. एक प्रखंड में जब इतनी तादाद में क्रशर संचालित होते हैं, तो पूरे जिले में क्या केवल 30 ही होंगे. अब अवैध क्रशरों में पत्थर की आपूर्ति भी तो वैध ढंग से नहीं ही होती होगी. जानकार बताते हैं कि पिछले 10 दिनों से पोटका क्षेत्र में अवैध खनन की रफ्तार बढ़ गई है. ज्ञात हो कि बीते 29 जनवरी को जिले के नए खनन पदाधिकारी के रूप में संजय कुमार शर्मा ने पदभार संभाला है. लगातार न्यूज ने पूर्वी सिंहभूम जिले में माइनिंग का खेल के पहले अंक में यह बता दिया था कि खनन कारोबार में किस तरह का नया खेल शुरू हो गया है.
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खनन नियमों को ताकपर रखकर काम कराते हैं लीजधारक
पोटका क्षेत्र में खनन पट्टा के विपरीत कार्य करने के अनेक मामले प्रकाश में आते रहे हैं. थोड़े से जमीन का पट्टा लेकर लीजधाकर बड़े भूखंड को खोद डालते हैं. ऐसा ही एक मामला वर्ष 2020 में पोड़ाडीहा पंचायत अंतर्गत नायकसाई में सामने आया था. एक खदान में पत्थर का भारी चट्टान गिरने के कारण पोकलेन चालक फंस गया था. उसकी जान पर बन आई. तीन घंटे से ज्यादा समय तक रेस्क्यू करने के बाद उसे सुरक्षित निकाला जा सका. खनन विभाग की जांच में लीजधारक द्वारा भारी अनियमितता बरते जाने की बात कही गई. इस तरह से काम अभी भी नहीं रूका है. बल्कि यह कहें कि पहले से अधिक अनियमितता बरती जा रही है.
खनन क्षेत्र में जाने के लिए पगडंडीनुमा रास्ते का करते हैं इस्तेमाल
अवैध खनन वाले क्षेत्रो में जाने के लिए खनन माफिया खेतों अथवा मेड़ों से होकर पगडंडीनुमा रास्ता बना लेते हैं. जिससे बाहरी लोगों को इसका भान नहीं हो सके कि उक्त क्षेत्र में खनन कार्य चल रहा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि क्षेत्र के हर पगडंडीनुमा रास्ते में जाने पर आपको खनन कार्य चल रहे अथवा खनन किए जाने के सबूत मिल जाएंगे. कार्यस्थल से छोटे वाहन अथवा ट्रैक्टर से लोडकर पत्थर को गंतव्य तक पहुंचाया जाता है. वहीं जहां बड़े पैमाने पर खनन कार्य चल रहा है, वहां बड़े वाहन हाइवा में पत्थर लोडकर क्रशर तक पहुंचाए जाते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि दिन में इक्का-दुक्का बड़े वाहन चलते हैं. अधिकांश ट्रैक्टर से पत्थर ढोए जाते हैं, जबकि रात होते ही दर्जनों हाइवा की हनहनाहट सुनाई देने लगती है.
कृषि भूमि में भी पत्थरों की है भरमार
पोटका क्षेत्र में कृषि योग्य समतल भूमि कम ही बची है. क्योंकि कृषि भूमि पर भी पत्थरों की भरमार है. खनन माफिया रैयतदारों से औने-पौने दाम पर भूमि लीज पर लेकर अथवा उसका वार्षिक रेंट चुकाकर कृषि भूमि की खुदाई (खनन) कर पत्थर निकाल लेते हैं. खुदाई से समतल खेत तालाब जैसा बन जाता है. ऐसे अनेक बड़े-बड़े गड्ढे क्षेत्र में इन दिनों दिख रहे हैं, जो आने वाले समय में जानलेवा भी साबित हो सकते हैं. कालांतर में ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं, जिनमें गड्ढों में गिरकर लोगों की पानी में डूबने से मौत हुई है. वहीं आपराधिक वारदात करने वाले लोगों के लिये ऐसे गड्ढे वरदान साबित हुए हैं. जहां घटना को अंजाम देकर साक्ष्य को छुपा दिया जाता है.
सरकार को करोड़ों के राजस्व की लग रही चपत
पोटका क्षेत्र में धड़ल्ले से चल रहे अवैध खनन के कारण सरकार को करोड़ों रुपये राजस्व की चपत लग रही हैं. वरीय अधिकारियों की फटकार अथवा दबाव पड़ने के बाद विभाग के अधिकारी दिखावे के लिए थोड़ी बहुत कार्रवाई कर जुर्माना लगाते हैं. जो नाकाफी होता है. वर्ष 2019 में 13 अवैध क्रशर संचालकों से 618777 रुपये जुर्माना वसूला गया, जो नाममात्र का राजस्व है. जबकि पूर्वी सिंहभूम जिले में 30 क्रशर की अनुज्ञप्ति जारी की गई है, लेकिन पोटका क्षेत्र में ही दो दर्जन से ज्यादा क्रशर संचालित हैं. ऐसे में जुर्माना के नाम पर सरकार को नाम मात्र का राजस्व गले नहीं उतर रहा. (अगली किस्त में अगली कहानी)
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