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दागदार चेहरे को आईना नहीं सुहाता

Nishikant Thakur कई व्यक्ति धैर्यवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होने के बावजूद अहंकार से ग्रस्त होने के कारण सफल नहीं हो पाते हैं. कुछ ऐसी चूक वह कर जाता है, जो समाज के लिए अक्षम्य होता है. असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगई ने चर्चा की शुरुआत करते हुए मणिपुर के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा. गौरव गोगई ने चर्चा के दौरान केंद्र सरकार से तीन सवाल पूछे. पहला प्रश्न उनका था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर क्यों नहीं गए? उन्हें वहां के हालात पर बोलने के लिए 80 दिन क्यों लगे? मुख्यमंत्री एन. वीरेंद्र सिंह को हटाया क्यों नहीं गया? विपक्ष के आरोप का जवाब देने के लिए झारखंड से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने विपक्ष के आरोपों का खण्डन करते हुए कहा कि विपक्ष को जनता से जुड़े मुद्दों से सरोकार नहीं है. यह प्रस्ताव एक गरीब के बेटे के खिलाफ लाया गया है. समझ में यह बात नहीं आती कि आखिर प्रधानमंत्री कब तक अपनी छवि देश की जनता के बीच निरीह, गरीब और पीड़ित की बनाकर रखेंगे? जो व्यक्ति लगभग पंद्रह वर्ष तक किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, नौ वर्षों से देश का प्रधानमंत्री हो, जिसके पास करोड़ों की गाड़ियां हों, अपनी यात्रा के लिए निजी विमान हो, जो दिन में कम-से-कम तीन बार वस्त्र बदलता हो, लाखों का सूट पहनता हो, क्या ऐसा व्यक्ति भारत में गरीब कहलाता है? अपने को पीड़ित, गरीब, असहाय बताकर सामान्य जनता को हमारे नेता कब तक मूर्ख बनाते रहेंगे. सच तो यह है कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव तो मणिपुर प्रदेश के लिए था, लेकिन निशिकांत दुबे जनता को असली मुद्दे से भटकाकर देश-दुनिया घुमाकर उन्हें गुमराह करते रहे. सच तो देश की जनता ने देख लिया कि ऐसा राजनेता आज तक देश में कोई दूसरा नहीं हुआ, जो जनता के दुःख—दर्द को सुनने, उन्हें दूर करने के बजाय अपने को ही पीड़ित बताकर उसके समक्ष रोने का अभिनय करने लग जाए. राहुल गांधी ने लोकसभा में दूसरे दिन अविश्वास प्रस्ताव पर बहस में हिस्सा लिया. अपने संबोधन में भारत जोड़ो यात्रा, मणिपुर हिंसा और कई मुद्दों पर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी. भाषण की शुरुआत करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि आज का भाषण अदाणी पर नहीं है, इसलिए भाजपा के सांसदों को परेशान होने की जरूरत नहीं है. आज मैं दिमाग से नहीं दिल से बोलूंगा. कांग्रेस नेता ने मणिपुर पर बात करते हुए कहा कि जब हम सपनों को पूरे करते हैं, तब हमें हिंदुस्तान की आवाज सुनाई देती है. भारत एक आवाज है, भारत इस देश के सब लोगों की आवाज है और अगर हमें वह सुननी है, तो नफरत को भुलाना पड़ेगा. कुछ दिन पहले मैं मणिपुर गया, लेकिन प्रधानमंत्री आज तक नहीं गए, क्योंकि उनके लिए मणिपुर हिंदुस्तान नहीं है. मणिपुर के मुद्दे पर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला और कहा कि हिंदुस्तान को मणिपुर में मारा है, उसका कत्ल किया, मर्डर किया. भारत माता की हत्या मणिपुर में की गई. मणिपुर के लोगों को मारकर भारत माता की हत्या की गई. आप देशद्रोही हो, देशप्रेमी नहीं हो. इसलिए आपके प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं जाते. अब आप हरियाणा में जो कुछ कर रहे हो उससे पूरा देश जलाने में लगा है. राहुल गांधी ने तंज कसा कि जिस तरह रावण सिर्फ मेघनाद और कुंभकर्ण की सुनता था, उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सिर्फ अमित शाह और अदाणी की सुनते हैं. यह ठीक है कि इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार का कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन इतनी बात जरूर हुई है कि देश की आम जनता को इस बात पर मनन करने का अवसर मिल गया है कि मणिपुर को इस जातीय हिंसा में किसने और किसलिए झोंका. छोटी-छोटी घटना तो समाज में, गांव में परिवार में होती ही रहती है, लेकिन इतनी बड़ी और हिंसात्मक घटना तो शायद देश में पहली बार घटित हुई है जब महीनों तक मार-काट, आगजनी और यहां तक कि थानों और पुलिस चौकियों पर हमला करके अत्याधुनिक हथियारों को लूट लिया गया हो. अब गौर करने वाली बात यह है कि इन अत्याधुनिक हथियारों का दुरुपयोग ये दंगाई लुटेरे किस प्रकार और किसके लिए करेंगे? मसला बहुत ही गंभीर है, लेकिन इस पर शीर्ष सत्तारूढ़ नेताओं का मौनव्रत साध लेना कहां तक उचित है. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है. यह बड़ी अजीब बात है कि तीन महीने में लगभग साढ़े छह हज़ार दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनकी प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन इसका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिन्होंने मणिपुर के डीजीपी को सिलसिलेवार ढंग से सारी फाइलों के साथ स्वयं अदालत में उपस्थित रहने का आदेश दिया है. मणिपुर प्रकरण इतना गंभीर हो गया है कि देश ही नहीं, विदेश में भी इस पर भारत सरकार की थू-थू कर रहे हैं. देश इस बात से दुखी है कि अपने ही देश के एक राज्य में इतनी वीभत्स घटना घटित हो गई और प्रधानमंत्री ने उसका कोई संज्ञान नहीं लिया. सामान्य जन का मानना है कि वहां के पीड़ितों के दर्द को सहलाने के लिए और उनकी समस्या हल करने के लिए यदि प्रधानमंत्री का एक दौरा हो जाता, तो उन्हें राहत मिलती. देखना यह है कि इस अविश्वास प्रस्ताव के बाद सत्तारूढ़ दल मणिपुर प्रकरण पर कोई ठोस कदम उठा पाते हैं या नहीं अथवा प्रधानमंत्री इस मणिपुर का दौरा करके मामले पर कोई ठोस कार्रवाई करते हैं या नहीं. वैसे प्रधानमंत्री ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाया है कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है. डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]

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