Ranchi : मोदी सरकार के लाये तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसान दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलनरत है. आखिरकार एक साल बाद केंद्र की मोदी सरकार किसानों के सामने झुक गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया. इसके साथ झारखंड के गैर बीजेपी राजनीतिक दलों ने तीनों कानूनों के वापसी को भाजपा की हार और जनता की जीत बता मिलजुली प्रतिक्रिया दी है.
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दम्भ के समक्ष संघर्ष की जीत हुई है : जेएमएम
पूरे देश के कृषकों को नमन।
आज दम्भ के समक्ष संघर्ष की जीत हुई है।
तीनों काले क़ानून वापस। #किसानआंदोलन
— Jharkhand Mukti Morcha (@JmmJharkhand) November 19, 2021
सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने ट्वीट कर बताया है कि आज दम्भ के समक्ष संघर्ष की जीत हुई है. पूरे देश के कृषकों को नमन. तीनों काले कानून वापस हुए.
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वापसी का ऐलान केवल चुनावी जुमला : कांग्रेस
कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि किसान-विरोधी तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने का ऐलान चुनावी जुमला है. फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, कानून रद्द करने की औपचारिक प्रक्रिया संसद के अगले शीतकालीन सत्र में पूरी की जायेगी. लेकिन इससे पहले अपने तीन कारपोरेट-प्रिय कानूनों को लागू कराने के लिए सरकार और सत्ताधारी दल के लोगों ने किसानों पर बहुत जुल्म ढाये हैं. खैर, भारतीय किसानों की बड़ी जीत! मोदी सरकार को अंततः झुकना पड़ा! उन्होंने कहा कि साल भर के दौरान किसानों को बहुत सताया और किसानों के कई जरूरी सवाल अब भी अनुत्तरित हैं.
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किसानों को कम आंकने वाले लोगों की हुई हार : आरजेडी
राजद के प्रदेश अध्यक्ष अभय सिंह ने कहा कि यूपी के चुनाव को देखते हुए किसानों के सामने केंद्र की सरकार पस्त हो गई है. केंद्र ने यूपी चुनाव को देखकर यह निर्णय लिया है, लेकिन जब तक कैबिनेट से तीनों बिल वापस नहीं होता है तब तक राजद का आंदोलन जारी रहेगा. अभय ने कहा कि पूंजीपतियों को खुश करने के लिए ये काला कानून लाया गया था. किसानों के कम आंकने वालों की आज हार हुई है.
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राजतंत्र की हार और लोकतंत्र की जीत हुई -बन्ना गुप्ता
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— Banna Gupta (@BannaGupta76) November 19, 2021
बन्ना गुप्ता ने कृषि कानून वापसी को राजतंत्र की हार और लोकतंत्र की जीत बताया है. इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्री ने सवाल भी उठाया है. उन्होंने पूछा है कि आश्चर्यजनक हैं कि आंदोलन में शहीद हुए किसानों, अन्नदाताओं और आम जनता को हुए तकलीफों के लिए कुछ नहीं कहा. किसानों की हत्या के लिए जिम्मेदार होने पर भी क्यों स्वीकार नहीं किया? तीनों काले कानून के लिए जो देश की संसद का बहुमूल्य वक्त और पैसा बर्बाद किया हैं इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं?
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