Vinod Singh
शायद 2011 की बात है. मैं विधानसभा समिति के स्थल निरीक्षण में चतरा गया हुआ था. हमारे साथ समिति में अरूप चटर्जी और जनार्दन पासवान भी थे. जिला में समीक्षा के दौरान मैंने देखा कि मनरेगा की योजना में दो NGO को तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल के द्वारा करोड़ों रुपये अग्रिम भुगतान किए गए है. जबकि कार्य रिपोर्ट में कार्य की तस्वीर नहीं दिख रही थी. कुछ आधी अधूरी थी. मैंने स्थानीय विधायक जनार्दन जी से बात की. उन्होंने भी शंका जताई. फिर हम तीनों ने कुछ गांव जाकर निरीक्षण का फैसला लिया. कई योजना धरातल में थी ही नहीं, कुछ कुआं आधे अधूरे मिले भी, तो उनका भुगतान मजदूरों को नही मिला.
एक किसान ने अपना सिर दिखाया कि मजदूरी भुगतान नहीं होने के कारण मजदूरों ने उनका सिर फोड़ दिया. जबकि उन सभी योजना के नाम पर निकासी हो चुकी थी. आकर हम सभी ने एक संक्षिप्त रिपोर्ट विधानसभा में दी. ग्रामीण विकास विभाग को सौंपा और एक उच्चस्तरीय जांच की मांग की. जाहिर है रिपोर्ट ठंढे बस्ते में रही.
लेकिन फिर मैंने अपनी जांच के तथ्यों पर विधानसभा में सवाल उठाया और अंततः तत्कालीन आयुक्त हजारीबाग नितिन मदन कुलकर्णी को हमारे सवाल पर जांच के लिए सौंपा गया. उन्होंने अपनी जांच में पूर्ण रूप से पूजा सिंघल को जिम्मेवार माना. इसी मध्य खूंटी से एक मनरेगा घोटाला की रिपोर्ट आई. उस समय भी वहां की उपायुक्त पूजा सिंघल थी. हमारे प्रश्न पर राम विनोद सिन्हा पर तो FIR हुआ, लेकिन वरीय अधिकारी पर करवाई नही हुई.
तबतक पलामू में भी क्रय में गड़बड़ी की शिकायत आई. फिर मैंने सरकार से प्रश्न पूछा कि आयुक्त हजारीबाग की रिपोर्ट पर कार्रवाई क्यों नही हुई, तो सरकार ने कहा, कार्मिक विभाग समीक्षा कर रहा है. मुझे 2010 से 2014 के अंतिम दो विधानसभा सत्र चित्रपट की तरह याद है. जब भी उक्त घोटाला से संबंधित हमारा प्रश्न सूची में रहता था, तो उसका नंबर आने से पहले किसी और सवाल पर हंगामा हो कर सदन स्थगित हो जाता.
पिछले विधानसभा के रघुवर दास जी के कार्यकाल में अरूप चटर्जी ने भी मामले को उठाने की कोशिश की. लेकिन सरकार टालती रही. और अंततः आज के छापे के बाद स्प्ष्ट है कि सरकारों ने हमेशा भ्रष्ट अधिकारियों के बचाव का काम ही किया है. अपनी जरूरत के हिसाब से करवाई की है. वर्तमान सरकार अब भी सचेत हो और लंबित मामलों पर करवाई करे.
डिस्क्लेमरः लेखक बगोदर से माले के विधायक हैं.