Surjit Singh
केंद्र सरकार ने 5 मई को एक ऐसा निर्णय लिया है, जिसकी चर्चा मेन स्ट्रीम मीडिया में कम ही हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित आर्थिक मामलों की समिति की बैठक हुई. बैठक में समिति ने IDBI बैंक को बेचने को मंजूरी दे दी. यह वही बैंक है जो लगातार फायदे में रह रही है. हर साल मुनाफा कमा कर सरकार को देती रही है. लेकिन अब यह सरकार की नहीं, किसी प्राइवेट व्यक्ति की कंपनी की हो जायेगी.
सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी है कि सरकार ऐसे मौके पर देश के एक बैंक IDBI को बेचना चाह रही है. ऐसी भी क्या जल्दी है कि जिस वक्त देश के कैबिनेट को यह विचार करना चाहिए था कि अस्पताओं तक ऑक्सीजन कैसे पहुंचे, वह बैंक बेचने का फैसला कर रही है. तब जब गांव-गांव और शहर-शहर में अर्थियां उठ रही हैं, चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, उसको ठीक करने की जगह बैठक में बैंक बेचने का फैसला लिया जाता है. जैसे सरकार की प्राथमिकता में लोगों की जान बचाने से ज्यादा बैंक बेचना जरुरी हो.
IDBI बैंक देश का बैंक है. सरकारी बैंक है. देश के लोगों से कमा कर ही इतना बड़ा बैंक बना है. लेकिन इसे मोदी सरकार बेच देगी. देश के लिए यह कितना खतरनाक है, वह इस बात से समझ सकते हैं कि वर्ष 2020-21 में इस बैंक ने 1359 करोड़ रूपये का शुद्ध लाभ कमाया है.