Faisal Anurag
शुक्रवार को प्रधानमंत्री कोरोना से मरे लोगों के लिए आंसू बहा रहे थे और रविवार को वे उत्तर प्रदेश के अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और मोदी इमेज के लिए आरएसएस के साथ महामंथन कर रहे थे. यह महामंथन उस समय हो रहा था जब देश भर में अब भी कोविड के 2 लाख से अधिक मामले आ रहे हैं. और रविवार को ही 4 हजार लोगों की मौत दर्ज की गयी. दत्तात्रेय होसबोले, उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ हुए इस महामंथन में अमित शाह और जेपी नड्डा भी शामिल हुए.
एक ऐसे समय में जब वैज्ञानिक कोरोना के खतरनाक तीसरी लहर की आशंका व्यक्त कर रहे हों और अभी दूसरी लहर की विभीषिका थमी भी नहीं है. चुनावों की तैयारी के लिए महामंथन सामान्य तो नहीं ही माना जा सकता है. देश में वैक्सीन की कमी को लेकर राज्य सरकारों की परेशानियां किसी से छुपी नहीं है.पिछले साल कोरोना की लहर के समय यह समझा गया था कि देश में स्वास्थ्य संरचनाओं के लिए युद्धस्तरीय प्रयास किए जाएंगे. लेकिन साल गुजर गया और दूसरी लहर ने लाखों को मौत को नींद असमय सुला दिया. ये सामान्य मौत की घटना नहीं है इसे नरसंहार से कम नहीं कहा जा सकता हैं
इस महामंथन को देश का वह दृश्य याद आ जाता है कि जब कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या हर दिन लाखों का आंकड़ा दर्ज कर रही थी प्रधानमंत्री बंगाल में बिना मास्क के चुनावी सभा में भीड़ देख कर कह रहे थे इतनी बड़ी भीड़ उन्होंने कभी नहीं देखी. जब कभी कोविड से मरे लोगों का इतिहास लिखा जाएगा इस दृश्य को याद किया जाएगा. भारत की राजनीति का वह सबसे भयावह संबोधन था.
दिल्ली में आरएसएस और भाजपा के इस महामंथन के दो ही प्रमुख मुद्दे थे. एक यूपी के चुनाव की रणनीति और दूसरा प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री का इमेज. पिछले दिनों इन दोनों ही नेताओं के ब्रांड और इमेज में जो गिरावट आयी है. उसे लेकर संघ बेहद चिंतित है. सरकार के प्रति जनता की जो नाराजगी बढ़ी है उसे लेकर भी इस बैठक में चर्चा किए जाने की सूचना है. खबरों के अनुसार इस नाराजगी को कैसे दूर किया जाए और इमेज को फिर से पहले की तरह स्थापित किया जाए इस पर विस्तार से बातचीत की गयी. एनडीटीवी की खबर के अनुसार इस बैठक में सरकार और संगठन को लेकर कई मूहत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. गंगा में बहते शवों के बाद जो हालात बने हें वह भी इस बैठक में चर्चा का एक पहलू था.
भाजपा और आरएसएस अपने इमेज को लेकर परेशान हैं. बंगाल की करारी हार ने इन दोनों संगठनों के ब्रांड और इमेज को भारी नुकसान पहुंचाया है. इसके बाद गंगा मे बहती लाशों, श्मशानों की चिताओं और ऑक्सीजन, दवा की कमी ने तो सरकार के कोरोना से लड़ने के तमाम उपक्रमों को बेपरदा कर दिया. दुनिया के तमाम बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में जिस तरह की खोज परक खबरे,विश्लेषण और लेख प्रकाशित हुए उससे मोदी ब्रांड के अंतर्राष्ट्रीय इमेज को तारतार कर दिया.
खबरों के हेडलाइन मैनेजमेंट और जमीनी हकीकत के बीच के अंतर ने नरेंद्र मोदी की छवि को प्रभावित किया. इमेज को लेकर यह सरकार की सजगता तो जगजाहिर है. आरएसएस की चिंता का भी यही विषय है. संघ प्रमुख तो अपने संबोधन में मोदी का बचाव कर ही चुके हैं. उनका यह कथन जो लोग मरे हैं वे मुक्त हो गए हैं मृत परिवारों के लिए ज्यादा तकलीफदेह साबित हुआ.
दूसरी लहर का संकट कम जरूर हुआ है लेकिन टला नहीं है. मौत के आंकड़ें चार हजार के आसपास ही दर्ज हो रहा है. तीसरी लहर की आहट सुनायी देने लगी है. लेकिन आरएसएस भाजपा इमेज और चुनावों की चिंता में ही डूबे हुए हैं.