Sunil Badal
युद्ध या कोरोना से जितने लोग मारे गए, उससे कई गुना अधिक लोग बढ़ती जा रही सड़क दुर्घटनाओं में मारे जा रहे हैं, अपंग हो रहे हैं या घायल हो रहे हैं. देश में हर साल एक लाख पचपन हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. हर दिन चार सौ पचपन लोग सड़कों में मारे जाते हैं, जिन्हें बचाया जा सकता है. पिछले दस सालों में देश में सड़कों और हाइवे का तेजी से जाल बिछा है. इससे जहां तरक्की के रास्ते खुले हैं, वहीं सड़क हादसों में हो रही मौतों ने कई सवाल खड़े किए हैं. आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों पर मौतें ज्यादा हो रही हैं. राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के मुताबिक राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़कों का मात्र 1.58 प्रतिशत है, जबकि सड़क दुर्घटनाओं में 27.5 प्रतिशत लोग मारे गए हैं. सड़क सुरक्षा के मानकों का महत्त्व समझना और समझाना दोनों जरूरी है, क्योंकि देश में सड़क नेटवर्क का तेजी से हो रहे विस्तार, गाड़ियों की संख्या में हो रही वृद्धि और शहरीकरण का नकारात्मक पक्ष सड़क दुर्घटनाओं के रूप में सामने आ चुका है. सड़क हादसों में होने वाली मृत्यु दर और अपंगता की बढ़ती संख्या ने यह सोचने पर विवश किया है कि क्या सड़कें अर्थव्यवस्था की वृद्धि की आधार हैं तो मौतें अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं?
सवाल है कि क्या सड़क हादसों में होने वाली मौतों को रोका या कम किया जा सकता है? दुखद है कि इसे हम चिंताजनक नहीं मानते. इसकी रोकथाम के लिए कोई ठोस उपाय भी नहीं किए जा रहे. यहां तक कि किसी के पास इसका कोई ठोस अध्ययन भी नहीं है कि दुर्घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं या जो दुर्घटनाएं होती हैं, उसकी पड़ताल भी सही ढंग से या वैज्ञानिक ढंग से नहीं होती. सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों में 29.16 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हो रही है. ये आंकड़े सरकारी हैं. गैर-सरकारी आंकड़ों में मौतों का आंकड़ा इससे पांच गुना ज्यादा है. दुनिया के अनेक देशों ने कड़े सड़क कानून और जनजागरूकता अभियानों से दुर्घटना दर में वृद्धि नहीं होने दी, लेकिन पिछले बीस सालों में सड़क दुर्घटनाओं की वजह से भारत में पचहत्तर प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है.
सड़क सुरक्षा पर जारी की गई विश्व स्थिति रिपोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते मामले की मुख्य पांच कारण बताए गए हैं. इनमें सीमा से ज्यादा तेज गाड़ी चलाना, नशे में गाड़ी चलाना, सुरक्षा पेटी न बांधना, दुपहिया चलाते वक्त हेलमेट न पहनना और बच्चों की सुरक्षा के उपायों की अनदेखी जैसे कारण शामिल हैं. निजी से लेकर व्यावसायिक वाहन चालक सड़क यातायात नियमों का पालन भी नहीं करते. सड़कों पर वाहन चलाने पर ना कोई स्थाई रोक-टोक है ना कोई प्रभावी मेकैनिज्म है, जिसके आधार पर यह जांच हो सके कि निर्धारित गति सीमा से अधिक तो लोग नहीं चल रहे. सबसे दुखद है कि ड्राइविंग लाइसेंस प्रणाली ऑनलाइन व्यवस्था होने के बाद फर्जी लाइसेंस बनने तो बंद हो गए हैं, लेकिन कोई ऐसा प्रशिक्षण संस्थान दुर्लभ है, जहां सड़क सुरक्षा संबंधी प्रावधानों और सावधानियों के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके . दूसरी तरफ रोक के बाद भी एनएच तक में शराब की बिक्री अपने रिकॉर्ड स्तर पर है और सड़क दुर्घटनाओं के बाद गोल्डन आवर में तत्काल घायल को अस्पताल पहुंचाने की समुचित व्यवस्था भी नहीं है, जिस कारण दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. विदेशों में तेज रफ्तार सड़कें बनती हैं तो कड़े नियम बनाए जाते हैं और उनका बहुत ही सख्ती से पालन किया जाता है. लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है और अधिकांश जगहों पर सीसीटीवी और स्पीड गन लगाए हुए हैं, जिनसे अनियंत्रित गति से चलने वाले लोगों पर नजर रखी जाती है, जिससे दुर्घटनाओं और घायलों की मृत्यु दर बहुत कम हुई है. क्रिकेटर ऋषभ पंत कार से डेढ़ सौ की स्पीड में चलते हुए दुर्घटनाग्रस्त होते हैं कारण स्पष्ट नहीं है. इसी प्रकार सड़कों पर नजर रखने के मैकेनिज्म की बात करें तो दिल्ली एनसीआर इलाके में एक लड़की 12 किलोमीटर तक एक वाहन से घिसटती जाती है और 36 घंटे के बाद कार्रवाई शुरू होती है, जबकि विदेशों में त्वरित कार्रवाई की अधिकतम सीमा 90 सेकेंड है.
कुछ महीनों पूर्व रोहतास के एक चिकित्सक बीएमडब्ल्यू कार से यूपी एक्सप्रेसवे में 180 किलोमीटर की गति से फेसबुक लाइव करते तीन दोस्तों सहित मारे गए. समय आ गया है कि विदेशों की तरह नियमों को ना सिर्फ कड़ा बनाए जाए, बल्कि मॉनिटरिंग को सख्त किया जाए और प्रभावशाली या बड़े नामचीन लोगों को बचाने के बजाय उन को सजा दिलाने में सरकारें आगे आएं, ताकि आम आदमी भी सीख लेकर संभल कर चले. भारत में सड़क सुरक्षा वाले कानूनों का पालन महज दिखावा बन कर रह गया है. वैसे ही यातायात नियमों की अनदेखी एक प्रवृत्ति बन गई है. यातायात नियमों का पालन, अतिरिक्त सावधानी, वाहन को नियंत्रित सीमा में रखना, पैदल यात्रियों का सड़क पार करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतना, सड़कों को मानक रूप में बेहतर बनाए रखना और ‘ओवरटेक’करने से बचना जरूरी है. सड़क सुरक्षा सप्ताहों में जिस तरह पुलिस यातायात नियमों के पालन के लिए लोगों को जागरूक और बाध्य करती है, वैसी जागरूकता हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर जिंदगी का हिस्सा बन जाए तो हादसों में कमी लाई जा सकती है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.