Ranchi : रिम्स में लापरवाही आम बात है. अक्सर रिम्स विवादों में रहा है. रिम्स की उदासीनता और लचर कार्यप्रणाली का खामियाजा हीमोफीलिया पीड़ित मरीज को उठाना पड़ रहा है. दरसअल मरीज बापी दास बोकारो जिले के बरमसिया का रहने वाला है. बापी के दाहिने पैर का ऑपरेशन किया गया है. इलाज रिम्स के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ एलबी मांझी ने किया है. बापी को हीमोफीलिया होने के कारण मेडिसिन विभाग के डॉ संजय सिंह ने हीमोफीलिया की दवा फैक्टर 7 इन्हबिटोर या जीवन रक्षक बाईपास एजेंट फाइवा लिखी है.
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25 दिन से एक विभाग से दूसरे विभाग घुमाया जा रहा फाइल
वहीं हीमोफीलिया ट्रीटमेंट सोसाइटी रांची चैप्टर के सचिव संतोष जायसवाल ने कहा कि हीमोफीलिया मरीज के लिए दवा की मांग रिम्स प्रबंधन से की है. दवा की खरीद के लिए 2 करोड़ 20 लाख रुपए फंड में है. बावजूद इसके फाइल को एक विभाग से दूसरे विभाग में घुमाया जा रहा है. निदेशक कार्यलय और मेडिकल स्टोर की बीच फाइल फंस कर रह गयी है. इधर दिन प्रतिदिन मरीज की स्थिति गंभीर होती जा रही है. समय पर दवा नहीं मिला तो मरीज की मौत भी हो सकती है. बता दें कि 10 मार्च को मरीज बापी दास के दाहिने पैर का सर्जरी हुआ था. जिसके बाद से ही दवा की मांग रिम्स हीमोफीलिया ट्रीटमेंट सेंटर की ओर से की जा रही है.
रिम्स निदेशक को नहीं है मरीज की जान की परवाह
एक बार हिमोफीलिया ट्रीटमेंट सोसायटी रांची चैप्टर के सचिव संतोष जायसवाल स्वास्थ्य शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रधान सचिव को इस बाबत जानकारी देने की तैयारी में है. रिम्स की उदासीनता से क्षुब्ध संतोष ने कहा कि रिम्स को एक ऐसे निदेशक मिले हैं, जो अपने चैंबर से बाहर तक नहीं निकलते हैं. उन्हें मरीजों की जान की परवाह नहीं है.
निदेशक कार्यालय के चक्कर काट चुके हैं परिजन
वहीं बापी दास की मां ने बताया किस कई बार निदेशक कार्यालय के चक्कर काट चुके हैं. बावजूद इसके अधिकारी सुनते नहीं हैं. अब इलाज करने वाले डॉक्टर का कहना है कि यदि वक्त पर दवा नहीं मिली तो मेरे बेटे का पांव काटना पड़ेगा. हमारे घर का वही एकमात्र सहारा है. मेरे पति की मौत पहले ही हो चुकी है. अब समझ में नहीं आ रहा है कि आगे कैसे हमारा परिवार चलेगा.
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आति सुंदर आपने सही लिखा है। प्रबंधन की लापरवाही संस्थान के कर्मठ चिकित्सक सरकार बदनाम हो रही है