Brijendra Dubey
भारत एक हिंदू बहुसंख्यक देश है और यहां शाकाहार के मुकाबले नॉनवेज खाने वाले भी बहुसंख्यक हैं यानी नॉनवेज खाने वालों की संख्या ज्यादा है. 140 करोड़ की आबादी वाले देश में 57 प्रतिशत पुरुष और 45 फीसदी महिलाएं नॉनवेज खाते हैं. ऐसे में सवाल उठाते हैं कि क्या किसी का मछली-मटन खाना राजनीतिक मुद्दा हो सकता है? क्या खाने की आदत से धर्म और इंसान पहचाना जाएगा? क्या हिंदू सिर्फ शाकाहारी होते हैं और जो नॉनवेज खा लेते हैं वे विधर्मी?
आपने खाने के कई प्रकार सुने होंगे. भारतीय, मैक्सिकन, थाई, इटैलियन और भी कई सारे. लेकिन देश में इस बार चुनाव भी मसालेदार मुगलई हो चुका है. कारण, राहुल गांधी सावन में मटन बनाते नजर आए थे, तो इसके फोटो-वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए थे. वहीं अब नवरात्र के पहले दिन तेजस्वी यादव मछली खाने का वीडियो डालते हैं. ऐसे चुनाव मुगलई तब हो गया, पीएम मोदी ने जम्मू के ऊधमपुर से सावन और नवरात्र में मटन-मछली के वीडियो से मुगल सोच के तहत चिढ़ाने का आरोप बिना नाम लिए लालू परिवार और राहुल गांधी पर लगाया है. अब क्या खाने की आदत से धर्म और इंसान पहचाना जाएगा? क्या सावन या नवरात्र में नॉनवेज खाकर वीडियो बनाने या पोस्ट करने से दूसरों की भावना को चोट पहुंचती है और क्या सावन-नवरात्र में किसी के नॉनवेज खाने का वीडियो डालने से अल्पसंख्यक वोटर वोट दे देते हैं? दरअसल, 2019 से 2021 के बीच हुआ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यह बताता है कि देश के 57.3 प्रतिशत पुरुष और 45.1 प्रतिशत महिलाएं हफ्ते में कम से कम एक बार चिकन, मछली, मीट जैसी नॉनवेज डिश खाते हैं. अब चूंकि प्रधानमंत्री ने बात नवरात्र या सावन में मटन-मछली की उठाई है तो धर्म के आधार पर नॉनवेज का आंकड़ा देखने की भी जरूरत है. ईसाई धर्म में 79 प्रतिशत, मुस्लिम धर्म के 75 फीसदी, 68 प्रतिशत बौद्ध, हिंदू 47 प्रतिशत नॉनवेज खाते हैं.
इन सारे सवालों की शुरुआत सात महीने पहले होती है. देश में श्रावण मास यानी सावन का महीना चल रहा था. लालू यादव के घर पर मटन बना तो राहुल गांधी सीखते नजर आए. राहुल गांधी के मटन बनाना सीखने वाले वीडियो के बाद अब सात महीने बाद जब चैत्र मास की नवरात्र का पहला दिन शुरू हुआ तो तेजस्वी यादव द्वारा एक दिन पहले खाई गई मछली का वीडियो पोस्ट किया जाता है. अब ऐसे में यह चुनावी मुद्दा बन चुका है और इन वीडियो के जरिए चुनाव में मुगल मानसिकता का जिक्र किया जा रहा है. कारण, सावन में मटन बनाने का वीडियो डालने के सात महीने बाद और नवरात्र के दिन मछली का वीडियो पोस्ट करने के चार दिनों बाद बिहार की राजधानी से 1000 किमी दूर ऊधमपुर में मोदी इस मुद्दे पर वोट मांगते नजर आए.
पीएम मोदी ने नॉनवेज बनाने और खाने वाले इन वीडियो पर निशाना साधते हुए कहा कि इन्हें लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने में मजा आता है. पीएम मोदी ने कहा कि जब मुगल आक्रमण करते थे, सत्ता राजा को पराजित करने से संतोष नहीं होता था. जब तक मंदिर तोड़ते नहीं थे, उनको संतोष नहीं होता था. उनको मजा आता था. सावन के महीने में वीडियो दिखाकर मुगल के जमाने की मानसिकता है ना, उसके द्वारा वे चिढ़ाना चाहते हैं. अपना वोट बैंक पक्का करना चाहते हैं. आप किसे चिढ़ाना चाहते हैं? नवरात्र के दिनों में आपका नॉनवेज खाना, इस मंशा से वीडियो दिखाकर लोगों को भावनाओं को चोट पहुंचाकर किसको खुश करने का खेल कर रहे हो?
बता दें कि सियासत में तुष्टीकरण होता आया है.
हिंदुओं के वोट के लिए भाजपा और मोदी हमेशा ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं. ये लोग कपड़ा देख कर हिंदू-मुसलमान पहचान लेने का दावा पहले से करते नजर आये हैं. लेकिन वाजिब सवाल यह है कि जब देश में इतने सारे बड़े-बड़े मुद्दे हैं, तो मोदी ने उन पर बात न करके नॉनवेज का मुद्दा उठा कर ध्रुवीकरण का पांसा फेंका है. अब यह देश की जनता को तय करना है कि उसे हिंदू-मुसलमान से आगे देखना है या भावनाओं के वश में आकर इसी पर वोट कर देना है. अब अगर भारत के नक्शे पर देखें तो गोवा, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में 75 फीसदी से 90 प्रतिशत तक लोग हफ्ते में कम से कम एक बार मछली, चिकन या मीट खाते हैं. उत्तर की बात करें तो उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड में 25 से 50 फीसदी तक लोग हफ्ते में एक बार जरूर नॉनवेज खाते हैं.
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश वे राज्य हैं, जहां 13 से 20 फीसदी लोग ही नॉनवेज खा रहे हैं. ये आंकड़े इस बात को साफ करते हैं कि देश में नॉनवेज खाने वालों की तादाद कोई कम नहीं है. ऐसे में पीएम मोदी का सावन या नवरात्र में नॉनवेज खाने पर सवाल उठाना यह दिखाता है कि वह आम चुनाव देश के ज्वलंत मुद्दों से भटका कर हिंदू-मुसलमान की तरफ लाने के लिए बेचैन है. क्योंकि उनके पास पिछले 10 सालों की उलब्धियां बताने के नाम पर बहुत कुछ है नहीं. सियासी पंडितों का यह भी कहना है कि मोदी वोट ध्रुवीकरण जैसे आसान फार्मूले को अपना कर चुनाव में जीत हासिल करने को बेताब हैं. अब यह देश की जनता को तय करना है कि जहां बेरोजगारी और महंगाई विकराल रूप धारण कर चुकी है, वहां इन पर बात न करके पीएम मोदी जनता का भावनात्मक दोहन करने पर उतर आये हैं.
अब सियासत की इस मछली फ्राई पर वोट का स्वाद किसको किसको कैसे मिला या मिलेगा, समझिए. कहा जा रहा है कि तेजस्वी ने वीडियो डाल कर मल्लाह वोटरों को संदेश दिया है. लेकिन पीएम मोदी ने मछली और मटन को मुगल सोच से जोड़ने पर बहुसंख्यक वोट भाजपा की तरफ जुड़ेगा. बात चाहे जो भी हो, वोट के लिए पीएम मोदी का इस स्तर तक उतर आना यह साबित करता है कि चुनाव नजदीक आते-आते उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है. उन्हें डर लगने लगा है कि इंडिया गठबंधन कि मजबूती उनकी हैट्रिक कहीं रोक न दे. नॉनवेज को मुद्दा बनाने में मेनस्ट्रीम मीडिया में जुट गया है. लेकिन इन सबके बीच एक जनता भी है, जिसके हाथ सिर्फ बयानबाजी का कांटा लगा है.